चौपाल में सरकार की आड़ मे भ्रष्टाचार सरकार की छवि हो रही है धूमिल।
हिमाचल प्रदेश जाँच ब्यूरो ने मांगी सरकार से मामला दर्ज करने की अनुमति ,फ़ाइल् गृह विभाग में विचार धिन
NGT के सभी नियमो की ध्घ्रजिया,
8 करोड़ विभाग ने जारी किया 2021-22 में अभी तक ठेकेदार ने कार्काय नही किया पूरा ,ऑडिट रिपोर्ट में भी उठे सवाल बिना पूर्ण कागजों के ही लगा दिया कर दिए टेंडर
आवाज़ जानादेश/ शिमला*
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता बल्कि उस लड़ाई के सिपाही बनना हर नागरिक का नैतिक दायित्व है
भ्रष्टाचार हमारे देश में किसी आपदा से कम नहीं है। यह एक ऐसी सामाजिक-आर्थिक और नैतिक बुराई है जिसने देश के आर्थिक विकास को अवरुद्ध करने के साथ ही समाज में गरीबी, अराजकता, हिंसा और नैतिक मूल्यों के पतन जैसी समस्याओं को जन्म दिया है। चौतरफा भ्रष्टाचार आज लाइलाज मर्ज बन गया है। सरकारी आंकड़े चाहे कुछ भी कहें लेकिन भ्रष्टाचार एक ऐसी दीमक है जो सरकारी अफसरों की विश्वसनीयता को खा गई है और इसने सरकारों को अस्थिर तक किया है।
समय-समय पर अलग-अलग सरकारों ने भ्रष्टाचार निवारण के लिए सूचना का अधिकार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, व्हिसल ब्लोअर कानून, लोकपाल अधिनियम आदि का सहारा लिया लेकिन व्यवहार के धरातल पर मूल्यांकन करें तो ये सभी नियम, कानून और संस्थाएं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल साबित हुई हैं।
दरअसल, भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए जिस दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है वह हमारे नेताओं में है ही नहीं। उनके लिए तो भ्रष्टाचार महज एक ‘चिंता का विषय है’। उसे रोकने की संजीदगी उनमें सिरे से नदारद है।
इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता बल्कि उस लड़ाई के सिपाही बनना हर नागरिक का नैतिक दायित्व है। इस लड़ाई में युवा शक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा भ्रष्टाचार के समूल उन्मूलन और शासन में पारदर्शिता लाने के लिए आधुनिक तकनीक जैसे ई-खरीद, ई-टेंडरिंग, ई-गवर्नेंस और जनसंपर्क वाले दफ्तरों में सीसीटीवी का सहारा लिया जा सकता है। इसके अलावा संवेदनशील पदों की पहचान कर उन पर ईमानदार एवं सत्यनिष्ठ व्यक्तियों को काबिज करना एवं जनसाधारण में जागरूकता का प्रसार, व्हिसल ब्लोअर का संरक्षण, सरकारी खरीद में पारदर्शिता अपना कर भी भ्रष्टाचार की विकराल समस्या से पार पाया जा सकता है।
इन दिनों चौपाल विधानसभा क्षेत्र का हाल भी इस क़दर खराब है कि राजनीति दवाब में चारो तरफ धांधली ही धांधली से एक तरफ क्षेत्र के समाज सेवी आहत है तो वहीं दूसरी ओर स्थानीय नेता मंचों पर विकास के झंडे गाड़ हुए दिखाई देते है। यहां कायदे कांनून हाशिए पर चले गए है। पंचायतों से लेकर विभागों तक चारो ओर भ्रष्टाचार की चर्चाएं खुलेआम सुनने को मिलती है। दूसरी तरफ चौपाल विधानसभा क्षेत्र में बिजली,पानी व भवन निर्माण के कार्य जो दशकों से लटके हुए हैं उस पर भी चर्चा आम है। यहां ठेकेदारों को राजनीतिक संरक्षण के चलते ठेकेदार विभाग पर हावी है और जनता विकास की गति धीमी होने से परेशान है। दशकों से लटके विकास कार्य इस बात को ब्याह करते हैं कि चौपाल में भ्रष्टाचार चरम सीमा तक अपनी जड़ें पसार चुका है। सडकनिर्माण से लेकर 66 केवी के एक दशक से निमार्णधीन है । सबसे अधिक यह कार्य लोकनिर्माण विभाग के है । जबकि ठेकेदारो को इन कार्य मे 40 से 60 फीसदी राशी अग्रणी जारी भी विभाग ने जारी की है बाबजूद उसके यह योजनाए अधर में लटक गई है। विभाग की सुस्त कार्य प्रणाली के कारण अधिकतर योजनाए लेप्स मोड़ पर है। इस पर सरकार की भी अभी तक कोई संज्ञानात्मक कार्यवाही नही हुई है। इन योजनो की अनियमिताओं पर कई बार ऑडिट पैरे भी बने है लेकिन उस पर कार्यवाही क्यों नही होती यह अचंभित करने वाली बात हैं।
बर्ष 2018 में देहा खिड़की 10 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य एक निजी ठेकेदार को जारी किया गया जिस पर ऑडिट पैरा भी बना है ।क्यों कि इस कार्य को जारी करने से पहले विभाग ने औपचारिक दस्तावेज तैयार नही किए थे। राजनीति दवाव के चलते आननफानन में चौपाल लोकनिर्माण विभाग ने उक्त सड़क (सैंज चौपाल नेरवा शालू ) का टैंडर देहा से खिड़की दस किलोमीटर दस करोड़ में ठेकेदार को जारी किया जसमे ठेकेदार को 615 लाख की राशी भी जारी कर दी है। जब कि कार्य 2022 में भी 10 -20 फीसदी पूरा नही हुआ ।एक रिपोट अनुसार इस सड़क के अबैध निर्माण अनुसार 288 पेड़ो को खतरा पैदा हो गया है जबकि दर्जनों पेड कहा गायब हुए है इसका कोई मालून नही हैं। सड़क निर्माण की आड़ में आलीशान कोठियों की शोभा में चार चांद जरूर लगे है लेकिन पर्यावरण का विनाश इस कदर कैसे हुआ यह प्रश्न विभाग की कार्यप्रणाली प्रश्न पैदा तो करते ही है परतुं जंगल का समूल विनाश को शर्मनाक भी है चिंताजनक भी ।
स्थानीय विधायक सर्वजनिक मंच से खुद को जंगल का मालिक घोषित करते है और पत्रकारों को खबर न लिखने की नसीयत भी देते है, एक निजी कार्यक्रम में विधयाक बलबीर वर्मा ने अपने भाषण में आवाज़ जनादेश के सम्पदाक को सड़कों की खबरे न करने की नसियत देने का प्रयास किया अगर यही नसियत विभाग व ठेकेदार को दी होती तो सैंकड़ो पेड़ो की बली चढ़ने से बच जाती अपने भाषण में उन्होंने कहा कि जंगल हमारे हैं ये कटे या बचे इस पर दूसरों को आपत्ति क्यों है ? लेकिन शायद वह भूल गए हैं कि जंगल किसी के घर की खेती नहीं है न ही निजी सम्पत्ति वह राष्ट्र की संपत्ति है। इससे बचाना मीडिया का भी दायित्व है । देहा से खिड़की सड़क निर्माण में नियमों को तक पर रख कर शरेआम भ्र्ष्टाचार ही भ्र्ष्टाचार हुआ है उस पर स्थानीय जनता ने एस आई टी जांच की मांग की है और ठेकेदार के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग की है। जनता का कहना है कि जब यह सड़क ठेकेदार के पास है जिसमे उसको 60 फीसदी से ज्यादा राशि भी जारी की है तो विभाग ने देहा से खिड़की तक पैचिंग कार्य कैसे किया जब कि कार्य का निर्माण ठेकेदार कर रहा है। इसके अतिरिक्त ठेकेदार के पास चौपाल की दो दर्जनों से अधिक सड़के दशकों से लटकी है उस पर कार्यवाही क्यों नही की जा रही। कार्य जारी किए गए है। इस बारे जब विभागीय अधिकारियों से जानने का प्रयास किया दबी आवाज में राजनीतिक का प्रेश की बात करते हुए बातो टालते नजर आए और आधिकारिक बयान देने से भी बचते रहे। ऐसे मामलों से प्रदेश सरकार की छवि धूमिल हो रही है और समाज मे ठेकेदारो की मनोपली बढ़ती जा रही है और विकास कार्य ठंडे बस्ते में दम तोड़ता नजर आ रहा है ।चौपाल के स्थानीय लोगो ने सरकार से मांग की है कि मामले की गहन जांच होनी चाहिए और ठेकदार और दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए अब देखना यह है कि इस पर सरकार संज्ञान लेती या फिर ठेकेदारो का सरक्षंण करती है।