जलाशयों की मरम्मत, जीर्णोद्धार व नवीकरण स्कीम पर नोट

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पानी प्रधान प्राकृतिक संसाधन, मानव की बुनियादी जरूरत और बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा है। संसाधन के लिहाज से पानी को बांटा नहीं जा सकता है; बारिश, नदी के पानी और भूतल पर मौजूद तालाब व झीलों तथा भूगर्भ के पानी एक इकाई हैं जिनके सर्वांगीण व प्रभावी प्रबंधन की जरूरत है ताकि इसकी गुणवत्ता और उपलब्धता लम्बे समय तक सुनिश्चित की जा सके।

भारत की ग्रामीण आबादी का मूल पेशा कृषि है। भारत के कृषि उत्पादन और विकास में सिंचाई ने महती भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तरों पर कृषि का विकास सिंचाई में विकास के पैटर्न से जुड़ा हुआ है। सिंचाई के क्षेत्र में निवेश ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने व ग्रामीण विकास की कुंजी है। लम्बे समय से मानव की सम्पन्नता के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए कृषि उत्पादन में सिंचाई के विभिन्न व्यवस्थाअों के माध्यम से जल संसाधन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। भारत में लघु सिंचाई व्यवस्था के जरिये जल संसाधन का इस्तेमाल उसके प्राकृतिक रूप में किया गया। 2000 हेक्टेयर खेत में जब सिंचाई होती है तो उसे लघु सिंचाई कहा जाता है।

लघु सिंचाई के लिए पाँच तरह के ढांचे की व्यवस्था की जाती है – कुआँ खुदाई, सतही ट्यूबवेल, गहरा ट्यूबवेल, सरफेस लिफ्ट सिस्टम और सरफेस फ्लो सिस्टम।सरफेस फ्लो सिस्टम को छोड़ दें तो सभी सतही जल के ढांचे हैं।

मानव निर्मित हो या प्राकृतिक इन जलाशयों, टैंकों, पोखरों और इसी तरह के दूसरे ढांचों ने भारतीय कृषि को सदियों से पुष्पित व पल्लवित कर रखा है।

श्री श्री-यमुना विवाद : राष्ट्रीय हरित पंचाट का आदेश

विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन के यमुना भूमि पर किए जाने से उपजे विवाद से आप परिचित ही हैं। विवाद को लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट ने दिनांक नौ मार्च, 2016 अपना आदेश जारी कर दिया है। खबर है कि प्रारम्भिक मुआवजा राशि के आदेश से असंतुष्ट श्री श्री रविशंकर जी ने सर्वोच्च न्यायालय में जाने का निर्णय लिया है। मेरा मानना है कि आदेश ने पर्यावरणीय सावधानियों के अलावा प्रशासनिक कर्तव्य निर्वाह के पहलुओं पर भी दिशा दिखाने की कोशिश की है।

मूल आदेश अंग्रेजी में है। पाठकों की सुविधा के लिए आदेश का हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की गई है। यह शब्दवार अनुवाद नहीं है, किंतु ध्यान रखा गया है कि कोई तथ्य छूटने न पाये। समझने की दृष्टि से कुछ अतिरिक्त शब्द कोष्ठक के भीतर जोङे गये हैं। अनुरोध है कि कृपया अवलोकन करें, विश्लेषण करें और अपने विश्लेषण/प्रतिक्रिया से हिंदी वाटर पोर्टल को अवगत करायें।

जल प्रबंधन में राज्यों के अधिकारों में दखल नहीं : प्रधानमंत्री

 भूजल स्तर में आने वाली गिरावट के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके अत्यधिक महत्व के बावजूद इसे निकालने और इसके इस्तेमाल में तालमेल से जुड़ा कोई नियमन नहीं है। उन्होंने कहा कि भू-जल के दुरुपयोग को कम से कम करने के लिए हमें इसे निकालने में बिजली के इस्तेमाल के नियमन के कदम उठाने होंगे।नई दिल्ली, 28 दिसंबर 2012। राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करने के प्रधानमंत्री के आश्वासन के बीच शुक्रवार को राज्यों ने असहमति जताने के बावजूद राष्ट्रीय जल नीति को स्वीकार कर लिया। कई राज्य सरकारों ने चिंता जताई थी कि नीति में प्रस्तावित कानूनी रूपरेखा उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। प्रधानमंत्री का यह आश्वासन इन्हीं आशंकाओं को दूर करने की कोशिश थी।

प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद के छठें सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार किसी भी तरह से राज्यों के संवैधानिक अधिकारों या जल प्रबंधन को केंद्रीयकृत करने के लिए हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। उन्होंने कहा कि मैं प्रस्तावित राष्ट्रीय कानूनी रूपरेखा को उचित दृष्टिकोण से देखने की जरूरत पर जोर देना चाहूंगा। सम्मेलन में ही राष्ट्रीय जल नीति को स्वीकार किया गया। जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने सम्मेलन के बाद कहा कि नीति का मसविदा दोबारा तैयार नहीं किया जाएगा। राज्यों की चिंताओं को दूर करने के लिए कुछ संशोधन किए जाएंगे।

पर्यावरण एवं विकास

ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलने एवं वनों की अत्यधिक कटाई से नदियों में बाढ़ आ रही है। समुद्र का जलस्तर सन् 1990 के मुकाबले सन् 2011 में 10 से 20 सेमी. तक बढ़ गया है। जिससे तटीय इलाकों में मैंग्रोव के जंगल नष्ट हो रहे हैं। परिणाम स्वरूप समुद्री तुफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष समुद्र में करोड़ों टन कूड़े-कचरे एवं खर-पतवार के पहुंचने से विश्व की लगभग एक चौथाई मुंगे की चट्टाने नष्ट हो चूकी है। जिसमें समुद्री खाद्य प्रणाली प्रभावित होने से परिस्थिति तंत्र संकट में पड़ गया है।

 

आदिवासी क्षेत्रों के विशेषाधिकार समाप्त करने की साजिश

लंबे इंतजार के बाद राजस्थान में पेसा कानून को लेकर बनाए गए नियम जब सार्वजनिक हुए तो यह बात सामने आई कि इनके माध्यम से आदिवासी समुदाय की स्वायत्ता को समाप्त करने का प्रयत्न किया गया है। आवश्यकता इस बात की है कि राज्य सरकार की इस कार्यवाही का विरोध किया जाए और इस बात के प्रयास किए जाए कि देशभर में आदिवासी समुदाय के लिए अनुकूल नियम बने। इस कानून की मूल भावना को बनाए रखा जाए। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार को शीघ्र ही पेसा कानून के नियमों का जरूरी सुधार करना चाहिए। अन्य राज्य सरकारों को भी चाहिए कि वे उचित व न्यायसंगत नियम बनाकर पेसा कानून को उसकी मूल भावना के अनुकूल लागू करें।

 

 

जीएम बीजों और कीटनाशकों के फसलों पर छिड़काव से भी बड़ी मात्रा में इनसे जुड़े लोगों की आजीविका को हानि और खेतों को क्षति पहुंच रही है। दुनिया के पर्यावरणविदों और कृषि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जीएम बीजों से उत्पादित फसलों को आहार बनाने से मानव समुदायों में विकलागंता और कैंसर के लक्षण सामने आ रहे हैं। खेतों को बंजर बना देने वाले खरपतवार खेत व नदी नालों का वजूद खत्म करने पर उतारू हो गए हैं। बाजार में पहुंच बनाकर मोंसेंटो जीएम बीज कंपनी ने 28 देशों के खेतों को बेकाबू हो जाने वाले खरपतवारों में बदल दिया हैं। यही नहीं, जीएम बीज जैव विविधता को भी खत्म करने का कारण बन रहे हैं।

एनटीएडीसीएल सूचना-अधिकार के दायरे में : मद्रास उच्च न्यायालय

हाल ही में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजना से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा न्यू तिरुपुर एरिया डिवेलपमट कार्पोरेशन लिमिटेड, (एनटीएडीसीएल) की याचिका खारिज कर दी गई है। कंपनी ने यह याचिका तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग के उस आदेश के खिलाफ दायर की थी जिसमें आयोग ने कंपनी को मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था।

एक हजार करोड़ की लागत वाली एनटीएडीसीएल देश की पहली ऐसी जलप्रदाय परियोजना थी जिसे प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत मार्च 2004 में प्रारंभ किया गया था। परियोजना में काफी सारे सार्वजनिक संसाधन लगे हैं जिनमें 50 करोड़ अंशपूजी, 25 करोड़ कर्ज, 50 करोड़ कर्ज भुगतान की गारंटी, 71 करोड़ वाटर शार्टेज फंड शामिल है। परियोजना को वित्तीय दृष्टि से सक्षम बनाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने ज्यादातर जोखिम जैसे नदी में पानी की कमी

 

राजस्थान राज्य जल नीति 2010

राजस्थान की जल नीति को 15 फरवरी 2010 को कैबिनेट सब-कमेटी ने प्रदेश की पहली जल नीति के रूप में मंजूरी दे दी है।

राज्य जल नीति के उद्देश्य हैं: सस्टेनेबल आधार पर नदी बेसिन और उप बेसिन को इकाई के रूप में लेते हुए जल संसाधनों की योजना, विकास और प्रबंधन को एकीकृत और बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाना, और सतही और उपसतही जल के लिये एकात्मक दृष्टिकोण अपनाना। नीति में पानी की पहली प्राथमिकता पेयजल,

पेयजल और स्वच्छता नीति का मसौदा

बिहार सरकार 22 मार्च 2010 को विश्व जल दिवस के अवसर पर पेयजल और स्वच्छता नीति की घोषणा करेगी। लोक स्वास्थ्य और अभियांत्रिकी मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि बिहार सरकार बहुत तेजी से जल और स्वच्छता के बारे में एक मुकम्मल नीति बनाना चाहती है। इस मसौदे पर काम चल रहा है।

मसौदा के बारे में श्री चौबे ने स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार की नीति में पीने के पानी को शीर्ष प्राथमिकता होगी। सरकार दोहरी जल आपूर्ति पर भी काम कर रही है। ताकि जल को साफ किया जा सके। सरकार जिला स्तर और राज्य स्तर पर निगरानी समितियाँ भी बनायेगी जो सतही पानी, जमीनी पानी और वर्षा जल के अधिकतम के समूचित उपयोग पर नियंत्रण रखेंगी। बिहार सरकार एक भूजल विनियामक प्राधिकरण भी स्थापित करेगी जो भूजल संरक्षण और उपयोग पर नियंत्रण रखेगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश की धज्जी

वाराणसी। रोज सुबह आठ ट्रैक्टर टालियां मिट्टी लेकर डाफी-लंका मार्ग से पहुंचती हैं शुक्रेश्वर तालाब। शुक्रेश्वर तालाब एक ऐतिहासिक तालाब है, जो कि धीरे –धीरे पट रहा है।

कुडों-तालाबों के संरक्षण को लेकर नगर निगम संजीदगी का शुक्रेश्वर तालाब ताजा नमूना है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशों की भी धज्जी उड़ाई जा रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जाए। जिसका काम होगा कि जिले की सभी जल निकायों को चिन्हित करे और उसके संरक्षण के लिए योजनाएं बनवाए। 

कोसी आपदा: पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण नीति

कोसी नेपाल एवं भारत के बीच बहनेवाली, गंगा की सहायक नदी है, जिसका आवाह (जलग्रहण) क्षेत्र करीब 69300 वर्ग किलोमीटर नेपाल में है। यह कंचनजंगा की पश्चिम की ओर से नेपाल की पहाड़ियों से उतर कर भीमनगर होते हुए बिहार के मैदानी इलाके में प्रवेश करती है। यह एक बारहमासी नदी है प्रत्येक वर्ष कोसी नदी में बह रही गाद के कारण नदी के तट का स्तर बांध के बाहर की जमीन से ऊपर हो गया है।

ब्रह्मपुत्र बोर्ड

ब्रह्मपुत्र बोर्डपूर्वोत्तर क्षेत्र में व्यापक बाढ़ और तटकटाव की समस्याओं का निदान खोजने के उद्देश्य से संसद के एक अधिनियम 1980(1980 का 46) के अंतर्गत ब्रह्मपुत्र बोर्ड को एक स्वयंशासित निकाय के रूप में तत्कालीन सिंचाई मंत्रालय के अधीन (अभी जल संसाधन मंत्रालय के नाम से पुनर्निर्मित) गठित किया गया है। बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र एवम् बराकघाटी तथा पूर्वोत्तर के सभी राज्य पूर्णतया या अंशतया शामिल हैं। बोर्ड में कुल 21 सदस्य हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम

सूचना का अधिकारयदि कोई आरटीआई आवेदक किसी सरकारी विभाग या मंत्रालय से मांगी गई सूचनाओं से संतुष्ट नहीं है या उसे सूचनाएं नहीं दी गईं हैं तो अब उसे केन्द्रीय सूचना आयोग के दफतरों में भटकने की जरूरत नहीं है। अब वह सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकता है। सीआईसी में शिकायत के लिए वेबसाइट http://rti.india.gov.in में दिया गया फार्म भरकर सबमिट पर क्लिक करना होता है। क्लिक करते ही शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है।

भारत सरकार ने ई गवरनेंस और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केन्द्र के सभी मंत्रालयों से संबंधित सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी थी लेकिन इसके साथ ही अब वेबसाइट के माध्यम से केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है। इसके अतिरिक्त अपील का स्टेटस भी देखा जा सकता है। सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है। सरकार की इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेयता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006

राष्ट्रीय पर्यावरण नीति वर्त्तमान नीतियों (उदाहरण के लिए राष्ट्रीय वन नीति, 1988; राष्ट्रीय संरक्षण रणनीति तथा पर्यावरण एवं विकास पर नीतिगत वक्तव्य, 1992; तथा प्रदूषण निवारण पर नीतिगत वक्तव्य, 1992; राष्ट्रीय कृषि नीति, 2000; राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000; राष्ट्रीय जल नीति, 2002 इत्यादि) का एकीकरण करती है।
• नियामकीय सुधार, पर्यावरणीय संरक्षण कार्यक्रम एवं परियोजना, केंद्र, राज्य व स्थानीय सरकार द्वारा कानूनों के पुनरावलोकन एवं उसके कार्यान्वयन में, इसकी भूमिका मार्गदर्शन देने की होगी।

इस खबर के स्रोत का लिंक: 

वनाधिकार

साल २००६ के १३ दिसंबर को लोकसभा ने ध्वनि मत से अनुसूचित जाति एवम् अन्य परंपरागत वनवासी(वनाधिकार की मान्यता) विधेयक(२००५) को पारित किया। इसका उद्देश्य वनसंपदा और वनभूमि पर अनुसूचित जाति तथा अन्य परंपरागत वनवासियों को अधिकार देना है।

• यह विधेयक साल २००५ में भी संसद में पेश किया गया था, फिर इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए जिसमें अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ अन्य पंरपरागत वनवासी समुदायों को भी इस अधिकार विधेयक के दायरे में लाना शामिल है।

मूल विधेयक में कट-ऑफ डेट (वह तारीख जिसे कानून लागू करने पर गणना के लिए आधार माना जाएगा) ३१ दिसंबर, १९८० तय की गई थी जिसे बदलकर संशोधित विधेयक में १३ दिसंबर, २००५ कर दिया गया।

पर्यावरण से संबंधित फैसलों में हितों का टकराव

 भारत का समाजवादी लोकतंत्र प्रतिनिधित्व की राजनीति में अच्छी तरह रचा-बसा है। यहां विशेषज्ञों की सभा और समिति के बारे में आमतौर पर यह माना जाता है कि वे स्थितियों को बेहतर ढंग से समझते हैं। बनिस्बत उनके, जो ऐतिहासिक तौर पर सत्ता प्रतिष्ठान में निर्णायक भूमिका रखते हैं। यह सब एक प्रक्रिया के तहत होता है। इसमें प्राथमिकताएं सुनिश्चित होती हैं, योजनाओं का मूल्यांकन किया जाता है और विकास के रास्ते तैयार किए जाते हैं।

भूगर्भ जल के संरक्षण, सुरक्षा एवं विकास हेतु प्रस्तावित विधेयक पर 45 दिनों में लोगों से सुझाव एवं प्रतिक्रिया की अपील

लखनऊ। मुख्य सचिव श्री अतुल कुमार गुप्ता ने आज मीडिया सेन्टर में पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि भूजल संसाधनों के संरक्षण, सुरक्षा, प्रबन्ध, नियोजन एवं विनियमन हेतु राज्य सरकार द्वारा लोकहित में एक अधिनियम बनाने का निश्चय किया गया है। उक्त के सम्बन्ध में व्यापक विचार-विमर्श के उपरान्त राज्य सरकार द्वारा तैयार किये गये प्रस्तावित अधिनियम को जनमानस के सुझाव एवं प्रतिक्रिया प्राप्त करने हेतु आज यहां भूगर्भ जल विभाग, उ0प्र0 की वेबसाइट पर अपलोड किया जा रहा है। ड्राट भूजल अधिनियम के प्राविधानों पर जनमानस की प्रतिक्रिया एवं सुझाव 45 दिवस के अन्तर्गत अर्थात विलम्बतम 05 जुलाई 2010 तक आमन्त्रित है। सुझाव एवं प्रतिक्रिया ईमेल पर या निदेशक भूगर्भ विभाग उ0प्र0 नवां तल इंदिरा भवन अशोक मार्

0प्र0 भूगर्भ जल संरक्षण, सुरक्षा एवं विकास (प्रबन्ध, नियंत्रण एवं विनियमन)विधेयक 2010

 उ0प्र0 भूगर्भ जल संरक्षण, सुरक्षा एवं विकास (प्रबन्ध, नियंत्रण एवं विनियमन)विधेयक 2010 का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। यह ड्राफ्ट अधिनियम प्रदेश में भूगर्भ जल के वर्तमान परिदृश्य पर आधारित है जिसमें विभिन्न हाईड्रोजियोलाजिकल स्थितियों के अनुरूप भूजल विकास (दोहन) एवं भूगर्भ जल में गिरावट के ट्रेन्ड के अनुसार सुरक्षित, सेमी क्रिटिकल, क्रिटिकल एवं अतिदोहित श्रेणी में वर्गीकृत यूनिटस/क्षेत्र के अनुसार विभिन्न भूजल उपभोक्ताओं हेतु प्रावधान किए गए हैं

समाधान हेतु उपयुक्त जल नीति

 चूँकि जल का स्वभाव ही स्थलाकृति के अनुरूप अपना आकार बदल लेना तथा ऊपर से नीचे की ओर बहना है इसलिए उसके स्वभाव के विपरीत उसपर नियंत्रण कायम करना आंशिक तौर पर ही संभव हो पाता है। ऐसी स्थिति में वर्चस्वशाली व्यक्ति अथवा समूह जल पर इस प्रकार नियंत्रण स्थापित करते हैं कि उसका लाभ तो उन्हें मिले लेकिन नुकसान दूसरों को झेलना पड़े। उदाहरणस्वरूप जलस्रोत के समीप ऊपर की ओर रहने वाले लोग पानी की कमी के दिनों में तो उसका अधिकाधिक उपयोग खुद कर लेते हैं लेकिन बाढ़ की स्थिति में पानी नीचे छोड़ देते हैं।

मगध की जल समस्या

क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप जल व्यवस्था मगध क्षेत्र में लम्बे समय तक कायम रही। किन्तु अनेक कारकों के प्रभाववश अब यहाँ की जल-व्यवस्था काफी हद तक छिन्न-भिन्न हो गई है।

एक लाख जल निकायों की बहाली (रिपेयर, रिनोवेशन, रिस्टोरेशन वाटरबॉडीज स्कीम)

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 4000 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत पर घरेलू समर्थन के साथ, 9 लाख हेक्टेयर के जलग्रहण क्षेत्र वाले एक लाख जल निकायों की बहाली, मरम्मत और नवीनीकरण करने की योजना को मंजूरी दे दी है। योजना के पूरा होने के बाद लगभग 4 लाख हेक्टेयर. अतिरिक्त सिंचाई क्षमता के निर्मित होने की संभावना है। योजना में ऐसा माना गया है कि राज्य आवश्यक सार्वजनिक जलनिकायों की संख्या को ध्यान में रखते हुए परियोजना तैयार करेंगे, ये जलनिकाय सरकारी जमीन पर जैसे- ग्राम पंचायत / नगर पालिकाओं / निगमों, कृषि अथवा संबंधित क्षेत्र में पंजीकृत सोसायटी/ सार्वजनिक ट्रस्ट आदि की जमीन पर होने चाहिए। निजी स्वामित्व वाले जल निकायों को वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी।

RRR योजना के मुख्य उद्देश्य हैं:

बिहार भूगर्भ जल अधिनियम

बिहार भूगर्भ जल अधिनियम का मूल ड्राफ्ट यहां संलग्न है। 29 जनवरी 2007 को पारित इस अधिनियम में भूगर्भ जल प्राधिकरण के निर्माण का प्रावधान था।

भूगर्भ जल विकास के साध ही जल प्रबंधन और नियमन की वैधानिक ताकत भी इससे भूगर्भ जल प्राधिकरण को प्राप्त होती है।

जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग

उत्तरप्रदेश सरकार ने “जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग” संबंधी अधिनियम बना लिया है। उत्तरप्रदेश में जल संसाधनों का अंधाधुंध दोहन अब संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आ गया है। राज्यपाल टीवी राजेस्वर ने ‘उत्तर प्रदेश जल प्रबंधन एवं नियामक आयोग विधेयक 2008’ को मंजूरी दे दी है। इस कानून में जल संसाधनों को विनियमित करने, इसका विवेकपूर्ण उपयोग करने, कृषि कार्यो के लिए समुचित प्रयोग करने तथा भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन पर अंकुश लगाने का प्रावधान है। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने पर एक से लेकर तीन साल तक की कैद तथा अर्थदंड का प्रावधान है।

 

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