◆◆◆◆◆◆वेवाक कलम ◆◆◆◆◆◆
◆ जो दिल्ली गया वो दिल से उतर गया…
◆ सबकी चुगली-सबका सत्यानाश की राह पर हिमाचल भाजपा
निचले हिमाचल में एक कहावत है, “पुंडा-पण्डारिया कितना कर भार, इक्क मुठ्ठ चुक्क, दुई त्यार” यानि कोई किसी मुसीबत से जूझ रहे मजबूर आदमी से पूछता है कि कितना भार है ? जवाब में बंदा कहता है कि मुसीबत हटती ही नहीं। एक से छुटकारा मिलता नहीं,दूसरी सिर पर आ जाती है। कमोवेश यही हालात और हालत हिमाचल भाजपा और सरकार की बन गई है।
एक मंत्री के खिलाफ मामला उठा तो सरकार के उठने जैसे हालात बन गए। वो मंत्री जी दिल्ली पहुंचे तो खबर आई कि वो किन्हीं और मंत्री जी की सियासी कब्र खोद आए हैं। अगली खबर आई कि इसके बाद दूसरे मंत्री जी दिल्ली दौड़ गए। अब आलम यह हो गया है कि सरकार का कोई मंत्री सरकारी काम के लिए भी दिल्ली जा रहा है,तो हल्ला हो जा रहा है कि यह साहब भी किसी न किसी सन्देह के घेरे में होंगे,तभी दिल्ली जा रहे हैं। सूचना है कि एक और तीसरे मंत्री भी विभागीय काम से दिल्ली निकले हैं तो चौथे मंत्री भी मंगलवार शाम को दिल्ली निकलने के लिए तैयार । यह चौथे मंत्री शायद सरकार और संगठन पर छाई विवाद की काली घटाओं को हटाने के लिए विशेष मिशन पर जा रहे हैं। मगर जनता में यह धारणा बनती जा रही है कि दिल्ली में वही जा रहे हैं जो आरोपों के घेरे में हैं। जबकि कई नेताओं के दौरे प्रशाशनिक वजहों से भी चले हुए हैं। अविश्वाश का आलम यह है कि जनता हर नेता के दौरे को सन्देह की नजर से देख रही है।
आलम यह हो गया है कि जनता में सरकार की छवि लगातार तार-तार होती जा रही है। मीडिया जितने खुलासे कर रहा है,उससे कहीं ज्यादा जनता सोशल मीडिया पर खुलकर सरकार पर हमले बोल रही है। हैरानी की बात यह भी है कि सरकार और हाईकमान की तरफ से डैमेज कंट्रोल की कोई बात सामने नहीं आ रही। सब एक ही चक्की में बारीक पीसे भी जा रहें हैं और पिस भी रहे हैं। कौन गुनाहगार कौन बेगुनाह अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो चुका है।
हर खबर झूठी-सच्ची खबर यही इंगित कर रही है कि कहीं न कहीं भाजपा में शुरू हुआ सबकी चुगली सबका सत्यानाश अभियान घातक हो चुका है। विपक्ष की भूमिका के जनता ही निकली हुई नजर आ रही है। हैरत की बात यह है कि सरकार और संगठन तो दूर की बात भाजपा के आईटी सेल की तरफ से मैनेजर नहीं आ रहे। भाजपा का आम कार्यकर्ता भी सन्नाटे में है और समर्थक भी। निठल्ली बैठी हिमाचल कांग्रेस के संगठन को इस माहौल में बिना किसी मेहनत के पॉलिटिकल और सोशल बैकअप मिल रहा है।
सियासी माहिर भी यह कह रहे हैं कि यह माहौल कहीं भाजपा के लिए गले की फांस न बन जाए। कोरोनाकाल में घर पर बेकार बैठी जनता की नजरें भी हर उस सरकारी कार पर है जो दिल्ली आना-जाना कर रही हैं। राजनीतिक घटनाक्रमों का जनता पर असर मनोवैज्ञानिक तरीके से हो रहा है। सरकार में हो रही एडजस्टमेंट्स से बेरोजगार हुए लोग और युवा वर्ग खासा नाराज है। सवाल सीधा है कि जनता की उम्मीदों के उजड़े चमन पर नेताओं के लिए बहारों का बंदोबस्त क्यों किया जा रहा है ? नेता अपने-अपने रोजगारों को हासिल करने और बचाने के लिए दिल्ली दौड़ रहे हैं। आम आदमी कहाँ जाए ? जाहिर सी बात है कि अभी यह हालत है कि जो दिल्ली जा रहा है,वो जनता के दिल से उतर रहा है,अगर हालात नहीं सुधरे तो कहीं साल 2022 में हालत गद्दी से ही ..