■ कसी भाजपा-फंसी भाजपा…
◆ फतेहपुर में पग-पग पर मुश्किलों का अंधड़,हालात दुष्कर
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दरअसल
अपने सियासी नारों को लेकर भाजपा नम्बर वन मानी जाती है। ऐसा ही एक स्लोगन है, जय भाजपा-तय भाजपा। मगर यही नारा फतेहपुर में भाजपा के लिए बदला हुआ दिख रहा है। यहां कसी भाजपा-फंसी भाजपा ज्यादा मुफीद नजर आ रहा है।
दरअसल,फतेहपुर में मुख्य तौर पर दो फैक्टर भाजपा की सियासी रीढ़ में फ्रैक्चर कर रहे हैं। पहला फैक्टर है लंबी रेस का घोड़ा कौन ? जनता में यह चर्चा आम है कि अगर भाजपा यह चुनाव हारती है तो तय है कि 2022 में वह नए चेहरे को टिकट थमा देगी। यानि पब्लिक ओपिनियन के मुताबिक टिकट से जुड़े रिलायबिल्टी फैक्टर पर लोग कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। जबकि भाजपा हाईकमान के पुराने टिकट आबंटन के सियासी इतिहास के चलते जनता उहापोह की हालत में है।
सनद रहे कि फतेहपुर में राजन सुशांत के बीजेपी से बाहर होने के बाद यही होता आ रहा है कि भाजपा टिकट बदलती है,उम्मीदवार हार जाता है। जो हारता है वो बाद में लोगों के कामों को अंजाम देने के लिए कसरत करता है। अपनी इमेज बनाता है और अगले चुनाव में भाजपा उसको सियासी दूध से मक्खी की तरह बाहर पटक कर रख देती है और नया उम्मीदवार सामने खड़ा कर देती है। इस बार भी यही हुआ। कृपाल परमार 2017 में हारने के बाद सरकार से तालमेल करके भगवा रथ खींचते रहे और बाद बलदेव ठाकुर को सारथी बना दिया गया। इससे पहले भी भाजपा की टिकट पर लड़े बलदेव ठाकुर जब हारे थे तो वो जनता में डटे रहे थे। बाद भाजपा ने कृपाल परमार को आगे कर दिया था।
यही वजह है कि भरोसे की सियासी कसौटी पर भाजपा को जनता ने कस दिया है। इस पर भी लोगों को खोट नजर आ रहा है। जिस तरह से भाजपा आज तक फतेहपुर में अपने अधिकृत प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं करती चली आ रही है,उसी तरह से पब्लिक भी भरोसा करती नजर नहीं आ रही
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस जिस पर परिवारवाद के पुख्ता आरोप लगते हैं,वह जनता में खोटी होने के बावजूद खरी उतरती नजर आ रही है। लोग सरेआम यह स्वीकार कर रहे हैं कि अगर कांग्रेसी उम्मीदवार भवानी सिंह पठानिया हार भी जाते हैं तो यह तय है कि 2022 में फिर वही पार्टी का चेहरा होंगे। हैरानी की बात है कि हाल-फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर जंग लगी कांग्रेस के बारे पब्लिक ओपीनियन यह है कि वह 24 कैरेट सोने की तरह है। जो है सो है,पर खोट सरेआम है,छुपा हुआ नही है।
फतेहपुर की जनता का आईक्यू गजब का है। भवानी के पूर्व में।करोड़ों रुपयों के सैलरी पैकेज को भाजपाई तबका यह खिताब दे रहा है कि उनको सियासत में आने की जरूरत ही क्या थी ? जनसभाओं में सरेआम भाजपाई इस चुनाव को अमीर और गरीब के बीच की जंग बता रहे हैं। भाजपा के उम्मीदवार बलदेव ठाकुर खुद को गरीब का बेटा बता रहे हैं। पर पब्लिक प्रिसेप्शन यह है कि क्या सियासत कमाई का जरिया है जो करोड़ों का पैकेज छोड़ने वाले भवानी के लिए यह घाटे का सौदा है ? चुटकी लेने वाले फतेहपुर के लोग यह भी कह रहे हैं कि क्या यह जंग भाजपा के लिए अमीर-गरीब की जंग मात्र है ? भाजपा जिस तरह कसौटी पर कसी है उसी तरह से अपने फैसलों की वजह से फंसी हुई भी नजर आ रही है। जय भाजपा-तय भाजपा का नारा एक तरह से खुद ही पार्टी के लिए लारा बनता जा रहा है…