महोहिंद्र नाथ सोफट
*शांता कुमार की देश के राजनेताओं मे अलग पहचान* है। वह अपने सिद्धांतों, विचारों के प्रति प्रतिबद्धता, कठोर निर्णयों और गरीबों के उत्थान के लिये चलाये गये अपने कार्यक्रमों के लिए जाने जाते है। उनके *कई निर्णय ऐसे* है *जो* उन्हें *अन्य नेताओं से अलग* खड़ा करते है। मुझे *सौभाग्य से लम्बे समय तक उनके साथ काम करने का अवसर* प्राप्त हुआ है। 1986 मे *आदरणीय शांता जी* जब *प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष* बने तो उन्होंने *मुझे प्रदेश सचिव के रूप मे अपनी टीम मे शामिल किया* था। प्रदेश सचिव रहते हुए मैं अध्यक्ष जी की कोर टीम और उनके विश्वास पात्रों की टोली मे भी शामिल था।
आज की अवसरवादी राजनीति मे *वह देश के कुछ एक सिद्धांतवादी नेताओं मे से एक* है। आपातकाल के बाद *1977 मे* हिमाचल मे बनी जनता पार्टी की सरकार के वह *पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री* थे। उस समय उनकी बेटी मेडिकल मे दाख़िला लेना चाहती थी। जब अफसरों ने उन्हे बताया कि आप *मुख्यमंत्री कोटे से बेटी को दाखिला सरलता से* दे सकते हो तो उन्होंने अफसरों से कहा कि मेरी बेटी को तो दाखिला मेरे कोटे से मिल जाएगा, परन्तु *उस बच्ची का क्या होगा जो अपनी योग्यता के साथ इस सीट की हकदार* है। यह कह कर उन्होंने एम बी बी एस मे *मुख्यमंत्री का दो सीटों का ऐच्छिक कोटा समाप्त कर दिया* था।
1977 मे आपने मुख्यमंत्री के तौर पर *गांव-गांव मे पानी पहुंचा कर* और *गरीब के लिये अन्त्योदय जैसे कार्यक्रम* चला कर *जन नायक का दर्जा प्राप्त* कर लिया था। अढ़ाई साल बाद ही जनता पार्टी अपने भीतरी विवादो के चलते विघटित हो गई थी। जनता पार्टी के बहुत से विधायकों ने पार्टी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था, परन्तु तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता जी ने जाने वाले विधायकों से तोल भाव न करते हुए *अल्प मत मे आते ही मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र* दे दिया था। मजेदार बात है कि शांता जी को अपने सिद्धांतों के चलते मुख्यमंत्री पद के जाने का कोई अफसोस नही था। राज्यपाल जी को *त्याग पत्र सौपने के तुरंत बाद* वह अपने कुछ सहयोगियों के साथ *जुगनु फिल्म का आनंद उठाने चले गए* थे। शांता कुमार जी राजनीति मे परिवारवाद के खिलाफ़ है। आज *शांता जी हिमाचल के तीन वरिष्ठ स्थापित नेताओं मे से एक* है, *परन्तु परिवार को राजनीति से दूर रखने के मामले मे बस एक मात्र अपवाद* है।
1977 मे अपने छोटे से कार्यकाल मे जो उन्होंने प्रदेश हित मे काम किये थे उसके और उनकी लोकप्रियता के चलते *भाजपा जैसी नई पार्टी 1982 के विधानसभा के चुनाव मे 29 सीटें जीतने मे सफल* रही थी। दो सीटें जनता पार्टी ने जीती थी। यानी की कांग्रेस, गैर कांग्रेसी भाजपा और जनता पार्टी बराबर सीटें जीत पाये थे। 6 लोग निर्दलीय के तौर पर जीत कर आये थे। भाजपा के कुछ नेता निर्दलीयो को साथ मिला कर सरकार बनाना चाहते थे, परन्तु *शांता कुमार जी के सिद्धांत* उन्हे इसकी अनुमति नही दे रहे थे। उस समय भाजपा के शीर्ष नेता अटल जी जयपुर मे थे। शांता जी ने फोन पर अपने मन की बात उनसे कही और आदरणीय अटल जी ने वहीं से ब्यान जारी कर कह दिया कि *हिमाचल मे जनता ने* हमे *विपक्ष मे बैठने के लिये वोट दिया* है और हम हिमाचल मे विपक्ष की भूमिका अदा करेंगे। इस प्रकार पार्टी मे चल रही दुविधा समाप्त हो गई थी