पालमपुर- उम्र के इस पड़ाव में एक शहीद के मां-बाप की आंखों की रोशनी मद्धम होती जा रही है, पर उनको आस है अपने वीर बेटे की प्रतिमा देखने की। 20 वर्ष पूर्व जांबाज पुत्र ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। वीरता की मिसाल कायम करने वाले शहीद मेजर सुधीर वालिया को शांतिकाल के सर्वोच्च सम्मान ‘अशोक चक्र’ से नवाजा गया। जवान बेटे को खोने का दर्द दिल में लिए माता-पिता दो दशक से अपने पुत्र की प्रतिमा स्थापित किए जाने की राह ताक रहे हैं। परजिनों के दिल का दर्द जब छलका, तो बेटे को मिले ‘अशोक चक्र’ उपमंडल अधिकारी की मेज पर रख दिए। सवाल यही था कि जिस वीर सपूत को देश ने सर्वोच्च सम्मान दिया, उसकी एक प्रतिमा तक प्रदेश सरकार स्थापित नहीं कर पाई। मेजर सुधीर वालिया के पिता सुबेदार रुलिया राम और माता राजेश्वरी देवी की सेहत खराब रहती है। बेटे की शहादत के 20 वर्ष के दौरान न जाने कितनी बार प्रतिमा को लेकर बात की गई। बीते वर्ष जब परिजनों ने शहीद बेटे के मेडल लौटाने की बात कही, तो मामला प्रशासनिक पत्राचार तक पहुंचा, लेकिन उसके आगे कुछ नहीं हो पाया। भाजपा सरकार सत्ता में है तत्कालीन जिला भाजपा अध्यक्ष व मंडल अध्यक्ष के माध्यम से इस संदर्भ में मुख्यमंत्री को पत्र भी भेजा गया, जिसमें शहीद की पुण्यतिथि पर 29 अगस्त को प्रतिमा के कार्य का शिलान्यास किए जाने का आग्रह किया गया था। वहीं अपने शरीर पर शहीदों के टैटु बनवाकर श्रद्धांजलि देने वाले अभिषेक गौतम भी लंबे समय से इस परिवार के साथ प्रतिमा स्थापित करवाने को प्रयासरत हैं। कारगिल युद्ध के बाद 1999 में कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए मेजर सुधीर वालिया ने शहादत पाई थी। अशोक चक्र, दो बार सेना मेडल और करीब एक दर्जन अन्य मेडल जीतने वाले मेजर वालिया के परिजन अब 26 जनवरी को इस संदर्भ में घोषणा किए जाने की आस लगाए हैं।
अशोक चक्र विजेता शहीद मेजर सुधीर वालिया के परिजनों को मलाल
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