आढ़तियों की मनमर्जी के आगे बागवान प्रस्त

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आवाज़ जनादेश/ब्यूरो
हिमाचल प्रदेश की मंडियों में सेब के वाजिब दाम नहीं मिलने से बागवानों ने तुड़ान का काम रोक दिया है। कुछ बागवानों ने स्थानीय मंडियों में फसल बेचने की बजाय बाहरी राज्यों का रुख करना शुरू कर दिया है। ओला रहित सेब की साफ फसल की 28 किलो की पेटी को भी अधिकतम 800-1400 रुपये दाम मिल रहे हैं। ओलों से दागी फसल तो भूसे के भाव बिक रही है। मैदानी क्षेत्रों में बाढ़, कोरोना से फैली मंदी जैसे कई कारणों को दाम नहीं बढ़ पाने का कारण माना जा रहा है। पराला,भट्टाकुफर,सोलन,परवाणू आदि फल मंडियों में सेब की आवाजाही कम हो गई है। कई बागवान जयपुर,मुंबई,चेन्नई और देश की अन्य मंडियों के लिए सेब भेज रहे हैं।उधर अडानी ने भी 3 दिन के लिए 72 प्रतिकिलो का रेट तह किया है। पिछले कुछ दिनों से सेब के दाम मंडियों में बुरी तरह से पिट रहे हैं। सेब की करीब 28 किलो की पेटी की बोली 200 से 300 रुपये लग रही है। कुछ समय पहले यही बोली 1000-1200 रुपये से लगनी शुरू होती थी। प्रदेश की फल मंडियां वाजिब दाम दिलाने में फेल प्रदेश की फल मंडियां सेब बागवानों को उनकी फसल के वाजिब रेट दिलाने में असफल साबित हुई हैं। इससे बागवानों ने एक तरह से स्थानीय मंडियों का बहिष्कार कर लिया है। सेब की फसल की 200 रुपये बोली लग रही है। सरकार का मंडियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। कश्मीर की तर्ज पर मंडी मध्यस्थता योजना को क्यों नहीं लिया जा रहा। कश्मीर में ए ग्रेड सेब की 60 रुपये, बी ग्रेड की 44 रुपये और सी ग्रेड की 24 रुपये के हिसाब से खरीद होती है। हिमाचल में तो साढे़ नौ रुपये किलो के हिसाब से एमआईएस के जरिये सेब की खरीद की जा रही है। राज्य में छह से दस लाख मीट्रिक टन सेब होता है,मगर 50 से 60 लाख मीट्रिक टन की भंडारण क्षमता है।
दूसरी तरफ सरकार के सारे आदेश बौने साबित हुए है न तो क्रेट में सेब बिक रहा है नही बारदाने के रेट कम हुए प्रदेश सरकार के सारे आदेश को तुलकी फरमान ही कहा जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी ।
आढ़तियों के मनमर्जी के दाम ने बागवानों की कमर तोड़ दी है दूसरी तरफ हिमाचल की मंडियों में बिक रहे सेब की पेमंट 2 महीनों तक नही मिलती इससे बागवानों में रोष है और मंडियों की भी विफलता जगजाहिर हो गई है।

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