शिमला/ केन्द्र सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना के लिए प्रदेश में धर्मशाला व शिमला का चयन किया है, लेकिन विकास का ढिंढोरा पीटने वाली वीरभद्र सिंह की सरकार और उनका प्रशासन उदासीन रहा। धर्मशाला स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए आवंटित 183 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए आवश्यक योजना तक नहीं बना सका तथा योजना के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कर्मचारियों की नियुक्ति में भी विलम्ब राज्य सरकार की कार्यप्रणाली के लचरपन को दर्शाता है। नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने कहा है कि केन्द्र की स्मार्ट सिटी योजना के तहत अगले 5 वर्षों में करीब 57000 करोड़ रुपये का निवेश 100 शहरों को आधुनिक बनाते हुए स्मार्ट सिटी के स्वरूप में विकसित किया जाएगा। स्मार्ट सिटी की तीसरी सूची में शिमला को 23 जून को शामिल किया गया और शिमला के कायाकल्प के लिए 2906 करोड़ रुपये की योजना मन्जूर की गई, लेकिन राज्य सरकार के विभागों की लापरवाही और समय पर काम न करने की आदत से समयावधि समाप्त होने के बाद भी 7 विभागों ने कुल 17 प्रोजेक्ट को लेकर कान्सेप्ट नोट तैयार कर निगम को भेजने थे, वे नहीं भेजे। उसके लिए विभागों को 15 दिन का अतिरिक्त समय भी दिया गया जो 30 सितंबर को खत्म हो गया, उसके बावजूद सरकार के विभाग आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं करवा पाए। नेता प्रतिपक्ष ने कहा है कि क्या वीरभद्र सिंह की सरकार का यही विकास है जिसका गुणगान करने के लिए उत्तरांचल के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिन्द्र हुड्डा को हिमाचल आना पड़ा जिनके विकास के मॉडल को दोनों राज्यों की जनता पहले ही नकार चुकी है। भाजपा का विकास का मॉडल केन्द्र की मोदी सरकार की सोच व नई-2 योजनाएँ, परियोजनाएँ हैं जिन पर तीव्र गति से कार्य हो रहा है।
स्मार्ट सिटी योजना में वीरभद्र सरकार का रवैया रहा उदासीन : धूमल
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