लेखक मोहिन्द्र नाथ सोफ्ट ✍️✍️✍️✍️
प्रकृति एक पहेली है और इसे समझना असम्भव है। वह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसे जानने के लिए आप अन्दर तो जा सकते है परन्तु वापिस नही आ सकते है। प्रकृति मे ही इस दुनिया के रचयिता का वास है। *प्रकृति* ही वह *सुपर पावर* है जिसे आप चाहे भगवान कहे या अल्लाह और गौड कहे या वाहेगुरु। *मानव जाति और प्रकृति की एक कोल्ड वार* चलती रहती है। मानव जाति विज्ञान के सहारे अपने आप को प्रकृति से श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करती रहती है। हालांकि समय-समय पर प्रकृति मानव जाति को *अपनी प्रभुता का अहसास* करवाती रहती है। और यह सन्देश देती रहती है कि वह प्रकृति से छेड़छाड़ न करे और स्वच्छ वातावरण में रहे। परन्तु मनुष्य *लगातार प्रकृति के सन्देशो की अनदेखी* करने का आदी हो चुका है। प्रकृति की अपनी समय सारणी है। वह उसके अनुसार मानव जाति को अपने होने और अपनी प्रभुसत्ता से परिचय करवाती रहती है। मानव की श्रेष्ठता तो तभी साबित हो सकती है यदि *न टलने वाली मृत्यु पर विजय* पा ले।
*पिछली चार शताब्दीयों का अवलोकन* इसी ओर इशारा करता है कि हर *एक शताब्दी के बाद प्रकृति ने मानव जाति को चेताया और समझाया* है। हालांकि प्रकृति आराम से मनुष्य का खेल देखती रहती है। परन्तु उसकी भी अपनी एक सीमा होती है। और प्रकृति को अपना विराट रूप दिखाने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
*1720 मे प्लेग महामारी* ने दस्तक दी और करोड़ो लोगों को मृत्यु ने अपना ग्रास बना लिया था। मनुष्य अपने विज्ञान के साथ असहाय खड़ा देखता रहा। परन्तु जल्दी ही मनुष्य सब कुछ भूल कर फिर अपने विज्ञान के अभियान के साथ जीने लगा।
*एक शताब्दी बाद पुनः कोलरा (हैजा) के साथ मानव जाति का बड़ा जानी नुकसान* हुआ। प्रकृति का फिर यही सन्देश था कि मनुष्य अपनी सीमा मे रहे। परन्तु मनुष्य तो भूलने का अभ्यस्त है। वह फिर से अपनी चाल चलने लगा और अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने की तैयारी मे जुट गया।
प्रकृति ने फिर *1920 मे स्पेनिश फ्लू* के साथ मानव जाति को घेर लिया और फिर से सावधान किया की विज्ञान की एक सीमा है और मेरी *प्रभुता को ललकारना* बंद किया जाना चाहिए।
परन्तु *पिछले सौ साल मे* मनुष्य ने *विज्ञान की मदद से* वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद नही की जा सकती थी। *मानव चांद पर जा पहुंचा, परमाणु बम का निर्माण कर लिया, मनुष्य के अंगो को ऐसे बदलने लगा जैसे गाड़ी के पुर्जे* बदले जाते है। मनुष्य क्लोनिंग जैसे विचार पर गभींर विचार करने लगा। और *ग्रहों की खोज* मे निकल पड़ा। इन्ही सौ सालों मे टीवी और इंटरनेट आए। मनुष्य *बच्चो के जन्म का समय तय* करने लगे। मनुष्य ने प्रकृति को ललकारना जारी रखा और इसके चलते जगंल काट दिए, पहाड़ ढाये जाने लगे और प्रदूषण बढ़ गया। *मानव ने उन जीवो को खाना शुरू कर दिया जो प्रकृति ने उनके लिए नही बनाये* थे। मानव जाति को इस वातावरण में सांस लेना कठिन हो गया था।मानव इससे जूझ ही रहा था कि *2020 की दस्तक के साथ ही दुनिया भर मे कोरोना महामारी* ने भी दस्तक दे दी। सारी मानव जाति सहम गई *सारी दुनिया भय के वातावरण मे जीने के लिए बाध्य* है। अब कितना जानी और माली नुकसान होगा यह भगवान ही जाने।
प्रकृति से छेड़छाड़ और प्रकृति का जवाब
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