हादसों के लिए निजी बस ऑपरेटरों पर तो कार्रवाई हो रही है लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग पर कार्रवाई कौन करेगा जितने हादसे इनकी लचर व्यवस्था से होते हैं उतने तो शायद ही अन्य कारणों से होते होंगे। प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्ग हो, राज्य मार्ग हो या गांव की लिंक सड़कें, क्या खड्ढे, टायरिंग के नाम पर धूल की फायरिंग, लुक की जगह थुक, नालियों का नाम नहीं, डंगों का काम नहीं जैसी नीति है इनकी। नई सड़कें धड़ाधड़ बनाई जा रही हैं और पुरानियों में मिट्टी बिछाई जा रही है लेकिन लोगों का क्या है। कभी उन्हें ओवर लोडिंग के नाम पर मारा जाएगा कभी उन्हें खटारा वाहन का बहाना लगाकर दुत्कारा जाएगा परंतु सड़कों की जवाबदेही न विभाग की न ठेकेदार की। जब भी कोई हादसा होता है तो वहां पर सड़क की गुणवत्ता व सड़क सुरक्षा की जांच क्यों नहीं होती। दोषी कोई भी हो उस पर सीधे मर्डर या जानलेवा हमले का केस दर्ज होना चाहिए क्योंकि जब ऐसी दुर्घटनाओं में किसी की असमय मौत होती है तो उसमें लापरवाही व अनदेखी भी एक कारण है पीडब्ल्यूडी विभाग भी ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार है। मानवीय क्षति की कोई भरपाई नहीं लेकिन खून पसीने की कमाई से लोन लेकर जिन्होंने गाड़ियां ली हैं उनकी गाडि़यां जब खड्ढों में गिरती है और टूट-फूट होती है उस आर्थिक हानि की भरपाई तो हो सकती है फिर यह भरपाई भी पीडब्ल्यूडी विभाग से क्यों न की जाए।
हादसों के बाद ब्लैक स्पाट चिन्हित किए जाते हैं। हादसों में सीधा ओवर लोडिंग को कारण बता कर अपनी जवाबदेही से बचने का यह तरीका कतई सही नहीं। प्रदेश में जितने भी हादसे हुए उन सभी के लिए अकेले ओवर लोडिंग ही उत्तरदायी नहीं हो सकती। अब तो लगने लग गया हो जैसे “लोक निर्माण विभाग” का नाम “लोक मार विभाग” कर देना चाहिए ? …..
खराब सड़कों को हादसों का कारण क्यों नहीं माना जाता
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