मैं मज़दूर हूँ, मैं मजबूर हूँ ।।
वक़्त ने है रुलाया मुझको, अपनों ने भी सताया है-२
उम्र भर की ख़ूब मेहनत, फिर भी कुछ ना पाया है।।
मैं मज़दूर हूं…
जितने मुझ पर कर सितम तू, मैं तो चलता जाऊंगा-२
सदियों से पिसता रहा हूं, आज भी मुस्काऊँगा।।
मैं मज़दूर हूं…
मंदिर, मस्ज़िद, गुरु का द्वारा, नीव मैंने डाली है-२
सबकी झोली भर दी उसने, मेरी फिर भी ख़ाली है।।
मैं मज़दूर हूं…
पेट भूखा उसमें बच्चा, दूर तक चलती रही।
बाद प्रसव के भी तो मैं बस, मीलों ही चलती रही।।
मैं मज़दूर हूं…