चाय उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोतरी के प्रयास शुरू , पालमपुर में पहला टी-फेयर 14 दिसंबर को

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पालमपुर उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोतरी को लेकर प्रयास शुरू किए जा रहे हैं। सरकार अधिक से अधिक चाय क्षेत्र को व्यवसायिक उत्पादन के अंर्तगत लाने और इसका उत्पादन तथा बिक्री बढ़ाने की मंशा के तहत काम करने जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान कायम रहे और इसके निर्यात को बढ़ाया जा सके इसके लिए पहले पालमपुर में टी-फेयर का आयोजन किया जा रहा है, जिसके बाद मार्च-अप्रैल में टी-फेस्टिवल भी प्रस्तावित है। कांगड़ा टी को प्रचारित कर इसकी बिक्री को बढ़ाने के लिए कृषि विभाग द्वारा प्रायोजित पहला टी-फेयर 14 दिसंबर को सीएसआईआर-हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान में किया जा रहा है।

इस समारोह के मुख्यातिथि कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर होंगे, यह कृषि विभाग एवं सीएसआईआ- हिमाल्य आईएचबीटी का कांगड़ा-टी को प्रोत्साहित करने का पहला बड़ा संयुक्त प्रयास है। इस फेयर में प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें कांगड़ा चाय से जुड़े विभागों जिनमें सीएसआईआर और कृषि विभाग के अतिरिक्त प्रदेश कृषि विशवविद्यालय और टी बोर्ड इंडिया के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा प्रदर्शनी में भाग लिया जाएगा। इसके अतिरिक्त पालमपुर को-आपरेटिव टी फैक्टरी और कांगड़ा चाय से जुड़े बड़े उद्यमी जिनमें धर्मशाला टी कंपनी, हिमालयन ब्रू, वाह टी एस्टेट, मांझी वैली टी फैक्टरी और अन्य छोटे स्तर पर कार्य कर रहे चाय उद्यमी तथा स्वयं सहायता समूहों द्वारा कांगड़ा चाय की अलग-अलग वैरायटी को प्रदर्शित किया जाएगा। कृषि विभाग के तकनीकि चाय अधिकारी डा. सुनील पटियाल ने बताया कि फेयर के दौरान विशेषज्ञ चाय उत्पादकों को चाय की नई किस्मों के बारे में बताएंगे।

राष्ट्रीय पेय घोषित करने की सिफारिश
2012 में पूर्व सांसद शांता कुमार की अगवाई वाली समिति ने चाय को राष्ट्रीय पेय का दर्जा दिए जाने का आग्रह किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि देश के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में चाय का सेवन करने वालों का आंकड़ा 96 प्रतिशत से लेकर 99 प्रतिशत तक है। रिपोर्ट में कहा गया था कि चाय को राष्ट्रीय पेय घोषित किए जाने से चाय उद्योग को अंतरराष्ट्रीय बाजार में विशेष पहचान मिलेगी तथा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। यह उद्योग कठिन दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में है जहां और कोई उद्योग नहीं हो सकता। चाय उद्योग इन क्षेत्रों की गरीब पिछड़ी आबादी के रोजगार का साधन है।

45 फीसदी भूमि पर उत्पादन
इस समय प्रदेश में 2311 हेक्टेयर भूमि चाय के अंतर्गत है, जिसमें लगभग 5900 किसान-बागबान जुड़े हुए हैं। इनमें से 96 प्रतिशत किसानों के पास आधा हेक्टेयर या उससे भी कम भूमि है। 2311 हेक्टेयर क्षेत्र में से 47 फीसदी भूमि पर ही अभी व्यावसायिक उत्पादन हो रहा है।

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