कौल मैदान में करार की आस….
आवाज़ जनादेश/बिशेष संवादाता
थोड़ा पीछे चले आपको याद होगा कि साल 2012 के विधानसभा चुनावों के पहले एक मुद्दा खुब प्रचलितं हुआ था धुमल सरकार ने हिमाचल को बेच दिया। हिमाचल फ़ॉर सेल का अंग्रेजी नारा प्रदेश की जनता के मन में ऐसा घर कर गया कि बिना कोई दलील सुने लोगों ने धुमल सरकार को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। यह अलग बात है कि बाद में प्रो धुमल के सदन में जमीन बेचने के सवाल पर सबूत ना होने के कारण कौल सिंह ने कहा था कि ऐसी कोई लैंड डील हिमाचल में नहीं हुई थी। पर तब तक कौल की मेहनत से भाजपा के खेत को कांग्रेसी चिड़ियां चुग कर खाली कर बैठी थीं।
आपको यह भी याद होगा कि तब वीरभद्र सिंह मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री थे।उस समय हिमाचल कांग्रेस के नेता ठाकुर कौल सिंह थे।लेकिन सियासत के चलते वीरभद्र सिंह के दिल्ली से हिमाचल लौटते ही हिमाचल की सियासत के रंग बदल गए मुख्यमंत्री वीरभद्र बन गए जब कि कौल सिंह को प्रथम मंत्री का दर्जा दिया गया । कौल सिंह की प्रदेश में की गई मेहनत से जो आग लगी थी उसे वीरभद्र सिंह ने दिल्ली से आते ही आराम से इसमें अपनी पकड़ का छोंक लगा कर सरकार बना ली थी। कौल के सियासी चैन-करार की ऐसी-तैसी हो गई थी और प्रदेश में किसी ठाकुर की सीएम बनने की चाहत पर राजा रूपी आफत टूट पड़ी थी।
कौल सिंह ठाकुर खुद को साबित करने के बावजूद भी अपने सियासी सपने साकार नहीं कर पाए थे। जबकि कौल सिंह मध्य हिमाचल से है,राजपूत हैं,सीनियर हैं,प्रदेशाध्यक्ष भी रहे लेकिन बाज़ी उनके हाथ से निकल गई।
2022 के चुनाव से पहले सियासी गलियारों में अब यही पॉलिटिकल फैक्टर एक बार फिर कौल के लिए फिट नजर आ रहा हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कौल भले ही हार गए, मगर भाजपा ने मंडी से सीएम बना कर कौल को ऊर्जा से भर दिया है।नतीजा यह है कि ठाकुर कौल सिंह अब ठीक उसी तरह से सक्रिय हो रहे हैं,जिस तरह से वह 2012 से पहले बतौर प्रदेशाध्यक्ष थे। हर वार सीधा सीएम जयराम ठाकुर पर है। बोल भाजपा को रहे हैं और कद कांग्रेस में बढ़ा रहे हैं। अब ठाकुर ने सियासी साढ़े साती भुगतने के बाद से राजयोग के लिए उपाय करने शुरू कर दिए हैं। कौल सिंह ऐसे हालात बनाने में सक्रिय हो गए हैं कि 11 जिलों में भले ही विधायक-मंत्री बनने के लिए मैच होते रहें,पर सीएम बनने का फाइनल मैच मंडी में ही होगा।
वीरभद्र सिंह की सेहत की वजह से यह तय माना जा रहा है कि 2022 में कोई नया चेहरा सामने आएगा। इनमें सियासी बाल्यकाल, युवावस्था,अधेड़ावस्था के साथ प्रौढ़ावस्था के कई चेहरे दिखने शुरू हो गए हैं। मगर असल जंग अधेड़ों और प्रौढ़ों में ही है। प्रौढ़वस्था में कौल सिंह को टक्कर न के बराबर है। अधेड़ावस्था के चेहरों में बकाया वह सारे चेहरे हैं जो आज की डेट में कांग्रेस की फेस वेल्यू हैं। मसलन मुकेश अग्निहोत्री,जीएस बाली,रामलाल ठाकुर,हर्षवर्धन चौहान,आशा कुमारी,सुखविंद्र सिंह सुखू और सुधीर शर्मा। कुछ नेता ऐसे भी हैं जो वरिष्ठ तो हैं मगर कद न के बराबर ही है। लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए ठाकुर कौल सिंह का दावा सबसे मज़बूत रहेगा
चन्द दिनों में ही पॉलिटिकली अल्ट्रा एक्टिव हुए ठाकुर के समर्थक यह मान रहे हैं कि उनके साहब ने यह संदेश तो बखूबी 2012 में ही दे दिया था कि वह प्रदेश स्तर के नेता हैं। वरिष्ठ हैं,राजपूत हैं और अब सबसे बड़ा प्लस यह है कि मंडी से भी हैं। वही मंडी जो भाजपा के फैसले की वजह से पॉवर सेंटर बन गया है। तर्क दिया जा रहा है कि कौल ने लंबे अरसे से प्रदेश भर में अपनी फ़ौज खड़ी की हुई है। जबकि जो बकाया चैलेंजिंग फेस हैं,वह प्रदेश तो दूर की बात,अपने-अपने जिलों में भी दो स्थापित समर्थक नहीं जुटा पाएंगे। जो थोड़ी-बहुत कुव्वत रखते भी हैं,उनमें से किसी के जिले की सियासी अहमियत नहीं है तो किसी की जातिगत कमजोरी है। हर इशारा साफ है। ठाकुर के पुराने पॉलिटकल बायोडाटा के लिहाज एक लॉबी उनको साउंडप्रूफ मान रही है। कुछ भी हो,कांग्रेस में पल-पल,हलचल बढ़ती जा रही है। जल्द ही इस जंग का आगाज़ कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के पद के मामले में होगा। यह बात भी किसी से नहीं छुपी है कि कांग्रेसी कुल के लोग ही अपने ही दीपक यानि कुलदीप राठौर को चुनौती देने में लग गए हैं।