अमानत में ख्यानत के बवाल शुरू

Date:

◆ जर-जमीन के फेर में भाजपा का ज़मीर
विशेष संवाददाता
भाजपा का असल मतलब भारतीय जनता पार्टी नहीं बल्कि भले-मानुष जनता पार्टी है। भाजपाई इतने भोले हैं कि पूछिये ही मत। असहज होने की जरूरत नहीं है। सबूत है इस बात का कि सच में पार्टी से जुड़े लोग सच में भले मानुष हैं। अगर भोले न होते तो साल 2016 में उस भाव पर जमीन न खरीदते जो भाव आज साल 2020 के मध्य में है। इतने “भोले” थे भाजपाई कि जमीन का जो भाव साल 2016 में सरकारी औसत रेट के हिसाब से करीबन सवा दो लाख रुपए प्रति बिस्वा था,वो साढ़े चार लाख रुपए प्रति बिस्वा के लिहाज से खरीदा। इनके भोलेपन की दाद देना इसलिए भी जरूरी है कि साढ़े चार लाख प्रति बिस्वा का रेट आज है। पर जब पार्टी का दिल दरिया हो तो सौदों में कोई समंदर बन जाए तो कोई बुरी बात नहीं है।

शुक्रवार को सोलन भाजपा को पता लगा कि उसने जो जमीन जिला भाजपा के दफ्तर के लिए कांग्रेस के कार्यकाल में जमीन ली थी,उसको कोई भाजपा के ही सत्ताकाल में निगल गया है। चलिए,भोलेपन को किनारे पर रखिए और उस खबर की गहराई में उतरते हैं,जिसके भंवर में भाजपा फंस गई है।

दरअसल,खबर इतनी नहीं है कि भाजपा के साथ कोई आम आदमी धोखा कर गया है। खबर यह है कि भाजपा ने अमित शाह के साथ ही धोखा कर दिया है। साल 2016 में शाह साहब के ड्रीम प्रोजेक्ट में यह तय हुआ था कि हिंदुस्तान के हर प्रदेश में पार्टी के अपने दफ्तर बनेंगे और जिला स्तर पर भी पार्टी अपने जिला कार्यालय बनाएगी। हाईकमान ने भी धन मुहैया करवाया। बाकायदा कमेटी गठित की और भूमि चयन समेत निर्माण का खाका भी बना कर दिया।बताया जा रहा है कि सोलन में भी इसी ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत जमीन खरीदी गई। बस यहीं अमानत में ख्यानत के बवाल शुरू हुए और मामला जगजाहिर हो गया।

सोलन जिला के नए प्रधान जी ने पड़ताल की तो खुलासा हुआ कि यहां तो जमीन ही नहीं है। मामला पुलिस की दहलीज को लांघा तो कईयों के पेट नंगा होने की बात अब उठ गई है। इस सौदे में विक्रेता तो दूर की बात,मध्यस्थ नेता जी पर भी सवाल उठ गए। खैर,अब सवाल कम और बवाल ज्यादा हो गऐ हैं।

अब दुनिया भी सवाल कर रही है और भाजपा में भी बवाल उठ गया है। अमित शाह के सपने को लपेटे में लेने वालों पर सवाल उठ रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। सबसे हैरानीजनक हल्ला यह है कि जिस जमीन विक्रेता को नामजद किया गया है,उनको आम आदमी क्लीन चिट दे रहा है और भाजपा नेताओंको कटघरे में खड़ा कर रहा है।

खप्प पड़ी हुई है कि सौदा कम में हुआ था। जब यह शोर विक्रेता के कानों तक पहुंचा कि सौदा करीबन एक करोड़ का है और उसके खाते में चौथा हिस्सा ही आ रहा है तो उनकी नियत भी डगमग हो गई। पर भाजपा से यह चूक हुई थी कि 90 लाख में 85 लाख देने के बावजूद भी रजिस्ट्री उसके नाम नही हुई थी। सो अगला ग्राहक भी थाम लिया और भाजपा से दामन छुड़ा लिया। करीबन 26 लाख में वो जमीन दोबारा इसी साल फरवरी में बिक गई। यहां यह सवाल उठता है कि आखिर सौदों की कीमत के लिए सरकारी कायदे भी कहाँ हैं ? औसत जो तब और अब बताई जा रही है,तो असल मे सर्किट रेट हैं क्या ? खैर यह प्रशाशनिक छानबीन का मसला है।
अभी तो मसला यह है कि आखिर 2016 में जमीन का सौदा करने वालों ने क्या सोच कर अमित शाह के सपने को तीली लगाई थी जो इतने रेट पर जमीन मुहैया करवाई ? जब रजिस्ट्री भी नहीं हुई थी तो 85 लाख रुपयों की अदायगी कैसे कर दी ? कर भी दी तो रजिस्ट्री क्यों नहीं करवाई ? अब तो सरकार भी भाजपा की है और दबदबा भी भाजपा का है ?

सोलन गरमाया हुआ है और भाजपा ठंडी पड़ी हुई है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि अमित शाह से भिड़ने की ताकत अपनों में कहां से आ गई ? खुद भाजपा और विपक्ष यह मानते हैं कि गुजराती मोटा भाई महीन सी भी गलती बर्दाश्त नहीं।करते हैं । अब यह भी नहीं कहा जा सकता कि,” जो हुआ सो हुआ । ” यह जो हुआ है वह सच मे अच्छा नहीं हुआ है। जर-जमीन के चक्कर मे भाजपा का ज़मीर सूली पर लटका हुआ नजर आ रहा है। इसके आगे की खबर जो आ रही है,वह भाजपाई जमात की जान को सांसत में डालने वाली है। फिलवक्त तो यही कहेंगे कि रेल तहकीकात की पटरी पर आगे बढ़ रही है और जल्द ही कुछ डिब्बे पटरी से उतर सकते हैं,आखिर विधानसभा चुनावों को भी तो वक़्त कम रह गया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related