आवाज़ जनादेश/बिशेष संवादाता
डॉ राजीव बिंदल के पास अब दो मार्ग हैं। पहला यह कि क्या वह मंत्री बनना पसंद करेंगे या फिर दूसरा यह कि वह पुनः प्रदेशाध्यक्ष बनना चाहेंगे ? है न मोटा हल्ला ? बिल्कुल यही खबर सामने आ रही है कि डॉ बिंदल की बहाली तय है और उनको यह तय करना है कि वह अब किस जगह में अपनी भूमिका चाहते हैं ?
यह उसी सियासी कहानी का अगला एपिसोड है, जिसमें चन्द रोज पहले भाजपा के ही एक धड़े ने डॉ बिंदल की नब्ज पर हाथ रखा था। पर अब हालात इसी धड़े को हार्ट अटैक आने के बन गए हैं। सियासी दिल का दौरा पड़ने की वजह है यह कि बिंदल पर कोई आरोप “साबित” न हो पाना, या फिर साबित ना “कर” पाना। नए एपिसोड में जो स्क्रिप्ट बनी है उसमें बदलाव भी, मजबूरी ही बताया जा रहा है।
खबर के मुताबिक सरकार यह चाहती है कि डॉ बिंदल मंत्रीमण्डल में स्थान ग्रहण करें और संगठन में किसी और को मौका दिया जाए। इसकी भी वजह है। अगर सरकार के दरबार में डॉ साहब मंत्री बनकर बैठते हैं तो प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर सरकार किसी अपने विश्वासपात्र को बिठा पाएगी।
पर जंग थमी नहीं है। संगठन की कलाई को डॉ के हाथ से छुड़वाने वाला धड़ा अब भी इस कोशिश में लगा हुआ है कि वह सरकार की नब्ज का हिस्सा न बनें। इसके लिए एक धड़ा अब फिर से सिर-धड़ की बाजी लगाए हुए है। जबकि एक धड़ा यह चाह रहा है कि डॉ साहब जैसे थे कि स्थिति में ही प्रदेशाध्यक्ष पद पर बैठे रहें। इन दोनों धड़ों में एक तीसरा ऐसा ग्रुप भी है जो जैसे-तैसे डॉ बिंदल को जस का तस विधायक नाहन ही बनाकर रखने में ताकत लगा रहा है।
इस तीसरे ग्रुप में सियासत में एक खास जिले से खास अहमियत रखने वाले मंत्री जी के साथ-साथ कुछ विधायक शामिल बताए जा रहे हैं। साथ ही एक-दो अफसर साहेबान के भी उनके साथ होने की खबरें हैं। बताया जा रहा है कि यह तीसरा गुट पहले भी बिंदल पर आरोपों की काली बिंदिया लगाने या यूं कहें कि लगवाने में अग्रणी भूमिका में बताया गया था।
वक़्त के साथ जो भी कवायद डॉ बिंदल के खिलाफ हुई, उसमें कोई भी दुखती रग बिंदल विरोधियों के हाथ नहीं लगी। अब एक बार फिर से पत्ते उल्टे गिरने-पड़ने का शोर मच गया है। अब दिल्ली दरबार से आ रही खबरें हिमाचल के भगवा दिल को झटके देने वाली हैं।
सरकार बनने के बाद से ही अपने आकार को तरस रहे बिंदल के पास अब विराट रूप दिखाने का मौका भी मिल सकता है। सियासी माहिर भी अब चुटकी लेते हुए कह रहे हैं कि अगर यह खबरें सही हुईं तो सरकार के आकार पर भी फर्क पड़ेगा। जिस मन्त्रिमण्डल विस्तार को अलग-अलग बहानों से रोका जा रहा था, अब एक झटके में हो जाएगा। बाकि दावेदारों को तो रोक के रख दिया था, अब डाक्टर साहब को रोकने का कोई विकल्प नजर नही रहा ।विंदल कि वापिसी लगभग तह मानी जाने लगी है।