सियासी पंगों की आंच में भाजपा झुलसने के कगार पर

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■ संभलो सरकार,सरकार पर पानी न फेर दे संगठन की आग
● सियासी पंगों की आंच में भाजपा झुलसने के कगार पर

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सरकार,आपको सम्भलना होगा। आज की डेट में वही हालात बन रहे हैं जो कभी प्रो प्रेम कुमार धुमल के उस कथित बयान की वजह से बने थे,जो उन्होंने दिया ही नहीं था। एक षड्यंत्र के तहत आरोप लगाया गया था कि उन्होंने माइनस कांगड़ा सरकार बनाने की बात कही थी। नतीजा यह हुआ था कि उनके कार्यकाल में मिशन रिपीट की तरफ बढ़ रही उनकी सरकार मिशन डिफीट का शिकार बन गई थी।

मौजूदा मसला ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र में दहक रही संगठन की लकड़ियों का है। अब इस आग में कांगड़ा समेत प्रदेश भाजपा के कदावर नेता शांता कुमार के आकार का बड़ा अलाव भी दहकने शुरू हो गया है। ज्वालामुखी के विधायक व ओबीसी वर्ग के बड़े नेता रमेश चंद धवाला की कुर्बानियां अब जाकर शांता कुमार को याद आईं हैं तो इसकी वजह भी कोई न कोई तो सौ फीसदी होंगी।

संगठन के बिग गन पवन राणा का गृह क्षेत्र भी ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र ही है। जाहिर है कि जो जंग मौजूदा दौर में छिड़ी है,वह संगठन बनाम धवाला ही है। दशकों से भाजपाई खाते से वर्चस्व बनाए हुए धवाला को चुनौती भी राणा से ही मिल रही है। ऐसे में जंग अब जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे जंग भी तीखी होती जा रही है।

भाजपा की कांगड़ा किले की नींव पहली दफा जातिगत तौर पर भरभराने की तरफ़ बढ़ने शुरू हो गई है। जिला के हर हिस्से ओबीसी बिरादरी का दायरा इतना बड़ा है कि इसकी चोट से पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार तक नहीं बच पाए थे। मण्डल कमीशन की वजह से अपना सियासी करियर दांव पर लग चुके शांता कुमार शायद इस खतरे को भांप गए हैं । शायद यही वजह है कि उन्होंने सीएम जयराम ठाकुर और भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप को सलाह के नाम पर आगाह कर दिया है कि वक़्त रहते सब सम्भल जाएं, अलबत्ता साल 2022 की राहों में आहों का सिलसिला हिस्से आएगा।

शांता लगातार यह याद दिला रहे हैं कि एक दौर में भाजपा की सरकार बनाने में धवाला का रोल रहा था । चेता रहे हैं कि धवाला के मान-सम्मान का ख्याल रखें । इशारा साफ है कि कुर्बानियों का ख्याल नहीं किया गया तो कहीं चुनावों में सरकार ही कुर्बान न हो जाए।

भाजपा के लिए कांगड़ा में इससे बड़ा अशुभ संकेत क्या होगा कि भाजपा के पदाधिकारी इस्तीफे देने की बातें कर रहे हैं। दरअसल,भाजपा में नया कल्चर अपनी जड़ें जमा चुका है। आला नेता अपने कैडर को मजबूत करने की बजाए खुद को मजबूत करने में लगे हुए हैं। संगठन के आम कार्यकर्ता की बजाए नेताओं के पुजारियों को विशेष दर्जे हासिल हैं।

कांगड़ा से छेड़छाड़ का असर अब कमोवेश हर विधानसभा क्षेत्र में होना शुरू हो गया है। मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं और दरारें भी इस कदर चौड़ी होती जा रही हैं कि भाजपा के लिए खतरा कुएं और खाई वाला बनता जा रहा है। संभलो सरकार,किसी का कुछ नहीं जाएगा,आपके आकार पर तलवार जरूर लटक जाएगी। संगठन में भड़की हुई आग कहीं सरकार रिपीट करने के सपने पर पानी न फेर दे…

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