तीसरा मोर्चा या उम्मीदों की किरण

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बिशेष समवदाता
तीसरा मोर्चा,तीसरा मोर्चा… यह हल्ला खूब गूंजा हुआ है। इस हल्ले को बल तब मिला जब जीएस बाली ने इस आग में अपने ब्यान का घी डाला। पर क्या असल मे हिमाचल में तीसरे मोर्चे का कोई स्थान है ? यह इसलिए बड़ा सवाल है कि जिन पंडित सुखराम का सही मायनों में चर्चाओं का लायक वजूद था,वह भी तीसरा मोर्चा बना कर कोई बड़ा तीर नहीं मार पाए थे। भाजपा को जरूरत थी और पंडित जी के पास मौका था।

खैर,इस बार चिंगारी कांग्रेसी नेता बाली के घर से उठी है तो हल्ला जायज माना जा रहा है। शायद बाली को यह उम्मीद है कि पड़ोसी घर मे बैठी भाजपा के भी कुछ लाल मौजूदा दौर में अपनी ही सरकार की बेवफ़ाई से “नीले-पीले” होकर साथ खड़े हो जाएंगे। इसमें भी कोई शक नहीं है कि भाजपाई कुनबे के प्रदेश भर ऐसे कई चेहरें हैं जो सरकारी बेवफ़ाइयों से तंग हैं और उनको अपने पुनर्वास की कोई उम्मीद भी नहीं है। ऐसे में बाली के इस तीसरे मोर्चे के सपने की जमीन को कच्चा भी नहीं आंका जा सकता।

खुन्नस से सने बैठे भाजपाई कुनबे की चर्चा फिर कभी सही,फिलवक्त कांग्रेसी बाली के ख्वाब की जमीन को परखते हैं। दरअसल,बीते विधानसभा चुनावों में जीएस बाली सरीखे बहुत से नेताओं को जनता ने नकार दिया था। पर बाली का रुतबा उनकी सियासी हरकतों की वजह से टॉप रहा था। वीरभद्र सिंह और उनके सिपाहियों के साथ उनकी जंग पूरे पांच साल जारी रही। पर एक हार ने सब बिगाड़ कर रख दिया।

बाली घर पर बैठ गए और कांग्रेस में उनके मुकाबले दूसरे ब्राह्मण नेता मुकेश अग्निहोत्री नेता विपक्ष बन गए। जबकि बाली ने कांग्रेसी सियासत में अपना रुतबा सबसे बड़े जिला कांगड़ा के साथ सर्वमान्य ब्राह्मण नेता का भी बनाने के ताकत झोंकी हुई थी। पर सब उल्ट-पुल्ट हो गया। सदन से बाहर रहने का नतीजा यह हुआ कि ब्राह्मण कोटे से मुकेश के लीडर ऑफ ऑपोजिशन बनने से वह प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में भी पिछड़ गए । क्योंकि दो ब्राह्मण दो बड़े पदों पर काबिज नहीं हो सकते थे। सियासी माहिर मानते हैं कि बस यहीं पर सब गड़बड़ हो गया।

मुकेश जितना आगे बढ़े बाली उतने ही पिछड़ते चले गए। कांगड़ा में सियासी भांगड़ा इसलिए भी जरूरी हो गया कि मुकेश से टकराने के लिए जरूरी सुधीर शर्मा भी हार गए थे। जबकि सुधीर शुरू से ही बाली के बल को निगलने के प्रयासों के लिए मशहूर रहे हैं। ऐसे में बाली का तीसरे मोर्चे के लिए बयान सियासत में गलत नहीं आंका जा सकता। कांगड़ा में बाली का साथ देने वाले अपने हैं नहीं और जो हैं उनपर बाली चाहकर भी भरोसा नहीं कर सकते। ऐसे में घर-घर की लकड़ी का अलाव तीसरे मोर्चे के लिए जलाना जरूरी भी है। सुधीर शर्मा पर बाली को हरवाने और बाली पर सुधीर को सदन के बाहर सूली पर लटकाने के आरोप किसी से छुपे नहीं हैं।

ऐसे में बाली को पुनः अपना बल हासिल करने के लिए तीसरे मोर्चे की बात शायद कहनी पड़ी है। पर सवाल यह हैं कि क्या यह प्रयोग सफल होगा ? मुकेश के क्लेश को खत्म करने के लिए क्या अब कांग्रेस में कांगड़ा से ही किसी भांगड़े का आगाज होगा ? कायदे से देखा जाए तो कांग्रेस के भीतर तीन पंडित बवाल की वजह बन रहे हैं। हसरतें जवान हो रही हैं। फर्क इतना है कि मुकेश कांग्रेस की सीढ़ी पर डटे हुए हैं। सुधीर के सियासी इंद्रजाल को कोई समझ नहीं पाता है। बाली के बल पर किसी कोई शक नहीं है। मगर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि बाली को क्या तीसरे मोर्चे के लिए दुखी भाजपाइयों का बल मिल पाएगा ? क्या मण्डी वाले पंडित जी की तरह कांगड़ा वाले पंडित जी की किस्मत साथ देगी ? शक इसलिए है कि पंडित सुखराम को जब यह सुख मिला था,तब सामाजिक हालात कुछ और थे,अब कुछ और हैं । बाली तीसरे मोर्चे के लिए वही दशकों पुराने रोजगार और पदयात्राओं का जिक्र करके अपना फिक्र जता रहे हैं। कोई नयापन नहीं है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि इस ऐलान से बाली की कांग्रेस के प्रति निष्ठाओं पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। भाजपा में यह बवाल है कि कहीं बाली ने कोई खेल खेला तो उनके परिवार में से कितने योद्धा पाला बदल कर मौजूदा सरकार से बदला लेंगे…

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