देव कमरुनाग आस्था की अनूठी मिसाल

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झील में अर्पित सोना चांदी,पानी मे तैरे नोट,पांडव कुरुक्षेत्र से लाये थे राजा रतन यक्ष का कटा सिर

आवाज जनादेश /मण्डी /पूजा मंडयाल /ब्यूरो मण्डी
एक झील जहां दबा पड़ा है अरबो रुपयो का खजाना………..
चोर खजाना चोरी करे तो बंद हो जाती है आंखों की रोशनी……..
कई बार चोरो ने झील से खजाना चुराने के प्रयास किये …………..
पांडव कुरुक्षेत्र से लाये थे राजा यक्ष का कटा सिर कमरुनाग पहाड़ी पर…………..
स्थापित हुए फिर कमरूनाग देवता के नाम से………….
वारिश देने वाला देवता माना गया है कमरुनाग को…………….
कमरूनाग झील की गहराई आज तक कोई नाप नही पाया………
पाताल लोक तक जाती है झील क
ी गहराई ……………


एक झील जहां दबा पड़ा है अरबो रुपयो का खजाना

हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में कमरुनाग मंडी अवस्थित है इस मंदिर का निर्माण पांडवो ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था । मंदिर का निर्माण काष्ठकोणी शैली में निर्मित है जहां देव कमरुनाग की पाषाण प्रतिमा स्थापित है इस मंदिर में किसी प्रकार के दरवाजे खिड़कियों का निर्माण हुआ ही नही है प्राचीन काल का स्वरूप आज भी वैसे का वैसा ही है ।मंदिर के साथ ही देव कमरुनाग के नाम से विख्यात एक विशाल झील बनी हुई है ,देव कमरुनाग को मंडी जनपद का ,,बड़ा देयो,, के नाम से स्थानीय भाषा मे ख्याति प्राप्त है साथ ही कमरुनाग को को वर्षा देने वाला देवता भी माना गया है ।जब भी वारिश नही होती है या सूखा पड़ जाता है तो श्रदालु देव कमरुनाग के पास जाते है और वारिश होने की प्राथना करते है फिर कुछ समय बाद वारिश हो जाती है । देव कमरुनाग के प्रति दंतकथाओं के अनुसार कहा जाता है की राजा रत्न यक्ष कमरुनाग महाभारत कालीन योद्धा थे जिन्हें पहाड़ी राजा भी जाना जाता है । महाभारत के समय राजा रतन यक्ष युद्ध के मैदान में पराजय होने वाले के पक्ष से युद्ध मे लड़कर युद्ध का रुख बदला चाहते थे ,रतन यक्ष की चालाकी का जब भगवान कृष्ण को पता चला तो कृष्ण ने ब्रह्मा का रूप धारण करके रत्न यक्ष की परीक्षा लेनी चाही । रतन यक्ष की शक्ति को परखने के लिए जब कृष्ण ने कहा तो राजा रत्न ने कृष्ण को कहा कि वे अपनी शक्ति से पीपल के पेड़ के ऊपर लगे सारे पतो को धनुषबाण के एक तीर से निशाना बेन्ध सकते है । भगवान कृष्ण ने पीपल के पेड़ का एक पता अपने पांव के नीचे छुपा दिया और कृष्ण ने राजा रतन को ऐसा करने को कहा कि एक तीर से सारे पीपल के पतो को बेन्ध दो ,राजा रतन ने तीर चलाकर सब पतो को बेन्ध दिया और पीपल का पता को कृष्ण भगवान ने अपने पांव के नीचे छुपाकर रखा था तीर कृष्ण के पांव तक आ गया । कृष्ण ने जब जैसे ही पते के ऊपर से अपना पाँव हटाया जो जमीन पर रखे गए पते को भी तीर ने बेन्ध दिया । कृष्ण भगवान ने राजा रतन यक्ष की शक्ति को देखते हुए यह अनुमान लगा लिया कि अगर राजा रतन कौरवो की तरफ से युद्ध मे खड़ा हो गया तो पांडवो का महाभारत के युद्ध मे जीतना मुश्किल हो जाएगा ।भगवान श्री कृष्ण ने राजा रतन से छल द्वारा एक वरदान मांग लिया ,इस वरदान में कृष्ण ने राजा रतन यक्ष से उनका सिर मांग लिया राजा रतन वचन के पक्के माने गए थे उन्होंने अपना कटा सिर कृष्ण भगवान को सौंपना स्वीकार कर लिया साथ ही राजा रतन ने अपने कटे हुए सिर से पांडवो ओर कौरवों का महाभारत कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान से देखने की इच्छा प्रकट की फिर राजा रतन ने अपना वचन निभाया ओर अपना कटा सिर कृष्ण भगवान को दे दिया ।कुरुक्षेत्र के मैदान में जब पांडवो ओर कौरवों का युद्ध शुरू होने लगा तो एक बांस कि नली के ऊपर राजा रतन यक्ष का कटा हुआ सिर टांग दिया गया । कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवो ओर कौरवों का युद्ध शुरू हो चुका था बांस पर टंगे राजा रतन का कटा हुआ सिर जैसे ही युद्ध देखकर हंसता तो दोनों पक्षों की सेनाएँ कई मिल पीछे हट जाती थी ,युद्ध के मैदान में राजा रतन के कटे सिर के हंसने से युद्ध का कोई अंतिम नतीजा नही निकल पा रहा था ।


चोर खजाना चोरी करे तो बंद हो जाती है आंखों की रोशनी

तब युद्ध के मैदान से ही श्री कृष्ण ने पांडवो के साथ मिलकर राजा रतन यक्ष की आराधना की ओर राजा रतन को प्रसन्न किया पांडवो ने राजा रतन को अपना ,,ठाकुर,,( अपना देवता ) मानने का वचन दिया । कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव राजा रत्न के कटे हुए सिर को कुरुक्षेत्र के मैदान से निकालकर ले आये ।फिर पांडवो ने मंडी जिला के बल्ह घाटी के नलसर गांव के पास राजा रतन के कटे सिर की स्थापना सुबह करने का पहला प्रयास किया था जैसे ही पांडव कटे सिर को स्थापित करने लगे तो उसी समय वहां एक गधा रेंकने लगा गधे के रेंकने को पांडवो ने अशुभ माना और पांडव कटे हुए सिर को लेकर कमरुनाग की पहाड़ी पर आ गए जहां के एकांत वातावण में पांडवो ने राजा रतन के कटे सिर की स्थापना की ओर उसके बाद अपने अज्ञातवास को आगे निकल गए ।कमरुनाग झील के प्रति एक लोक धारणा यह भी जुड़ी है जिसमे कहा जाता है कि कमरुनाग झील की गहराई पाताल लोक तक जाती है झील कितनी गहरी है आज तक कोई नाप ही नही पाया है देव कमरुनाग झील में सोना चांदी हीरे जवाहारात दबे होने की बाते भी होती है इस झील में सोना चांदी नोट चढाने की प्रथा प्राचीन समय से आज तक जारी है 15 -16 जून को यहां मेला लगता है हजारो श्रद्धालुओं का यहां आगमन होता है, झील में सोना चांदी नोट अर्पित किए जाते है आज भी यहां हजारो श्रदालुओं ने अपना शीश कमरुनाग के आगे नवाजा , श्रद्धालु अपनी मनोतियाँ पूर्ण होने पर सब कुछ झील में फेंक देते है । कमरुनाग झील मे चढ़े सोना चांदी को कोई निकाल ही नही सकता है युगों युगों से यही प्रथा निभाई जा रही है ।देव कमरुनाग के खजाने के बारे में कहा गया है कि कमरूनाग स्वयं अपने खजाने की रक्षा करते है यह भी माना जाता है कि रात के समय कभी कभी झील के शांत पानी में लहरों के उछाल से देव कमरुनाग की पाषाण प्रतिमा के चरण भी छु लेता है । झील में कितना टन सोना चांदी हिरे जवाहरात प्राचीन समय से दबे पड़े है कोई नही जानता है पर सबको यही अनुमान है कि हजारों टनों के हिसाब से यहां बेशकीमती खजाना दबा पड़ा हुआ है ।कई बार चोरो ने यहां खजाना निकालने के प्रयास भी किये पर खजाना कोई झील के बाहर निकाल ही नही पाया । बताया जाता कि कई बार चोर खजाने को निकाल कर चलने लगे तो उनकी आंखों की रोशनी बंद हो गई और पीछे झील की तरफ देखते तो उनको दिखाई देंता है खजाने के साथ आगे बढ़ती बार आंखों की रोशनी गायब हो जाती थी थक हार के चोर समझ लेते थे कि ये देव कमरुनाग की शक्ति ही है चोर फिर खजाना वापस झील में फेंक देते है । जब यहां पर बर्फ गिर जाती है उस समय चोर ऐसी घटनाओं को अंजाम देते आये है ।कमरुनाग झील के साथ ऐसे ओर भी कई रहस्य जुड़े हुए है जिन्हें समझ पाना मुश्किल है। 2 दिन तक चलने वाले इस कमरुनाग मेले में लोग सोना चांदी अर्पित करते है यह खास दिन होता है जब यहां ये प्रथा निभाई जाती है झील के पानी के अंदर नोट लबालब तैर रहे होते है।जब बर्फबारी होती है तो यहां श्रदालुओ के जाने पर रोक लग जाती है करीब 3-4 महीने यह पहाड़ी बर्फ से ढकी रहती है।कमरुनाग के खजाने वाली झील के बारे में कुछ अनसुलझी बाते यह भी बताई जाती है जिसमे कहा जाता है कि प्राचीन समय मे जब मंडी रियासत ओर सुकेत रियासत का बंटवारा नही हुआ था तब दोनो रियासतों के राजाओ में सीमा पर रखे खजाने को लेकर मत भेद हो गए थे इस खजाने पर किस राजा का हक होगा कोई हल नही निकल पा रहा था तब दोनो रियासतों के राजाओं ने निर्णय लिया कि जिस खजाने के लिए लड़ाई तक कि नोबत आ रही है उसका एक ही हल है वो हल यह है कि इस खजाने को झील में तब तक डाल दिया जाए तब रियासत का बंटवारा नही होता है बंटवारा होने पर जिस रियासत में ये झील परिसर आयगे उस ही राजा का हक इस खजाने पर होगा । और उस समय इस निर्णय को लेकर राजाओ ने खजाना झील में फेंक दिया । बताया जाता है की उसके बाद झील में सोना चांदी फैंकने की प्रथा जारी हो गई समय के बदलते स्वरूप के साथ फिर सोना चांदी के साथ नोट सिक्के फैंकने की प्रथा ने भी मोड़ ले लिया सोना चांदी महंगा होने के बाद लोग मनोती पूर्ण होने के बाद नोट चढ़ाने लगे कुछ लोग अपने आभूषण भी झील को अर्पित करते है ।एक ओर रोचक बात इस झील से जुड़ी हुई है जिसमे कहा जाता है कि एक बार इंग्लैंड के अंग्रेज कमिश्नरी अधिकारी ने इस झील से खजाना निकालने का भी प्रयास किया था उस दौर में इस अंग्रेज ने कुछ मजदूरों को झील से खजाना निकालने के लिए हायर किया और जैसे ही मजदूर झील के पास आये तो मजदूरों का मन बदल गया और उन्होंने झील से खजाना निकालने से मना कर दिया । कुछ दिन बाद यह कमिश्नरी अधिकारी बीमार पड़ गया और उसने अंग्रेज सरकार की नोकरी छोड़कर वापस अपने देश लौट गया बताया जाता है इस अंग्रेज अधिकारी ने अपनी भूल की माफी देव कमरुनाग से वहां विदेश में बैठकर मानी उसके बाद ही अंग्रेज अधिकारी ठीक हुआ और एक साल बाद वापस कमरूनाग की शरण मे आकर शीश नवाजा ओर देवता की शक्ति का अहसास हुआ ।

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