आवाज जनादेश / न्यूज ब्यूरो शिमला
हिमाचल हाईकोर्ट के कंपनी को अपफ्रंट प्रीमियम अदा नहीं करने पर हिमाचल भवन नई दिल्ली की संपत्ति अटैच करने के आदेश से प्रदेश में सियासत गरमा गई है। हिमाचल भवन को अटैच करने की खबरों पर सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, “संपत्ति अटैच नहीं की गई है… यह कानूनी मुद्दा है, हम इस लड़ाई को लड़ना चाहते हैं। यह पावर प्रोजेक्ट अपफ्रंट प्रीमियम था। ब्रेकल के मामले में हम अपफ्रंट प्रीमियम का केस जीत चुके हैं, जिसमें आर्बिट्रेशन कोर्ट ने 280 करोड़ रुपये दिए थे, उसके बाद जब हमने रिट दायर की तो हाईकोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया।
इसी तरह आर्बिट्रेशन कोर्ट द्वारा मोजर बेयर को दिए गए 64 करोड़ रुपये के आर्बिट्रेशन के खिलाफ भी हम हाईकोर्ट गए हैं। यह जयराम ठाकुर (पूर्व हिमाचल सीएम और भाजपा नेता) के समय का मामला है। उन्होंने अपनी कैबिनेट में ब्रेकल कंपनी को 280 करोड़ रुपये का आर्बिट्रेशन अवॉर्ड दिया था, जो गलत था और उसके बाद हाईकोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया क्योंकि हमने तथ्य पेश किए थे। यह मध्यस्थता की लड़ाई है।” सीएम ने कहा कि हम आर्बिट्रेशन अवार्ड नहीं देंगे, हम इसको कानूनी ताैर पर लड़ेंगे। क्योंकि हिमाचल की संपदा को लुटने नहीं देंगे, इसके लिए जो पैसे जमा करने होंगे, करेंगे।
विक्रमादित्य सिंह ने ये कहा
वहीं, मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में कई हाइड्रो प्रोजेक्ट हैं और जब भी कोई हाइड्रो प्रोजेक्ट स्थापित होता है तो उसका अग्रिम पैसा जरूर दिया जाता है और यह सभी मामलों में होता है, चाहे वह पीएसयू प्रोजेक्ट हो या व्यक्तिगत प्रोजेक्ट। कई बार ऐसा होता है कि प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाता। अगर इसकी समय सीमा पूरी नहीं होती तो बोली लगाने वाले या जिन्हें अवार्ड मिल चुका है, वे अपना अग्रिम पैसा वापस मांगते हैं। ऐसे कई मामले हैं। ऐसी चीजें हर राज्य की हर सरकार में होती हैं। मैं उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा लेकिन जैसे हिमाचल भवन को अटैच करने की बात हो रही है। दिल्ली स्थित हिमाचल प्रदेश का हिमाचल भवन पूरे हिमाचल का आईना है, हिमाचल प्रदेश का प्रतीक है। इसलिए इसकी इस तरह से अटैचमेंट, चाहे सुप्रीम कोर्ट में करनी हो या डबल बेंच में, कानूनी तरीके से ही निपटा जाना चाहिए।
मामले में डिवीजन बेंच में अपील की:अनूप कुमार रतन
हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता अनूप कुमार रतन कहते हैं, “उच्च न्यायालय का यह आदेश एक निष्पादन याचिका में आया है, जिसमें सेली हाइड्रोपावर ने दायर किया है कि एकल न्यायाधीश द्वारा उनके पक्ष में दिए गए आदेश में 64 करोड़ रुपए का अग्रिम प्रीमियम वापस किया जाए क्योंकि सरकार ने वह पैसा अपीलीय न्यायालय में जमा नहीं कराया है। इसलिए निष्पादन न्यायालय द्वारा यह आदेश सामान्य नियमित प्रक्रिया के तहत दिया गया है। लेकिन यह खबर इसलिए बन रही है क्योंकि उच्च न्यायालय ने हिमाचल भवन की नीलामी करने की बात कही है और कहा है कि इस संपत्ति को भी अटैच किया जा सकता है। असल मुद्दा यह है कि 2011 में एक पूर्व कार्यान्वयन समझौता हुआ था जिसमें कहा गया था कि सेली हाइड्रोपावर परियोजना 20 लाख रुपये प्रति मेगावाट यानी 400 मेगावाट के लिए 64 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी जो उन्होंने राज्य को गैर-वापसी योग्य अग्रिम प्रीमियम के रूप में जमा कराया था और यह उस परियोजना को संसाधित करने के लिए एक प्रसंस्करण शुल्क था। पूर्व कार्यान्वयन समझौते में यह शर्त थी कि डीपीआर जमा करने से पहले यदि यह पाया जाता है कि यह परियोजना व्यवहार्य नहीं है तो ये 64 करोड़ रुपये आपको वापस कर दिया जाएगा। लेकिन अगर आपने डीपीआर बना लिया है और डीपीआर में आता है कि ये प्रोजेक्ट व्यवहार्य है, तो ये रकम नॉन-रिफंडेबल हो जाएगी।
सेली हाइड्रो पावर ने इस प्रोजेक्ट का डीपीआर बनाया, डीपीआर बनने के बाद प्रोजेक्ट को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया गया और उस प्रोजेक्ट को टेक्नो-इकोनॉमिक क्लीयरेंस के लिए दिल्ली भेजा गया। उसके बाद सेली हाइड्रो पावर कंपनी को दिल्ली से टेक्नो-इकोनॉमिक क्लीयरेंस नहीं मिली और उसके बाद उन्होंने राज्य सरकार को लिखना शुरू कर दिया कि वो ये प्रोजेक्ट नहीं बना सकते… उन्होंने हाईकोर्ट में रिट दायर कर दी कि हम ये प्रोजेक्ट नहीं बना सकते और हमारा अपफ्रंट प्रीमियम वापस किया जाए। दोनों पक्षों के बीच जो अनुबंध हुआ था, उसकी शर्तों के मुताबिक अपफ्रंट प्रीमियम वापस नहीं किया जा सकता था। इसमें एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अगर यह प्रोजेक्ट मई 2021 में चालू होना था और सेली हाइड्रोपावर ने बोली लगाई थी, तो बोली के अनुसार उन्हें सरकार को 26 प्रतिशत मुफ्त बिजली देनी थी। इसका मतलब है कि मई 2021 से राज्य सरकार को 200 करोड़ रुपये की कमाई होनी थी। इससे राज्य के लोगों को हर साल 200 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, क्योंकि यह कंपनी अपने कारणों से प्रोजेक्ट नहीं बना पा रही थी। अब तक राज्य सरकार को 700 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है, लेकिन फिर भी सिंगल जज हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि राज्य को अपफ्रंट प्रीमियम वापस करना चाहिए। राज्य सरकार ने इस मामले में तुरंत डिवीजन बेंच में अपील की है। अपील लंबित है और इसी महीने सुनवाई होनी है। क्योंकि हमने पैसा जमा नहीं कराया और स्टे जमा कराने पर निर्भर था, इस वजह से यह आदेश आया है, जो एक सामान्य रूटीन प्रक्रिया है।
नेता प्रतिपक्ष जयराम ने साधा निशाना
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि हिमाचल के सम्मान का प्रतीक कहे जाने वाला हिमाचल भवन को आज कुर्क करने का आदेश हो गया है। इससे बड़ी शर्म की स्थिति प्रदेश के लिए और क्या हो सकती है। प्रदेश की इज्जत मुख्यमंत्री और उनकी सरकार ने तारतार कर दी है। हिमाचल आज नीलामी की दहलीज पर खड़ी है। प्रदेश सरकार में प्रदेश के हाइड्रो प्रोजेक्ट और पूरे प्रदेश को बर्बाद कर दिया है। पूरे देश के हाइड्रो पावर का एक चौथाई बिजली उत्पादन हिमाचल प्रदेश में होता है जिसे और बढ़ाया जा सकता है। लेकिन हर दिन सरकार अपनी तानाशाही से कोई न कोई अव्यवहारिक नियम लाकर बिजली उत्पादन की संभावना को खत्म कर रहे हैं, जिससे यहां पर निवेशक ना आए। निजी सेक्टर के साथ सरकार ने केंद्र सरकार के उपक्रम जो हाइडल बिजली उत्पादित करते हैं उन्हें भी रोकने की कोशिश की गई है।