(अर्पित अवस्थी की कलम से )
भारत युगों युगान्त्रो से अपने धर्म के प्रति आस्तिक रहा है यंहा का धर्म मानवता के साथ -साथ भाईचारे का भी पूरक रहा है | आज के बदलते भारत में आज धर्म के मूल्य सिर्फ राजनीती से ही जुड़ते है | यूँ तो भारत की राजनीति में धर्म की राजनीति कोई बड़ी बात नहीं है | भारत में जब भी चुनाव नजदीक होते है तो शायद हर बार चुनाव में धर्म भी एक मुद्दा रहा है और न ही किसी एक धर्म विशेष का समर्थन या विरोध कोई नयी बात नहीं है | दुर्भाग्य से आज के डिजिटल इंडिया के दौर में भी यह जारी है , मैं यहाँ पे एक विशेष धर्म का उल्लेख करना चाहूंगा जो धर्म राजनीती से परे सिर्फ और सिर्फ मानवता के लिए ही बना है ए जी हाँ यहाँ बात हो रही है सिख धर्म की |
धर्म के ठेकेदारों से एक आग्रह है एक बार किसी गुरूद्वारे में जा कर देखो सारी धर्म की परिभाषा सामने आ जाएगी की धर्म बड़ा या इंसानियत | देश के किसी भी गुरूद्वारे में आने जाने की कोई रोक टोक नहीं है | चाहे वह किसी भी धर्म जाति का हो जोड़ा घर (जहाँ जूते रखे जाते हैं )में जूते एकत्रित करने वाला एक अफसर भी हो सकता है और एक साधारण आदमी भी उन्ही जूतों को जब आप वापिस लेने आयो तो आपको जूते एक दम चमकते हुए मिलेंगे, उन पर पोलिश करने वाला एक कोई नौकर नही होता बल्कि एक श्रदालु होता है जो IAS अधिकारी भी हो सकता है | शायद धर्म के सोदागरो को यंहा से सिख लेने की आवश्कता है की धर्म दिखावा या व्यपार नही है बल्कि एक श्रदा भाव है जिससे दूसरी परिभाषा में मानवता भी कहा जाता है | गुरुद्वारा में चल रहे लंगर में आपकी जाति या धर्म को पूछ प्रवेश नहीं दिया जाता बल्कि प्यार से हाथ जोड़ के प्रवेश दिया जाता है | वहां खाना बना ने वाला या खाना परोसने वाला और खाने के बाद साफ़ सफाई बर्तन इत्यादि करने वाले सब सिख धर्म के लोग हैं जो गुरु घर में सब एक सामान हैं| सिख धर्म एक ऐसा धर्म हैं जो इंसान को आपस में बाँध के चलने का सन्देश देता हैं बिडंबना हैं की आज हमारे राजनीतिज्ञ धर्म को ही राजनीती का जरिया बन के वैठे हैं | धर्म की राजनीति के दौर में सिख धर्म ही हैं जो इंसानियत को जोड़े रखा है|