कवि चिराग जैन की कलम से:-
कभी हमने सुना था कि आपके जीवन का आकलन इस बात से किया जाता है कि आपके दुनिया से जाने के बाद लोग आपके बारे में क्या बोलते हैं। लेकिन अब लगता है कि किसी भी व्यक्ति के भीतर के घटियापन का आकलन इस बात से किया जाना चाहिए कि वह किसी की मौत को भुनाने के लिए किस हद तक नीचे गिर सकता है।हम आजकल
इस हद तक ढोंगी हैं कि किसी की मृत्यु तक का फायदा उठाना चाहते हैं। हमारा मीडिया किसी के मरते ही न्यूज़ बुलेटिन, कैप्सूल और पैकेजिंग की मारामारी में लग जाता है। कल्पना करो तो आत्मा काँप जाती है कि क्या माहौल होता होगा न्यूज़ रूम का। अरे बॉडी के शॉट आए क्या, अरे प्रोम्पटर पे देख कोई अपडेट है क्या, ब्रेकिंग प्लेट बनवाओ हरे रंग के कपड़े से लटका था, हॉस्पिटल लाइन अप करो, ओबी लगवाओ, ओए बाप के शॉट आ गए, जल्दी फ्लैश कर, सुसाइड का कोई पुराना एनिमेशन निकाल यार, अमिताभ का ट्वीट लगा, बहन की बाइट ले, दोस्त रो रहा है, उसको बोल क्लोज़ अप ले।
अब तो घृणा भी नहीं होती। कुछ लोग ऐसी ख़बर आते ही तुरन्त ट्वीट करके यह जताते हैं कि मरने वाले से उनका गहरा दोस्ताना था। हर मरे हुए आदमी को संबोधित करके ट्वीट करते हुए बची हुई दुनिया में यह ढिंढ़ोरा पीटते हैं कि दुनिया के सारे सेलिब्रिटीज़ उनके खासम-ख़ास हैं। यह और बात है जिससे व्यक्तिगत सम्बन्धों का दावा किया जाता है, वे उनसे किसी भी सोशल प्लेटफॉर्म पर कनेक्टेड नहीं होते।
तीसरी क़िस्म के लोग मनुष्यता की सीमा के पार जाकर भी अपने एजेंडे के प्रति कटिबद्ध हैं। किसी के मरते ही उनके भीतर का हिन्दू, उनके भीतर का मुस्लिम, उनके भीतर का वामपंथी, उनके भीतर का राष्ट्रवादी, उनके भीतर का सेक्युलर, उनके भीतर का सवर्ण, उनके भीतर का दलित अथवा उनके भीतर का भारतीय सक्रिय हो जाता है और उनके भीतर मर चुके मनुष्य के शव पर नंगा नाच करने लगता है। वे बेशर्मी से बताते हैं कि मरने वाला गद्दार था, उसका मर जाना ही ठीक था। वे ढिठाई से सोशल प्लेटफार्म पर लिखते हैं कि उसने फलानी फ़िल्म में मुस्लिम का रोल किया था इसलिए उसके मरने पर दुःखी नहीं होना चाहिए, उसने फलाने शो में यह कहा था, इसलिए उसका मर जाना ठीक है।
मैं कई बार सोचता हूँ कि जिस रावण ने राम जी की पत्नी का अपहरण किया, उस तक की मृत्यु पर राम संज़ीदा हो गए थे। फिर किसकी उपासना करते हैं ये मृत्यु के बाद किसी को गाली देने वाले लोग। फिर स्वतः ही उत्तर मिलता है, कि राम के जीवन के आदर्श मनुष्यों के लिए अनुकरणीय हैं, जो पहले ही अपने भीतर के इंसान की हत्या किए बैठे हैं, जिन्हें किसी मानव की मृत्यु से क्षोभ नहीं होता, उनको राम के आदर्शों की मृत्यु से कहाँ कष्ट होता होगा।
किसी की मृत्यु के होने के बाद बची हुई दुनिया में जो काँव-काँव होती है उसे देखकर समझ आता है कि हमारे पुरखों ने मृत्यु समाचार सुनने के बाद दो मिनिट के लिए मौन हो जाने की परिपाटी क्यों बनाई थी।
लेखक :- कवि चिराग जैन
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