हिमाचल प्रदेशः किला भेदने की कवायद

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भाजपा सरकार बनने के बाद से अब तक सरकार और पार्टी के बीच उम्दा तालमेल


कांग्रेस ने जंहा सुखवेंद्र सुक्खू की जगह कुलदीप राठौर को अध्यक्ष पद की कमांड दी है वंही रजनीश किमटा के कंधों पर भी बड़ी जिम्मेदारीपूर्ण दायित्वों है|



आवाज़ जनादेश /राजनीतिक विश्लेषण

हिमाचल की सियासत में भारी परिवर्तन देखने को मिला है एक तरफ जंहा हिमाचल कांग्रेस संगठन में पहाड़ो का दबदबा दिखाई दिया वंही दूसरी तरफ भाजपा ने अपने कुछ नए मोहरों पर दाव खेला है | कांग्रेस ने जंहा सुखवेंद्र सुक्खू की जगह कुलदीप राठौर को अध्यक्ष पद की कमांड दी है वंही शिमला संसदीय क्षेत्र से एक और बड़ी जिम्मेदारीपूर्ण दायित्वों का भार रजनीश किमटा के कंधों पर भी है |वंही भाजपा ने भी अपने मोहोरो को बदल कर शिमला संसदीय क्षेत्र सुरेश कश्यप पर दवाव खेला है |


ऐसे में देखना यह है की जिला शिमला में कांग्रेस अपना बर्चस्व कायम रखने में कामयाब रहती है या फिर वर्तमान सरकार से लोग खुश नजर आते है | हलांकि पूर्व में रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने एक निजी व्यान के दौरान ठाकुर जयराम को एक स्वच्छ छवि का व्यक्ति बताया है | राजीनीति चाणक्य से प्रख्यात् वीरभद्र सिह के इस बयान के अलग- अलग मयाने लगे जा रहे है |

हिमाचल प्रदेश चार लोकसभा सीटों वाला छोटा-सा राज्य भले हो पर यहां भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. राज्य में भाजपा की सरकार है और पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने चारों सीटों पर कब्जा किया था. कांग्रेस अपने दिग्गज नेताओं को मैदान में नहीं दौड़ाती है तो रास्ता कठिन होगा. इसीलिए प्रत्याशियों को लेकर चिंतन-मंथन चल रहा है. टिकटों के अर्जीदारों में अभी या तो उम्रदराज हो रहे नेताओं के बेटे हैं या वे जो पार्टी में फिर से स्थापित होना चाहते हैं.

दूसरी ओर भाजपा ने जिस तरह विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से अब तक सरकार और पार्टी के बीच उम्दा तालमेल बना कर रखा है. चारों सीटों पर संगठन की ओर से पन्ना प्रमुख सम्मेलन हो चुके हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह शिरकत कर चुके हैं. जनता के बीच पार्टी के कार्यक्रम चल रहे हैं. गुटबंदी भी कमोबेश काबू में है क्योंकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मोदी और शाह का विश्वास प्राप्त है.

कांग्रेस में राहुल गांधी ने जिस तरह ऐन चुनाव से पहले पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बदला, वह कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है. जिस सुखवेंद्र सुक्खू को हटाया गया है वे वीरभद्र सिंह के समानांतर संगठन खड़ा कर गए थे. पर कुलदीप राठौर को अध्यक्ष बनाना वीरभद्र को सिर्फ इसलिए मंजूर हुआ क्योंकि सुक्खू कैसे भी हटे. जिलों और ब्लॉक तक कांग्रेस संगठन अब सहज नहीं है. वीरभद्र और विरोधी खेमे के बीच की दूरियां भी जगजाहिर हैं. कांग्रेस में चार सीटों के लिए 40 नेताओं ने अर्जी दी थी पर इसमें बड़े कद का एक भी नेता शामिल नहीं था.

वीरभद्र या उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह या फिर बेटा विक्रमादित्य मंडी से चुनाव लड़ने की
चर्चा के उपरांत भी कांग्रेस ने सुखराम के पोते पर भरोसा जताया है | वंही शिमला से पूर्व सांसद कर्नल धनीराम शाण्डिल को मैदान में उतरा है | हमीरपुर से पूर्व मंत्री मुकेश अग्निहोत्री और सुक्खू, कांगड़ा से पूर्व मंत्री जीएस बाली और सुधीर शर्मा और चंबा से कांग्रेस की दिग्गज आशा कुमारी का नाम सियासी गलियारों में चल रहा है. पर आधिकारिक रूप से ये नेता अभी सामने नहीं आए हैं. बताते हैं की मंडी सिट को ले कर वीरभद्र खामोश हो गये है. भाजपा के मजबूत किले को भेदना इनके लिए आसान न होगा.

भाजपा चारों सीटों के मौजूदा सांसदों में काफी बदलाव किया है . कांगड़ा से शांता कुमार ने चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद किशन कपूर को मैदान में उतर कर गद्दी कार्ड खेला है |जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद से पार्टी में बड़े दिग्गज एकजुट हैं. उनका लंबे अर्से तक संगठन का तजुर्बा है. पार्टी में वे एक ऐसा चेहरा हैं जिन्हें शांता कुमार, जे.पी. नड्डा, प्रेमकुमार धूमल सभी का साथ मिला है. प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती भी लंबे समय से पार्टी को देख रहे हैं. उनका मुख्यमंत्री के साथ उम्दा तालमेल है.

पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन में मोदी ने सार्वजनिक तौर पर जयराम को हिमाचल में खुला हाथ देने का जो ऐलान किया था , वह पार्टी में सभी के लिए एक संदेश जैसा था. इस एकजुटता को अगर आधार मानें तो धूमल के बेटे, सांसद अनुराग ठाकुर फिर से हमीरपुर सीट से चुनाव लडऩे जा रहे हैं. धूमल की हार के बाद इस क्षेत्र से उन्हें सहानुभूति लहर का भी सहारा है. धूमल परिवार अब इस चुनाव को गंभीरता से ले रहा है. मंडी से रामस्वरूप शर्मा अगर दोबारा चुनाव लड़ रहे है, संगठन के कामकाज के सहारे के साथ-साथ खुद मुख्यमंत्री ठाकुर को कमान संभालनी होगी. संगठन महामंत्री पवन राणा भी पूरे प्रदेश में ताबड़तोड़ दौरों के साथ कार्यकर्ताओं की सक्रियता बनाकर रखे हुए हैं. शिमला आरक्षित सीट है. यहां से वीरेंद्र कश्यप को भी सरकार और संगठन ने भरोसा नही जताया उनकी जगह सुरेश कश्यप जो युवा है पर संगठन ने भरोसा जताया है|

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