
हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग से मांगा एसएमसी नीति के तहत लगाए शिक्षकों का ब्यौरा
आवाज़ जनादेश शिमला — हिमाचल में एसएमसी शिक्षकों( SMC Teachers) की भर्ती पर फिलहाल ब्रेक लग गई है। हाईकोर्ट ( High Court) के न्यायाधीश धर्म चंद चौधरी व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने एसएमसी नीति के तहत शिक्षकों की भर्ती के खिलाफ दायर याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के पश्चात शिक्षा विभाग ( Education Department) को आदेश दिए कि 3 सप्ताह के भीतर प्रदेश में एसएमसी नीति के तहत अभी तक लगाए गए अध्यापकों का पूरा ब्यौरा कोर्ट के समक्ष रखे।
कोर्ट( Court) ने शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या व उन्हें आरएंडपी नियमों के तहत भरने के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देने के आदेश भी दिए। मामले पर सुनवाई 5 सितम्बर को होगी। वहीं, सरकार की ओर से हाईकोर्ट को दिए आश्वासन में कहा गया कि कोर्ट के आगामी आदेशों तक प्रदेश के सरकारी स्कूलों में किसी भी नए एसएमसी अध्यापक की नियुक्ति अथवा चयन नहीं किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि स्टॉप गैप अरेंजमेंट ( Stop gap arrangement)के नाम पर की जा रही एसएमसी भर्तियांकतई प्रशंसनीय कदम नहीं हैं। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान खेद प्रकट किया कि सरकार हर बार कोर्ट को नियमों के तहत शिक्षकों की भर्तियां करने का आश्वासन देती है, लेकिन इसके सार्थक परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं। कोर्ट ने पाया कि एसएमसी भर्तियां न केवल सरकार के अपने निर्णयों के विरुद्ध हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ भी हैं। प्रार्थी कुलदीप कुमार व अन्यों द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया है कि राज्य सरकार द्वारा की गई एसएमसी शिक्षकों की भर्तियां गैरकानूनी है।
सरकार अभी फिर से स्टॉप गैप अरेंजमेंट के नाम पर एसएमसी भर्तियां करने जा रही है वह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सरासर अवहेलना है। प्रार्थियों की ओर से यह दलील दी गई है कि राज्य सरकार द्वारा लम्बे समय से एस एम सी शिक्षकों की भर्तियां भर्ती एवं पदोन्नति नियमों को दरकिनार कर हो रही है और सभी को समान अवसर जैसे मूलभूत अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। यह भर्तीयां शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के भी विपरीत है। प्रार्थियों ने हाल ही में जारी अधिसूचना को रद्द करने व भर्ती प्रक्रिया को अंजाम न देने की गुहार लगाई है। प्रार्थियों ने 17 जुलाई 2012 को जारी एसएमसी शिक्षक भर्ती नीति व इसे पूरे प्रदेश में लागू करने के 16 अगस्त 2014 के आदेशों के साथ साथ समय समय पर इस संदर्भ में जारी सरकारी आदेशों को निरस्त करने की मांग की है।