शिमला— कैट यानी कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट प्लान का लाखों रुपया शिमला में वन विभाग के अधिकारियों के घरों की मरम्मत में खर्च किए जाने की सूचना है। यह रकम 80 लाख से भी ज्यादा बताई जाती है। प्रदेश में लगने वाले हाइडल प्रोजेक्ट वन विभाग के जरिए इस राशि को केंद्र में जमा करवाते हैं। कैम्पा फंड के तहत ही कैट प्लान का पैसा भी हर साल करोड़ों में रिलीज होता है, मगर हिमाचल में लाखों की यह रकम वन अधिकारियों के सरकारी बंगलों की मरम्मत पर खर्च की जा रही है, जबकि वन विभाग के ही मझौले अधिकारियों व कर्मचारियों की कालोनियां वर्ष 2012-13 से ही मरम्मत तक के लिए तरस गई हैं। कैट प्लान की रकम मात्र वनीकरण व भू-क्षरण रोकने के साथ-साथ वन प्रबंधन के विभिन्न कार्यों पर ही खर्च करने का प्रावधान है। हैरानी की बात यह है कि अधिकारियों ने शिमला में अपने ही सरकारी बंगलों की साज-सज्जा की मरम्मत के लिए यह राशि खर्च कर दी। कैट प्लान का पैसा खर्च करने के लिए प्रतिवर्ष सालाना प्लान तैयार किया जाता है। बाकायदा सरकार से इसे अनुमोदित करवाना पड़ता है। अब यदि इस पैसे को डाइवर्ट किया होगा तो यह किसी बड़ी अनियमितता से कम नहीं है। यदि इसकी पूर्वानुमति ली गई है तो भी यह कैट फंड का दुरुपयोग कहा जाएगा, क्योंकि हाइडल प्रोजेक्ट क्षेत्र में हरियाली व भू-क्षरण को रोकने के साथ-साथ वन प्रबंधन के लिए यह राशि प्रदान करते हैं। केंद्र भी कैंपा के तहत करोड़ों की यह राशि ऐसी ही शर्तों पर राज्यों को जारी करता है, मगर हिमाचल में यह नया कारनामा सामने आया है। शिमला में भारतीय वन सेवा अधिकारियों की बड़ी कालोनियां हैं। इनमें अफसरों को बंगलानुमा मकान दिए गए हैं। इन्हीं की मरम्मत और साज-सज्जा पर लाखों की रकम खर्च हुई है, जबकि तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ-साथ मझौले अफसरों के मकान मरम्मत तक को तरस कर रह गए हैं। शायद यही वजह बताई जाती है कि प्रदेश में प्रोजेक्ट प्रभावित इलाकों में वन प्रबंधन के जो दावे विभाग की तरफ से होते हैं, वे सिरे नहीं चढ़ते। उधर, प्रधान मुख्य अरण्यपाल कैट प्लान आरसी कंग ने कहा कि कैट प्लान के तहत रेंज अफसर रैंक तक के अधिकारी के मकानों पर मरम्मत के लिए ऐसा पैसा खर्च करने का प्रावधान है। यह आरोप सही नहीं हैं।
कैट प्लान का पैसा अफसरों के घरों पर खर्च
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