शांत के खत से हिमाचल की राजनीति में हड़कंप

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देश की राजनीति का एक ऐसा नाम शांता कुमार…

जो कईयों के काम भी आया और कईयों के काम तमाम भी कर गया। शांता कुमार ने एक ऐसा काम किया जो जनता को राहत भरा है,मगर सियासी जमात के लिए आफ़त भरा है।
पंडित जी ने बतौर पूर्व मुख्यमंत्री खुद को मिली तमाम सुविधाओं को त्यागने का ऐलान किया है। साफ-साफ कह दिया है कि भैया,पहली जुलाई से सब वापस ले लो।
सरकारी सुविधाओं से मोहभंग का यह फ़तवा सियासतदानों मजा किरकिरा कर सकता है। वजह है पंडित जी के त्याग की टाइमिंग। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार पर फालतू खर्चे करने के आरोप लग रहे हैं।लंबे अरसे से मंत्रियों-अफसरों के लिए नई गाड़ियों की खरीदने के अलावा और भी फ़िज़ूल खर्ची के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में पंडित जी का सरकारी सुविधाओं का त्याग बाकियों के लिए धर्म संकट में डाल दिया है।

शांता कुमार ने कहा है कि वह अब सक्रिय राजनीति से दूर हैं और उनको भारी-भरकम स्टाफ की जरूरत भी नहीं है। साथ ही उम्र का तकाजा भी है। जब प्रवास ही नहीं करना तो सरकारी वाहन और कर्मचारियों की क्या जरूरत है ? इनकी तनख्वाह में हर महीने लाखों का वेतन आता है। यह सब उन्हें बहुत चुभता है।

शांता जी ने यह खत चीफ मिनिस्टर जयराम ठाकुर को भेज दिया है। अब देखना यह होगा कि सरकार क्या करती है ? शांता ने जो कर के दिखाना था,वह कर दिया। शांता को सियासत का कलियुगी परशुराम माना जाता है। इन्होंने भाजपा की सियासत को क्षत्रीय विहीन तो नहीं किया,अलबत्ता क्षत्रिय क्षत्रपों की धुकधुकी हमेशा बने रहे हैं। ऐसे में तय है कि सरकार भी इस खत से उहापोह में तो रहेगी। शांता जी अपने इतिहास की तरह जिद्दी तो हैं ही। जो बोल दिया सो बोल दिया। फिर कोई तोल-मोल नहीं। अब सरकार तमाम सुविधाओं को वापस लेती है तो यह भी तय ही समझिए कि अब सरकार में बैठे अपने लाडलों की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाएगी। करेगी तो भी मरेगी,नहीं करेगी तब ही मरेगी। शांता कुमार का त्याग कईयों के सपनों में आग लगा देगा।बात भी सही है कि जब फाउंडर ही सब छोड़ देंगे तो मौजूदा की क्या बिसात कि वह अपने लिए कुछ मांग पाएं ? यह सियासत है,तोड़ भी बहुत सारे होते हैं। पर यह फिलवक्त कहा जा सकता है कि टूटती उम्मीदों को जोड़ तो शांता जी ने डाल दिया है। बस इस जोड़ का तोड़ न निकले कोई, यही कह सकते हैं। शहंशाहों की सियासत में शांता एक नाम है और हमेशा रहेगा ।सियासी सुविधाओं का त्याग एक सामाजिक पहल

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