या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता,देवियों के रहस्य

Date:

माता दुर्गा -ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संबंध में हिंदू मानस पटल पर भ्रम की स्थिति है। वे उनको ही सर्वोत्तम और स्वयंभू मानते हैं, लेकिन क्या यह सच है? क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश का कोई पिता नहीं है? वेदों में लिखा है कि जो जन्मा या प्रकट है वह ईश्वर नहीं हो सकता। ईश्वर अजन्मा, अप्रकट और निराकार है। कालांतर में माता दुर्गा को माता पार्वती से जोड़कर 9 रूपों में पूजा जाने लगा। उक्त 9 रूपों के नाम हैं, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

शिवपुराण के अनुसार उस अविनाशी परब्रह्म ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है। एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्त्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है।

वह शक्ति अंबिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता) नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं। पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है। एकाकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं दुर्गा। सती और पार्वती – हिंदू धर्म की प्रमुख त्रिदेवियों में से एक माता पार्वती को शक्ति और साहस की देवी माना गया है। पार्वती माता अपने पिछले जन्म में सती थीं। सती ही शक्ति है। माता सती के ही रूप हैं काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। प्रजापति दक्ष की पुत्री सती को शैलपुत्री भी कहा जाता था और उसे आर्यों की रानी भी कहा जाता था। दक्ष का राज्य हिमालय के कश्मीर इलाके में था। यह देवी ऋषि कश्यप के साथ मिलकर असुरों का संहार करती थी। अपने पति शिव का अपमान होने के कारण सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर अपनी देहलीला समाप्त कर ली थी। माता सती की लाश को लेकर ही शिव जगह-जगह घूमते रहे। जहां-जहां देवी सती के अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित होते गए।  इसके बाद माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालय राज के यहां जन्म लेकर भगवान शिव की घोर तपस्या की और फिर से शिव को प्राप्त कर पार्वती के रूप में जगत में विख्यात हुईं। अदिति-  प्राचीन भारत में अदिति की पूजा का प्रचलन था, लेकिन अब नहीं है। देवताओं की माता का नाम अदिति है। अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है। 33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं विवस्वान, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम, भगवान वामन। 12 आदित्यों के अलावा 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनकुमार मिलाकर 33 देवताओं का एक वर्ग है। समस्त देव कुलों को जन्म देने वाली अदिति देवियों की भी माता है। अदिति को लोकमाता भी कहा गया है। अदिति के पति ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। मान्यता के अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता कला कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। अदिति के पुत्र विवस्वान से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यंत, प्रांशु, नाभाग, दिष्ट, करुष और पृषध्र नामक 10 श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। उल्लेखनीय है कि विवस्वान को ही सूर्य कहा गया है जिनकी आकाश में स्थित सूर्य ग्रह से तुलना की गई।

या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

शतरूपा – वर्तमान विश्व के प्रथम मानव स्वायंभुव मनु की पत्नी का नाम शतरूपा था। विश्व की प्रथम स्त्री होने के नाते उन्हें जगतजननी भी कहा जाता है। इनका जन्म ब्रह्मा के वामांग से हुआ था। इन्हें प्रियव्रात, उत्तानपाद आदि 7 पुत्र और देवहूति, आकूति तथा प्रसूति नामक 3 कन्याएं हुई थीं। रामचरित मानस के बालकांड में मनु-शतरूपा के तप एवं वरदान का उल्लेख मिलता है। वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनु और शतरूपा की उत्पत्ति हुई थी। यह नदी वर्तमान में कश्मीर में बहती है। शतरूप के पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से धु्रव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। धु्रव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था, जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत ये 3 पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के 10 पुत्रों में से 3 नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

भरमौर के हक का पैसा अब सिर्फ भरमौर के विकास में ही लगेगा – डॉ जनक राज

जलविद्युत परियोजनाओं की LADA-CSR फंडिंग का होगा विशेष ऑडिट,...

संयम और संघर्ष: जीवन के दो आधारभूत पहलू

राठौड़ राजेश रढाईक जीवन के पथ पर, संयम (आत्म-नियंत्रण)...

परमिट के फेर में फंसा केलांग डिपो का दिल्ली-लेह रूट, 20 मई को किया गया है आवेदन

आवाज़ जनादेश / न्यूज़ ब्यूरो शिमला एचआरटीसी केलांग डिपो...