रोनहाट। जिला सिरमौर के गिरिपार में मनाई जाने वाली बूढ़ी दीवाली अनूठी परंपराओं के साथ संपन्न हुई। बूढ़ी दिवाली की अमावस्या की रात को लोगों द्वरा चीड़ की लकड़ी की मशालें जलाई जाती हैं। ततपश्चात गांव की लड़कियों द्वरा दूसरे दिन भीयूंरी गीत का गायन किया जाता है, जबकि उसके बाद तीसरे दिन जोंदोई व चौथे दिन जोंदुउड़ा मनाया जाता है, जिसमें लोगों द्वरा पहाड़ी हारुल व रासे लगाकर नाटी का भरपूर आनंद लिया जाता है।
ऐसे तो गिरिपार छेत्र में यह बूढ़ी दिवाली बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है, लेकिन शिलाई के नाया गांव में इस बार बूढ़ी दिवाली पर्व को हिमाचल प्रदेश की देवभूमि में बसे शुणकूटा बरादरी के करीब 92 गांव के शुणकूटा बंधुओं को एकत्रित करके मनाया गया, जिसमें उत्तराखंड से भी शुण कूटा बंधुओं ने भाग लिया, जिसमें शुण कूटा परिवार के करीब एक हजार लोग एकत्रित हुए।
यह त्योहार गिरिपार के नोहराधार क्षेत्र, हरिपुरधार, रोनहाट व शिलाई की दर्जनों पंचायतों में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया है। इस त्योहार में लोगों द्वरा एक ओर जंहा पारंपरिक व्यजन मुड़ा, शाकुली, तेल पाकी के भी खूब चटकारे लगाए गए, वहीं दूसरी ओर लोगों द्वरा पुरानी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए पहाड़ी हारुल व पहाड़ी गीतों के साथ साथ रासे लगाकर गीत गाए गए।