“भूकम्प” : सियासी मंदिर होने लगे टेढ़े-सीधे
भाजपा की पुरानी सरकारों के लिए हमेशा की तरह कांगड़ा एक बार फिर जयराम सरकार के लिए भूकम्प का केंद्र बन गया है। खबर आ रही है कि कांगड़ा का एक मंत्री जल्द ही जाएगा और दूसरा फिर से कांगड़ा का ही आएगा। सियासी भूकम्प के झटके लगातार आ रहे हैं। इन झटकों की पुनरावृत्ति इतनी जल्दी-जल्दी हो रही है कि कभी किसी मंत्री का मंदिर टेढ़ा हो रहा है तो कभी किसी का सीधा होता नजर आ रहा है।
इस माहौल में जो खबर अब आ रही है वह यह खुलासा कर रही है कि सरकार कांगड़ा को स्थिर करने के लिए बड़ा फैसला लेने जा रही है। इसके तहत कांगड़ा के एक मंत्री जी बाहर होंगे और एक इसका हिस्सा बन जाएंगे। कांगड़ा की जमीन को उपजाऊ बनाए रखने के लिए यह फैसला इसलिए जरूरी बताया जा रहा है ताकि साल 2022 में सत्ता से फासला कांगड़ा की वजह से न बने।
दरअसल,इस खबर के पीछे की जो खबर है,वह सबसे ज्यादा दिलचस्प है। पुख्ता सूत्रों के मुताबिक कांगड़ा वाले मंत्री जी के खिलाफ़ हल्ला इसलिए कानफाड़ू होता जा रहा है कि चंद महीने पहले इसी तरह के कथित भर्ष्टाचार के आरोप में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल की कुर्सी चली गई थी। हालांकि तब डॉ बिंदल के खिलाफ न तो कोई सबूत था और न ही उन्होंने कोई तथ्य स्वीकार किया था। जबकि कांगड़ा के किस्से में सब इससे विपरीत हुआ था। जिला सिरमौर के डॉ साहब नैतिकता की दुहाई देते हुए शहीद हो गए थे,और हाईकमान ने भी उनका कोई पक्ष नहीं सुना था। बस हाईकमान ने इतनी कृपा बरसाई थी कि डॉ साहब के इस्तीफे को बिना लटकाए, डॉ बिंदल को लटका कर रख दिया था। जबकि कांगड़ा में प्रदेश भाजपा और सरकार की तरफ से अभी तक ऐसा कुछ भी किसी भी तरफ से नहीं हुआ। ऐसे में अब सरकार और हाईकमान पर दोहरे मापदंडों समेत भेदभाव के आरोप भी लगने शुरू हो गए हैं।
ऐसे में अब नैतिकता और कार्यवाही के नाम पर सरकार और संगठन दोनों ही आम जनता समेत कार्यकर्ताओं की नजरों में कटघरे में खड़ा हो गए हैं। ऐसे में फिलवक्त यह तय हुआ बताया जा रहा है कि जनता में सरकार की छवि को सुधारना है तो सरकार को भी सुधरना होगा। हार्ड स्टेप्स हर एक के लिए बराबर के उठाने होंगे।
इसी कड़ी में फिलवक्त यह फैसला हुआ बताया जा रहा है कि कांगड़ा के एक मंत्री को हटा कर फिर से कांगड़ा के ही दूसरे किसी नेता को मंत्री बनाया जाए। हालांकि अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि किसी स्थापित नेता को उनका मौजूदा पद बदल कर मंत्री बनाया जाएगा ?
कयास लग रहे हैं कि सरकार वर्ग विशेष के घाटे को पूरा करने के लिए उसी वर्ग के दूसरे नेता की अदला-बदली उस पद पर बैठे व्यक्ति के साथ की जा सकती है,जिन्हें कैबिनेट में लाने पर चिंतन चला हुआ है।
खैर, कांगड़ा भूकम्प का केंद्र बना हुआ है और इसकी कम्पन की तरंगे दिल्ली-शिमला तक जा रही हैं। हाईकमान के आगे सवाल यह है कि बवाल में घिरी हिमाचल सरकार को बाहर कैसे लाया जाए? जबकि शिमला में हाल यह है कि अढाई साल बाद लड़ना कैसे है ? कांगड़ा में आए 1905 के भूकम्प में जिस तरह कई मंदिर ध्वस्त हुए थे,कई टेढ़े हो कर रह गए थे,आज भी सियासत में ऐसे ही हालात बने हुए हैं। किसी मंदिर के ध्वस्त होने की आशंका है तो किसी सुनसान हुए मंदिर में रौनक आने की संभावनाएं अभी तो नजर आ ही रही हैं…