भारत-चीन के बीच हुए पंचशील के समझौते की गवाह बनी है कुल्लू-मनाली…सत्य प्रकाश ठाकुर

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-नेहरू ने वर्ष 1942 व 1958 में चुना एकांतस्थली के रूप में कुल्लू-मनाली
की वादियों को
जिला ब्युरो प्रमुख
कुल्लू, 27 मई। भुटटी कालोनी में  देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर
लाल नेहरू  की पुण्यतिथी पूर्व मंत्री सत्य प्रकाश ठाकुर की अगुवाई में
मनाई गई। इस अबसर पर नेहरू के चित्रों पर पुष्प अर्पित किए गए। इस अबसर
पर सत्य प्रकाश ठाकुर ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर
लाल नेहरू ने कुल्लू-मनाली में भारत-चीन के बीच हुए समझौते की नींव रखी
थी। जिसे पंचशील के नाम से जाना जाता है। यहां की शांत वादियों से ही
पंचशील का ताना-बाना बुना गया था। नेहरू की आत्मकथा पर आधारित पुस्तक
डिस्कवरी ऑफ इंडिया में भी इसका स्पष्ट उल्लेख है।  ऐसे में उन्होंने
नग्गर की शांत वादियों को कर्मक्षेत्र के लिए चुना। नेहरू ने कहा था-मैं
पहाड़ों का दिलदादा हूं…कुल्लू-मनाली में एक खामोश हकीकत का एहसास होता
है। यही कारण रहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी जीवनावस्था में दो बार
मनाली आए। पहली मर्तबा वर्ष 1942 तो दूसरी बार 1958 में इस शांत वादी की
ओर मुड़े। नेहरू का मानना था कि प्रकृति की एकांतस्थली में किसी भी योजना
को फलीभूत साकार किया जा सकता है और यहां आत्मिक शांति का आभास होता है।
तभी तो अंतरराष्ट्रीय कला प्रेमी रोरिक ने इस स्थल को अपनी कला साधना के
लिए चुना। यहां रहते हुए नेहरू ने न केवल फुर्सत के लम्हें बिताए बल्कि
ऐसे पुराने पत्रों को भी व्यवस्थित किया, जिसमें देश की आजादी में योगदान
देने वाले महापुरूषों के विभिन्न पहलू थे। ये सभी पत्र बाद में बंच ऑफ
ओल्ड लैटर के नाम से प्रकाशित हुए। सत्य प्रकाश ठाकुर ने कहा कि बंच ऑफ
ओल्ड लैटर भी पिछली अद्र्ध शताब्दी की गाथा है, जो आने वाली पौध के सामने
अतीत की घटनाओं की उचित तस्वीर पेश करने में विशेष मार्गदर्शक साबित
होगी। नग्गर से लौटने पर दिल्ली में पहुंचने पर नेहरू ने अपने इंटरव्यू
में कहा था कि कु ल्लू में एक साकार मूल वास्तविकता का आभास होता है।
पंडित जवाहर लाल मनु की नगरी मनाली में रहे जहां आर्यो के पहले राजा ने
आर्यावर्त के लिए संविधान बनाया था। उसी नक्शकदमों पर चलते हुए नेहरू ने
भी हजारों वर्षों की दास्तां के बाद देश का ऐसा खाका बनाया जिसने खंडित,
बेचैन, मायूस और परेशान जन समाज को एक लड़ी में पिरोकर देश को उन्नत
राष्ट्र की पांत में खड़ा कर दिया। सत्य प्रकाश ठाकुर ने कहा कि वर्ष
1958 के शुरूआत में ही समाचार पत्रों और रेडियो में अटकलों का दौर शुरू
हुआ कि नेहरू कुछ आराम करना चाहते हैं। विश्राम के लिए वे किस स्थान को
आराम के लिए चुनेंगे। यह राज का पश्र बन गया। राज की बातें राज में रही
और जब बेपर्द हुई तो कुल्लू-मनाली पहली बार दुनिया के लिए सुर्खियों में
रही। सत्य प्रकाश ठाकुर ने कहा कि  लाल चंद प्रार्थी ने अपनी पुस्तक में
जिक्र किया है कि जब उन्होंने चंडीगढ़ में नेहरू को कुल्लू आने का
आमंत्रण दिया था तो उन्होंने कहा कि आराम फरमाने के लिए इससे अच्छी जगह
है कहां। जब दिल महसूस करेगा तो कुल्लू-मनाली की ओर रूख करूंगा। मनाली
में नेहरू कुंड और नेहरू पार्क के रूप में आज भी देश के पहले
प्रधानमंत्री की यादें ताजा हैं।

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