आवाज जनादेश/न्यूज ब्यूरो शिमला
एनसीईआरटी ने केंद्रीय विद्यालयों में छठी कक्षा का सिलेबस तो बदल दिया, लेकिन चार महीने बाद भी छात्रों को पूरी किताबें नहीं मिल पाई हैं। नए सिलेबस की पूरी किताबें न आने से केंद्रीय विद्यालय जाखू और जतोग में पीडीएफ से प्रिंट निकालकर विद्यार्थियों को पढ़ाया जा रहा है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने केंद्रीय विद्यालयों में छठी कक्षा का सिलेबस तो बदल दिया, लेकिन चार महीने बाद भी छात्रों को पूरी किताबें नहीं मिल पाई हैं। छठी कक्षा में छह किताबें हैं, इनमें से तीन किताबें ही बाजार में उपलब्ध हैं। हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृति विषय की ये किताबें भी जुलाई में ही आई हैं। बाकी तीन किताबें कब आएंगी, इसके बारे में स्कूलों को भी कोई जानकारी नहीं हैं। नए सिलेबस की पूरी किताबें न आने से केंद्रीय विद्यालय जाखू और जतोग में पीडीएफ से प्रिंट निकालकर विद्यार्थियों को पढ़ाया जा रहा है। एनसीईआरटी की लापरवाही से विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित होने के साथ-साथ पीडीएफ के प्रिंट निकालना अभिभावकों के लिए किताबों की कीमत से मंहगा पड़ रहा है।
अभिभावकों ने बताया कि छठी कक्षा में छह किताबें हैं। जुलाई में हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत की किताबें ही बाजार में आई हैं। इससे पहले इन किताबों के पीडीएफ के प्रिंट निकालकर पढ़ाई की जा रही थी। सोशल स्टडीज, विज्ञान, गणित की किताबें अभी तक नहीं आई हैं। इनमें सोशल स्टडीज और विज्ञान के सिलेबस के प्रिंट स्कूलों की ओर से भेजे जाते हैं इनके प्रिंट निकालकर बच्चों को पढ़ाई करवाई जा रही है। बताया कि एक अध्याय चार दिन बाद खत्म होने पर इसके प्रिंट निकालने पड़ते हैं। एक अध्याय के प्रिंट में 10 से 12 रुपये खर्चा आ रहा है। जबकि बाजार में आई किताबों की कीमत 90 रुपये है। प्रिंट निकालने के बाद अभिभावकों को किताबें भी खरीदनी पड़ रही है। इससे उनका खर्चा बढ़ गया है।
गणित विषय का नया सिलेबस अभी तक नहीं आया है। अभिभावकों का कहना है कि सिलेबस बदलने से खर्चा बढ़ गया है। वहीं सिलेबस न आने से भी बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। कहा कि बच्चों को नया सिलेबस लगाने से पहले स्कूल को इंतजाम करने चाहिए थे।
एक किताब की जगह थमा रहे पूरा सेट
अभिभावक विक्रांत ने बताया कि जुलाई की शुरुआत में हिंदी और अंग्रेजी की किताबें बाजार में आईं थी। कई अभिभावकों ने ये दो किताबें खरीद ली। लेकिन अब कुछ दिन पहले संस्कृत की किताब भी बाजार में आई है। लेकिन दुकानदार एक किताब की जगह तीन किताबों का पूरा सेट थमा रहे हैं। कहा कि अभिभावक पूरा सेट खरीदने का मजबूर हैं।