सेब की सघन बागवानी का कोहिनूर-श्रीकान्त

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आनी /चमन शर्मा

वो कहते हैं न कि जब हौसला हो ऊँची उड़ान का तब कद देखना फिज़ूल है आसमान का।यह साबित कर दिखाया है युवा और प्रगतिशील बागवान श्रीकान्त ने आज सेब बागवानी में एक ऐसा नाम है जो शायद किसी परिचय का मोहताज नहीँ।कुल्लू जिले के आनी क्षेत्र के गांव कुपटू के इस युवा बागवान ने सेब की सघन बागवानी के क्षेत्र में ऐसा काम कर दिखाया है जिसकी चर्चा न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि सेब उत्पादन करने वाले अन्य राज्यों उत्तराखंड एवं जम्मू कश्मीर तक हो रही है।इस युवा बागवान से प्रेरित हो कर हिमाचल, उत्तराखंड एवं जम्मू कश्मीर के युवाओं को अब ये विश्वास हो चला है कि सेब की बागवानी में अपना भविष्य बनाया जा सकता है।मॉडलिंग एवं रैंप की दुनिया में पहचान बना चुके श्रीकांत को कुछ परिस्थितियों की वजह से जब घर लौटना पड़ा तो श्रीकांत ने सेब के पुराने बीजे पौधों पर साल दर साल घटती फसल, फ्रूट क्वालिटी एवं हाई ऑर्चर्ड मैनेजमेंट और लेबर कॉस्ट को देखते हुए वर्ष 2016 में सेब की सघन बागवानी की तरफ रुख करने के फैसला किया।इन्टरनेट एवं प्रदेश के बागवानी विशेषज्ञों से इस विषय में जानकारी लेते हुए श्रीकांत ने पाया कि सेब की सघन बागवानी के लिए सबसे पहले सेब की सही पौध का होना अनिवार्य है सघन बागवानी के लिए नर्सरी से ऐसे पौधें चाहिए जिसमें कम से कम 5-7 फैदर (टहनियां )हो।जब श्रीकांत ने नर्सरियों से ऐसे पौधों के लिए संपर्क किया तो पाया कि ऐसी पौध कोई भी नर्सरी तैयार नहीं कर रही थी सभी नर्सरियों में केवल सिंगल व्हिप(एक टहनी की पौध)उपलब्ध थी।श्रीकांत के लिए ये पहली और सबसे महत्वपूर्ण बाधा थी क्योंकि सही पौध के बिना सघन बागवानी का सपना धूमिल सा लगने लगा था। विदेशों में अपने ग्रोवर दोस्तों से मिली जानकारी एवं जनून के बल पर श्रीकांत ने फैदर प्लांट के स्थान पर देश में ही उपलब्ध व्हिप प्लांट पर ही काम करने का फैसला किया।एक तो रीप्लांटेशन साइट, दूसरा सही पौध का न होना और तीसरा ड्राई जोन(सूखे क्षेत्र)में बगीचा स्थापित करना,ये तीनो बातें सघन बागवानी के बिलकुल विपरीत थी फिर भी श्रीकांत ने वर्ष 2016 में एम-9 रूटस्टॉक पर सेब की विभिन्न प्रजातियों के लगभग 550 पौधें रोपित किये।इसके बाद श्रीकांत ने सघन बागवानी की बारीकियों को समझते हुए एवं उन्हें अपने बगीचे,क्षेत्र एवं परिस्थितियों के अनुसार ढालते हुए मात्र 6 महीनों में ही उनको ऐसा बना दिया मानों वो नर्सरी के ही फैदर प्लांट्स हो। वर्ष 2016 में उनके इस बगीचे में इटली की नामी नर्सरी से आये विशेषज्ञ ने भी इस बात को माना कि श्रीकांत ने इतने कम समय और विपरीत परिस्थतियों जो किया वो सचमुच में हैरान करने वाला था।वर्ष 2017 में श्रीकांत ने इस बगीचे से पहली फसल ली और इस वर्ष इस बगीचे से लगभग 4.5 लाख रूपये की आमदनी होने की उम्मीद है।वैसे सेब की सघन बागवानी में सेब का पौधा 5 सालों में पूरी फसल में आ जाता है जिसमें एक पेड़ से लगभग 1पेटी का उत्पादन होता है लेकिन श्रीकांत का कहना है कि वो अपने बगीचे से एक पेड़ से कम से कम 2 पेटी का उत्पादन करेंगे क्यूंकि उन्होंने अपने पेड़ की कैनोपी को अपने क्षेत्र की परिस्थियों के अनुसार तैयार किया है।श्रीकांत का कहना है कि सेब उत्पादन करने वाले पश्चिमी देशों की तकनीक को हमारे क्षेत्र में कॉपी पेस्ट नहीं किया जा सकता।हमें सघन बागवानी की तकनीकों को अन्य देशों से सीख कर उन्हें अपने क्षेत्र के अनुसार मॉडिफाई करके प्रयोग करना चाहिए।श्रीकांत ने अपने सीखे अनुभवों को साथी बागवानों से साँझा कर के आज प्रदेश में लगभग तीस से ज्यादा ऐसे सघन बाग़ तैयार कर दिए हैं जो आने वाले सालों में सेब की सघन बागवानी के सबसे उम्दा बागों में से एक होंगे।श्रीकांत का कहना है कि हिमाचल में भी सेब की सघन बागवानी लाभदायक साबित हो सकती है बशर्ते कि बागवानी की इस तकनीक को सही ढंग एवं प्रशिक्षण ले कर शुरू किया जाये। ज़मीन की तैयारी, पौध रोपण, ड्रिप सिंचाई, फेर्टिगशन,बेन्डिंग, नोचिंग,कैनोपी आदि बहुत सारे सघन बागवानी के ऐसे पहलु हैं जिनमे से अगर एक में भी कमी रह जाये तो बगीचे की फल उत्पादक क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।श्रीकांत के अनुसार उनकी कोशिश रहेगी कि सघन बागवानी के इन पहलुओं की जानकारी को हिमाचल, उत्तराखंड एवं कश्मीर के बागवानों में बाँट कर सेब की सघन बागवानी को भारत में भी सफलता दिलायी जा सके

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