कोरोना की उद्गमस्थल,चीन के बेसहारा निरीह पशु-पक्षियों

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आवाज जनादेश/प्रदीप जैन
कोरोना की उद्गमस्थल,चीन के बेसहारा निरीह पशु-पक्षियों की विशाल वधस्थली मार्केट को बताया जा रहा है।ये भी कहा जा रहा है कि ऐसा स्तनपायी पक्षी-चमगादड़ के माँस के सूप के कारण हुआ है।
अब एक तरह से चमगादड़ों का श्राप है-कोविड19,
इसके अतिरिक्त प्रकृति से हर एक स्तर पर हर तरह से छेड़छाड़ और प्राकृतिक संसाधनों का दीर्घकाल तक अविवेकपूर्ण दोहन भी इस आपदा के कारण रहे हैं।फ़िलहाल इस सुरंग का दूसरा सिरा दिखाई दे पाना मुश्किल है।
कल चिकित्सा विज्ञान के एक बहुत बड़े हस्ताक्षर ने यह कहकर विश्व में खलबली मचा दी कि अब मनुष्य को मॉस्क के साथ सदैव जीने की आदत डालनी होगी।कोविड 19,कहीं जाने वाला नहीं,हमें इसके साथ ही जीना सीखना होगा।
इस ख़ूबसूरत पृथ्वी ग्रह के पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने का आग्रह कम से कम दो सौ वर्षों से पर्यावरणविद एवं वैज्ञानिक करते रहे हैं।शासन के संरक्षण के बिना पारिस्थितियो से खिलवाड़ संभव नहीं है। शासन और विपणन विशेषज्ञ मिलकर लोगों की प्राथमिकताएँ निर्धारित करते रहे हैं।वे शासन के ऐसे मॉडल को सामान्य जनता पर थोपते रहे हैं,जहाँ आमलोगों के लिए कोई स्थान शेष नहीं।
ऐसी स्थिति में कोविड19 और इस जैसी ही अन्य आपदाएं अपरिहार्य हैं।यह श्राप चमगादड़ों का ही नहीं उन आदिवासियों का भी है जिन्हें उनके स्वाभाविक आश्रय से बेदख़ल किया जाता रहा है।उन किसानों का भी है जिनकी निरंतर जमीनें हथियाकर उन्हें मज़दूर बनाकर शहरों की सड़कों पर वैसा जीवन जीने के लिए मज़बूर किया जाता रहा है जिसे मनुष्यों का जीवन नहीं कहा जा सकता।
प्रश्न यह है कि क्या सिर्फ़ विशाल कारपोरेट और उनकी अतृप्त अभीप्सा के समक्ष विनत शासक वर्ग ही इसके लिए दोषी है? लोकतंत्र की मूल प्रस्थावना यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहने वाले नागरिक,सतत सावधान रहते हुए शासन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाएंगे।
हम और आप विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत जी रहे हैं।आइए एक बार विचार करके देखें कि व्यवस्था के सभी अंगों में हमारी-आपकी कुल मिलाकर आम हिंदुस्तानी की इसमें कितनी प्रभावी भूमिका है,कितनी बार हमने अन्याय और कदाचार को रोकने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई है? अपनी इस तथा कथित लोकतांत्रिक व्यवस्था में हमारे लिए क्या कितना स्थान है? ऐसी ही व्यवस्थाओं में रहने वाले कितने देशों के कितने लोगों ने अपेक्षित भूमिका निभाई है ? आओ हम यह भी सोचें कि उन देशों के नागरिकों का भी अपने देश की व्यवस्थाओं में क्या स्थान है।

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