कांगड़ा के कांग्रेसी राजपूत नेताओं ने निकाली सियासी तलवारें

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ठाकुर हैं, ठोकरें बर्दाश्त नहीं…

◆ दो दिन पहले हुई सीनियर कांग्रेसियों की बैठक के बाद हुआ धमाका

बीते शुक्रवार को कांगड़ा कांग्रेस के पन्द्रह महारथी एक साथ बैठे थे। दावे यह ठोंके थे कि वह यूथ कांग्रेस के चुनाव को लेकर सहमति बनाने के लिए जमा हुए थे। जयराम सरकार को कांगड़ा से हो रहे भेदभाव के खिलाफ बैठे थे। पर हाय री किस्मत,दो दिन भी नहीं बीते कि इन नेताओं के हर दावे का तिया-पांचा कांग्रेस के जूनियर नेताओं ने ही कर के रख दिया। धज्जियां ऐसीं उड़ाईं कि इन पन्द्रह नेताओं के वजूद भी हवा में उड़ते नजर आए।

रविवार को कांगड़ा जिला के पन्द्रह विधानसभा क्षेत्रों से युवा-अधेड़ राजपूत सियासी तलवारें निकाल कर बाहर निकल आए। राजपूती अंदाज में साफ ऐलान हुआ कि, “हम 40-45 से ऐसी-तैसी ही फिरवाते चले आए और मंत्रियों की औलादें हमारी जवान हसरतों के साथ-साथ अधेड़ हो चुके जिस्मों को सीढ़ी बनाकर ऊपर ही चढ़ते चले गए। हमने अगर पद मांगे तो गुनहगार बना दिए गए,टिकट मांगी तो सियासी सजा-ए-मौत दे दी गई। कभी हमारी आस को लाश में बदला तो कभी जिंदा लाश बनाकर रख दिया…”

तर्कों की धार पर अपनी तलवारों को पैना करके आए इन युवा और अधेड़ नेताओं ने कांग्रेस की लीडरशिप को इस तरह से जख़्मी किया कि अगर भविष्य में यह जख्म नासूर बन जाए तो हैरानगी नहीं होनी चाहिए। कांगड़ा के दम पर मुख्यमंत्री-मंत्री बनने के सपने पालने वाले नेताओं समेत हाईकमान को भी यह आगाह कर दिया कि भाजपा से भिड़ने से पहले उड़ जमीन को भी परख लें,जिस जमीन पर जंग लड़नी है। भाजपा के उदाहरण देकर कांग्रेस की सोच का चीरहरण भी तथ्यों के साथ कर दिया गया।

इस जमात ने सवाल उठाया कि कांगड़ा में राजपुत बिरादरी का हिस्सा 42 फीसदी है तो प्रदेश भर में 37 से 39 फीसदी के बीच है। भाजपा ने बीते विधानसभा चुनाव में कांगड़ा में कुल 7 राजपूतो को उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस 4 से आगे नहीं बढ़ी। मन्त्रिमण्डल में भी कांगड़ा के खाते से विक्रम ठाकुर,राकेश पठानिया को मंत्री तो विपन परमार को विधानसभा अध्यक्ष पद पर बिठाया। कौन करेगा इनके साथ मुकाबला ? हमें टिकट तो दूर,पार्टी में भी जगह नहीं दी जाती । जब भी संगठन की बात आती है तब सब नेताओं को अपनी औलादों के सिवा कुछ नजर नहीं आता । आखिर कब तक हमारी लाशों के ढेर पर नेताओं की सियासी सवेर होती रहेगी ?

ऑफ द रिकॉर्ड इन खुड्डेलाइन नेताओं ने यह भी कहा कि बैठकों में सीनियर और स्थापित नेता अपने पुनर्वास के साथ खुद के वजन को ही तोलते हैं। कार्यकर्ताओं का वजूद कभी इनके लिए अहम ही नहीं रहा। गौरतलब है कि शुक्रवार को ही कांग्रेस के पन्द्रह नेताओं की बैठक कांगड़ा के नाम पर हुई थी। इस बैठक में कांगड़ा के खाते से अपना भविष्य तलाशने-तराशने निकले नेताओं ने अपने से जुड़े मसलों को ही तरजीह दी थी। यह कुनबा कांगड़ा के खाते से अपने लिए वजूद बनाने पर चर्चा करता रहा पर इनमें वो सहमति भी नहीं बन पाई थी कि यह अपने जिले से निर्विवाद किन्ही युवा कांग्रेसियों के नाम तय कर पाते। ऐसी ही हरकतों का नतीजा यह रहा कि मार्शल कौम के नाम से मशहूर राजपूत नेता गरमा भी गए और स्थापित बने रहने की चाह वाली नेताओं की जमात को आइना दिखाते हुए ठंडा भी कर दिया।

यह संकेत भी इस बैठक से निकले की अब अगले स्टेप में यह गर्म हवा अन्य वर्गों के खुड्डेलाइन युवा-अधेड़ नेताओं के साथ दहकता हुआ अलाव बन जाएगी। इसकी आंच से अगर कोई झुलसा तो तय है कि वह सीनियर लीडर ही होंगे। खैर,इस बैठक में अपने हकों की खातिर तलवारे निकालने वाले ठाकुरों में फतेहपुर से निशावर सिंह ठाकुर,कांगड़ा से नागेश्वर मनकोटिया,इंदौरा से मनमोहन कटोच और विशाल ठाकुर,ज्वालाजी से नरदेव कंवर, नूरपुर से मनोज पठानिया और विक्रम पठानिया, देहरा से पुष्पेंद्र ठाकुर,फतेहपुर से चेतन चंबियाल,पालमपुर से रणजोध ठाकुर,बैजनाथ से वीरेंद्र कटोच,जयसिंहपुर से संजय राणा,धर्मशाला से सौरभ ठाकुर,नीरज चौहान और विशाल ठटवलिया, सुलह से संजय चौहान,शाहपुर से हंसराज ठाकुर,जितेंद्र गुलेरिया मौजूद रहे। सियासी तलवारे निकल आईं हैं, गर्दनों पर नजर है। साफ़ ऐलान था कि ठाकुर हैं,अब ठोकरों में नहीं रहेंगे…

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