भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का लम्बी बीमारी के चलते वीरवार 5: 5 मिनट पर निधन हो गया | 93 वर्षीय वाजपेयी जून महीने से बीमार चल रहे थे नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे| (एम्स) से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने गुरुवार की शाम पाँच बजकर पाँच मिनट पर अंतिम सांस ली|
उन्हें इसी वर्ष जून में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से एम्स में भर्ती कराया गया था|
उनका शव शुक्रवार को नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के हेडक्वार्टर में श्रद्धांजलि के लिए रखा जाएगा| उनकी अंतिम क्रिया विजयघाट पर शुक्रवार को शाम 5 बजे की जाएगी|
भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे, पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए फिर 1998 से 1999 और आखिरी बार 1999 से 2004 तक | भारतीय राजनीति में अजातशत्रु, भीष्म पितामह, शिखर पुरुष जैसे शब्दों से पुकारे जाने वाले देश के 10 वें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आखिरकार आज मौत से हार गए। लम्बे समय से मौत के सामने ‘अटल’ खड़े रहे वाजपेयी अपने चहेतों को शोक संतप्त छोड़ गए। भारत ही नहीं बल्कि पड़ौसी मुल्क से भी वाजपेयी के निधन पर कई नेताओं ने शोक जताया है।
राजनीतिक क्षेत्र में अटल बिहारी वाजपेयी की छवि उन्हें सभी राजनेताओं से अलग करती है। इस कारण पक्ष ही नहीं विपक्ष में उनका मुरीद बन जाता था। उन्हें हर कोई सम्मान देता था। जनसंघ की स्थापना से लेकर प्रधानमंत्री बनने के सफर में वाजपेयी ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन हर कठिनाई का ‘अटल’ इरादों के साथ पार किया।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अगुवाई में अटल बिहारी वाजपेयी भी जनसंघ की स्थापना के समय सन 1951 में जनसंघ के शुरुआती संस्थापक रहे। अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के टिकट पर सन 1957 के चुनावों में तीन-तीन सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से एक साथ चुनाव लड़े। और बलरामपुर से संसद पहुंचे।
वाजपेयी पहले गैर-कांग्रेसी पीएम रहे, जिनकी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। इससे पहले भी वो दो बार पीएम बनें थे, लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे। वाजपेयी की अगुवाई में ही 23 दलों से बनी एनडीए सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।
वाजपेयी अन्य सभी दक्षिणपंथी नेताओं की तुलना में ज्यादा सेकुलर माने जाते रहे। उनकी प्रशंसा समूचा विपक्ष भी करता था। ये कारण था कि राजग ने 23 दलों के साथ सरकार बनाई और कार्यकाल भी पूरा किया। विदेश मंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी ने सन 1977 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया। ये देश के लिए गौरवपूर्ण क्षण था।
उन्होंने तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों को दरकिनार कर साल 1998 में पोखरन में परमाणु धमाका कर भारतीय इतिहास को सबसे गौरवपूर्ण क्षण दिया। भारत-पाकिस्तान में तनातनी के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी का पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ से हाथ मिलाना भारत-पाक संबंध को पुनर्जीवित किया।
-पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार को निधन
-पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले ग़ैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री
-18 साल की उम्र में राजनीति में रखा था कदम
-1957 में पहली बार बने लोकसभा सांसद, 47 साल तक संसद सदस्य रहे
-10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए|
अटल बिहारी वाजपेयी: ओजस्वी वक्ता से सर्वमान्य राजनेता तक
जनवरी 1977 की एक सर्द शाम. दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्षी नेताओं की एक रैली थी. रैली यूँ तो 4 बजे शुरू हो गई थी, लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी की बारी आते आते रात के साढ़े नौ बज गए थे. जैसे ही वाजपेयी बोलने के लिए खड़े हुए, वहाँ मौजूद हज़ारों लोग भी खड़े हो कर ताली बजाने लगे.
अचानक वाजपेयी ने अपने दोनों हाथ उठा कर लोगों की तालियों को शाँत किया. अपनी आँखें बंद की और एक मिसरा पढ़ा, ”बड़ी मुद्दत के बाद मिले हैं दीवाने….” वाजपेयी थोड़ा ठिठके. लोग आपे से बाहर हो रहे थे. वाजपेयी ने फिर अपनी आंखें बंद कीं. फिर एक लंबा पॉज़ लिया और मिसरे को पूरा किया, ‘ कहने सुनने को बहुत हैं अफ़साने.’
इस बार तालियों का दौर और लंबा था. जब शोर रुका तो वाजपेयी ने एक और लंबा पॉज़ लिया और दो और पंक्तियाँ पढ़ीं, ”खुली हवा में ज़रा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आज़ादी कौन जाने?”
उस जनसभा में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह बताती हैं, ”ये शायद ‘विंटेज वाजपेयी’ का सर्वश्रेष्ठ रूप था. हज़ारों हज़ार लोग कड़कड़ाती सर्दी और बूंदाबांदी के बीच वाजपेयी को सुनने के लिए जमा हुए थे. इसके बावजूद कि तत्कालीन सरकार ने उन्हें रैली में जाने से रोकने के लिए उस दिन दूरदर्शन पर 1973 की सबसे हिट फ़िल्म ‘बॉबी’ दिखाने का फ़ैसला किया था. लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ था. बॉबी और वाजपेयी के बीच लोगों ने वाजपेयी को चुना. उस रात उन्होंने सिद्ध किया कि उन्हें बेबात ही भारतीय राजनीति का सर्वश्रेष्ठ वक्ता नहीं कहा जाता.”
जब वाजपेयी बैलगाड़ी से पहुंचे थे संसद
भारतीय संसद में हिंदी के सर्वश्रेष्ठ वक्ता
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष अनंतशयनम अयंगार ने एक बार कहा था कि लोकसभा में अंग्रेज़ी में हीरेन मुखर्जी और हिंदी में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा वक्ता कोई नहीं है.
जब वाजपेयी के एक नज़दीकी दोस्त अप्पा घटाटे ने उन्हें यह बात बताई तो वाजपेयी ने ज़ोर का ठहाका लगाया और बोले, “तो फिर बोलने क्यों नहीं देता”
हालांकि, उस ज़माने में वाजपेयी बैक बेंचर हुआ करते थे, लेकिन नेहरू बहुत ध्यान से वाजपेयी द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुना करते थे|
नेहरू थे वाजपेयी के मुरीद
किंगशुक नाग अपनी किताब ‘अटलबिहारी वाजपेयी- ए मैन फ़ॉर ऑल सीज़न’ में लिखते हैं कि एक बार नेहरू ने भारत यात्रा पर आए एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वाजपेयी को मिलवाते हुए कहा था, “इनसे मिलिए. ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं. हमेशा मेरी आलोचना करते हैं, लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूँ.”एक बार एक दूसरे विदेशी मेहमान से नेहरू ने वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी कराया था| वाजपेयी के मन में भी नेहरू के लिए बहुत इज़्ज़त थी|
साउथ ब्लॉक में नेहरू का चित्र वापस लगवाया
1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में अपना कार्यभार संभालने साउथ ब्लॉक के अपने दफ़्तर गए तो उन्होंने नोट किया कि दीवार पर लगा नेहरू का एक चित्र ग़ायब है|
किंगशुक नाग बताते हैं कि उन्होंने तुरंत अपने सचिव से पूछा कि नेहरू का चित्र कहां है, जो यहां लगा रहता था.
उनके अधिकारियों ने ये सोचकर उस चित्र को वहां से हटवा दिया था कि इसे देखकर शायद वाजपेयी ख़ुश नहीं होंगे.
वाजपेयी ने आदेश दिया कि उस चित्र को वापस लाकर उसी स्थान पर लगाया जाए जहां वह पहले लगा हुआ था.
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि जैसे ही वाजपेयी उस कुर्सी पर बैठे जिस पर कभी नेहरू बैठा करते थे, उनके मुंह से निकला, “कभी ख़्वाबों में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं इस कमरे में बैठूँगा.”
विदेश मंत्री बनने के बाद उन्होंने नेहरू के ज़माने की विदेश नीति में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं किया|
भाषणों के लिए बहुत मेहनत करते थे वाजपेयी
वाजपेयी के निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा बताते हैं कि सार्वजनिक भाषणों के लिए वाजपेयी कोई ख़ास तैयारी नहीं करते थे, लेकिन लोकसभा का भाषण तैयार करने के लिए वो ख़ासी मेहनत किया करते थे.
शक्ति के मुताबिक़, “संसद के पुस्तकालय से पुस्तकें, पत्रिकाएं और अख़बार मंगवाकर वाजपेयी देर रात अपने भाषण पर काम करते थे. वो पॉइंट्स बनाते थे और उस पर सोचा करते थे. वो पूरा भाषण कभी नहीं लिखते थे, लेकिन उनके दिमाग़ में पूरा ख़ाका रहता था कि अगले दिन उन्हें लोकसभा में क्या-क्या बोलना है”
इतना सुंदर भाषण देने वाले वाजपेयी हर 15 अगस्त को लाल किले से दिया जाने वाला भाषण पढ़कर क्यों देते थे?
आडवाणी को कॉम्पलेक्स
अटल बिहारी वाजपेयी के काफ़ी क़रीब रहे उनके साथी लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार बीबीसी को बताया था कि अटलजी के भाषणों को लेकर वह हमेशा हीनभावना से ग्रस्त रहे.
आडवाणी ने बताया था, “जब अटलजी चार वर्ष तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके तो उन्होंने मुझसे अध्यक्ष बनने की पेशकश की. मैंने ये कहकर मना कर दिया कि मुझे हज़ारों की भीड़ के सामने आपकी तरह भाषण देना नहीं आता. उन्होंने कहा संसद में तो तुम अच्छा बोलते हो. मैंने कहा संसद में बोलना एक बात है और हज़ारों लोगों के सामने बोलना दूसरी बात. बाद में मैं पार्टी अध्यक्ष बना, लेकिन मुझे ताउम्र कॉम्पलेक्स रहा कि मैं वाजपेयी जैसा भाषण कभी नहीं दे पाया.”
वो सिंगल जिन्होंने सियासत में ‘जमाया’ है सिक्का!
अंतर्मुखी और शर्मीले
दिलचस्प बात यह है कि हज़ारों लोगों को अपने भाषण से मंत्रमुग्ध कर देने वाले वाजपेयी निजी जीवन में अंतर्मुखी और शर्मीले थे.
उनके निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा बताते हैं कि ”अगर चार-पांच लोग उन्हें घेरे हुए हों तो उनके मुंह से बहुत कम शब्द निकलते थे. लेकिन वो दूसरों की कही बातों को बहुत ध्यान से सुनते थे और उस पर बहुत सोच-समझकर बारीक प्रतिक्रिया देते थे. एक दो ख़ास दोस्तों के सामने वो खुलकर बोलते थे, लेकिन वो बैक स्लैपिंग वेराइटी कभी नहीं रहे.”
मणिशंकर अय्यर याद करते हैं कि जब वाजपेयी पहली बार 1978 में विदेश मंत्री के तौर पर पाकिस्तान गए तो उन्होंने सरकारी भोज में गाढ़ी उर्दू में भाषण दिया. पाकिस्तान के विदेश मंत्री आगा शाही चेन्नई में पैदा हुए थे. उनको वाजपेयी की गाढ़ी उर्दू समझ में नहीं आई.
शक्ति सिन्हा बताते हैं कि ”एक बार न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ वाजपेयी से बात कर रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करना था. उन्हें चिट भिजवाई गई कि बातचीत ख़त्म करें ताकि वो भाषण देने जा सकें. चिट देखकर नवाज़ शरीफ़ ने वाजपेयी से कहा, “इजाज़त है… फिर उन्होंने अपने को रोका और पूछा आज्ञा है.” वाजपेयी ने हंसते हुए जवाब दिया, “इजाज़त है.”
‘वाजपेयी बोले, गुजरात में हमसे ग़लती हुई’
वाजपेयी की स्कूटर सवारी
वाजपेयी अपनी सहजता और मिलनसार स्वभाव के लिए हमेशा मशहूर रहे हैं. मशहूर पत्रकार और कई अख़बारों के संपादक रहे एच के दुआ बताते हैं, “एक बार मैं अपने स्कूटर से एक संवाददाता सम्मेलन को कवर करने काँस्टिट्यूशन क्लब जा रहा था जिसे अटल बिहारी वाजपेयी संबोधित करने जा रहे थे. उस ज़माने में मैं एक युवा रिपोर्टर हुआ करता था. रास्ते में मैंने देखा कि जनसंघ के अध्यक्ष वाजपेयी एक ऑटो को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. मैंने अपना स्कूटर धीमा करके वाजपेयी से ऑटो रोकने का कारण पूछा. उन्होंने बताया कि उनकी कार ख़राब हो गई है. मैंने कहा कि आप चाहें तो मेरे स्कूटर के पीछे की सीट पर बैठकर काँस्टिट्यूशन क्लब चल सकते हैं.”
उन्होंने बताया, “वाजपेयी मेरे स्कूटर पर पीछे बैठकर उस संवाददाता सम्मेलन में पहुंचे जिसे वो ख़ुद संबोधित करने वाले थे. जब हम वहाँ पहुंचे तो जगदीश चंद्र माथुर और जनसंघ के कुछ नेता हमारा इंतज़ार कर रहे थे. माथुर ने हमें देखते ही चुटकी ली, ‘कल एक्सप्रेस में छपेगा, वाजपेयी राइड्स दुआज़ स्कूटर.’ वाजपेयी ने खिलखिला कर जवाब दिया, ‘नहीं हेडलाइन होगी दुआ टेक्स वाजपेयी फॉर अ राइड.”
नाराज़गी से दूर दूर का वास्ता नहीं
शिव कुमार पिछले 51 सालों से अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रहे हैं. ख़ुद उनके शब्दों में वो एक साथ अटल के चपरासी, रसोइये, बॉडीगार्ड, सचिव और लोकसभा क्षेत्र प्रबंधक की भूमिका निभाते रहे हैं.
जब मैंने उनसे पूछा कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी को कभी ग़ुस्सा आता था तो उन्होंने एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाया, “उन दिनों मैं उनके साथ 1, फ़िरोज़शाह रोड पर रहा करता था. वो बेंगलुरू से दिल्ली वापस लौट रहे थे. मुझे उन्हें लेने हवाई अड्डे जाना था. जनसंघ के एक नेता जेपी माथुर ने मुझसे कहा चलो रीगल में अंग्रेज़ी पिक्चर देखी जाए. छोटी पिक्चर है जल्दी ख़त्म हो जाएगी. उन दिनों बेंगलुरू से आने वाली फ़्लाइट अक्सर देर से आती थी. मैं माथुर के साथ पिक्चर देखने चला गया.”
शिव कुमार ने बताया, “उस दिन पिक्चर लंबी खिंच गई और बेंगलुरू वाली फ़्लाइट समय पर लैंड कर गई. मैं जब हवाई अड्डे पहुंचा तो पता चला कि फ़्लाइट तो कब की लैंड कर चुकी. घर की चाबी मेरे पास थी. मैं अपने सारे देवताओं को याद करता हुआ 1, फ़िरोज़ शाह रोड पहुंचा. वाजपेयी अपनी अटैची पकड़े लॉन में टहल रहे थे. उन्होंने मुझसे पूछा कहाँ चले गए थे? मैंने झिझकते हुए कहा कि पिक्चर देखने गया था. वाजपेयी ने मुस्कराकर कहा यार हमें भी ले चलते. चलो कल चलेंगे. वो मुझ पर नाराज़ हो सकते थे लेकिन उन्होंने मेरी उस लापरवाही को हंसकर टाल दिया.”
जब वाजपेयी रामलीला मैदान में सोए
उनके दोस्त सुनाते थे किस्सा. ‘वाजपेयी हमेशा इस बात का ध्यान रखते ते कि उनकी वजह से किसी दूसरे को कोई परेशानी न हो. बहुत समय पहले जनसंघ का दफ़्तर अजमेरी गेट पर हुआ करता था. वाजपेयी, आडवाणी और जे पी माथुर वहीं रहा करते थे. एक दिन वाजपेयी रात की ट्रेन से दिल्ली लौटने वाले थे| उनके लिए खाना बना कर रख दिया गया था. रात 11 बजे आने वाली गाड़ी 2 बजे पहुंची.”
उन्होंने बताया, ‘सवेरे 6 बजे दरवाज़े की घंटी बजी तो मैंने देखा वाजपेयी सूटकेस और होल्डाल (बड़ा बैग) लिए दरवाज़े पर खड़े हैं. हमने पूछा, आप तो रात को आने वाले थे. वाजपेयी ने कहा, गाड़ी 2 बजे पहुंची तो आप लोगों को जगाना ठीक नहीं समझा. इसलिए मैं रामलीला मैदान में जा कर सो गया’
वाजपेयी 69 साल की उम्र में भी डिज़नीलैंड की राइड्स लेने का आनंद नहीं चूकते थे| अपनी अमरीका यात्राओं के दौरान वो अक्सर अपने कुर्ते धोती को सूटकेस में रख कर पतलून और कमीज़ पहन लेते थे| न्यूयार्क की सड़कों पर उन्होंने कई बार अपने सुरक्षाकर्मियों के लिए साफ़्ट ड्रिंक्स और आइसक्रीम ख़रीदी है. वो अपनी नातिन निहारिका को लिए खिलौने ख़रीदने के लिए खिलौनों की मशहूर दुकान श्वार्ज़ जाना पसंद करते थे. उनका एक और शौक था, न्यूयार्क की पेट शाप्स में जाना जहाँ से वो अपने कुत्तों सैसी और सोफ़ी और बिल्ली रितु के लिए कालर्स और खाने का सामान ख़रीदा करते थे.
वाजपेयी को खाना खाने और बनाने का बहुत शौक़ था मिठाइयां उनकी कमज़ोरी थी, रबड़ी, खीर और मालपुडे के वो बेहद शौक़ीन थे. आपातकाल के दौरान जब वो बेंगलुरू जेल में बंद थे तो वो आडवाणी, श्यामनंदन मिश्र और मधु दंडवते के लिए ख़ुद खाना बनाते थे.
शक्ति सिन्हा के अनुसार , “जब वो प्रधानमंत्री थे तो सुबह नौ बजे से एक बजे तक उनसे मिलने वालों का तांता लगा करता था. आने वालों को रसगुल्ले और समोसे वग़ैरह सर्व किए जाते थे. हम सर्व करने वालों को ख़ास निर्देश देते थे कि साहब के सामने समोसे और रसगुल्ले की प्लेट न रखी जाए.”
“शुरू में वह शाकाहारी थे लेकिन बाद में वह मांसाहारी हो गए थे. उन्हें चाइनीज़ खाने का ख़ास शौक था. उनका एक सामान्य लोगों की तरह व्यक्तित्व था |
अटल बिहारी वाजपेयी के पसंदीदा कवि थे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, हरिवंशराय बच्चन, शिवमंगल सिंह सुमन और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़. शास्त्रीय संगीत भी उन्हें बेहद पसंद था. भीमसेन जोशी, अमजद अली खाँ और कुमार गंधर्व को सुनने का कोई मौक़ा वह नहीं चूकते थे.
किंगशुक नाग का मानना है कि हालांकि वाजपेयी की पैठ विदेशी मामलों में अधिक थी लेकिन अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने सबसे ज़्यादा काम आर्थिक क्षेत्र में किया.
वे कहते हैं, “टेलिफ़ोन और सड़क निर्माण में वाजपेयी के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता. भारत में आजकल जो हम हाइवेज़ का जाल बिछा हुआ देखते हैं उसके पीछे वाजपेयी की ही सोच है. मैं तो कहूँगा कि शेरशाह सूरी के बाद उन्होंने ही भारत में सबसे अधिक सड़कें बनवाई हैं.”
गुजरात दंगों को लेकर हमेशा असहज
रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत अपनी किताब ‘द वाजपेयी इयर्स’ में लिखते हैं कि वाजपेयी ने गुजरात दंगों को अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी ग़लती माना था.
किंगशुक नाग भी कहते हैं गुजरात दंगों को लेकर वह कभी सहज नहीं रहे. वो चाहते थे कि इस मुद्दे पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इस्तीफ़ा दें.
नाग कहते हैं, “उस समय के वहाँ के राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी के एक बहुत क़रीबी ने मुझे बताया था कि मोदी के इस्तीफ़े की तैयारी हो चुकी थी लेकिन गोवा राष्ट्रीय सम्मेलन आते-आते पार्टी के शीर्ष नेता मोदी के बारे में वाजपेयी की राय बदलने में सफल हो गए थे|
–केंद्र सरकार ने उनके निधन पर 7 दिन के शोक की घोषणा की
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया है. लंबे समय से बीमार चल रहे 93 वर्षीय वाजपेयी जून महीने से ही नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे.
एम्स ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने गुरुवार की शाम पाँच बजकर पाँच मिनट पर अंतिम सांस ली.
उन्हें इसी वर्ष जून में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से एम्स में भर्ती कराया गया था.
उनका शव शुक्रवार को नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के हेडक्वार्टर में श्रद्धांजलि के लिए रखा जाएगा. उनकी अंतिम क्रिया विजयघाट पर शुक्रवार को शाम 5 बजे की जाएगी.
भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे, पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए फिर 1998 से 1999 और आखिरी बार 1999 से 2004 तक.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वाजपेयी के निधन से एक युग का अंत हो गया है.
देश के प्रधानमंत्री के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी एक सर्वप्रिय कवि, वक्ता और समावेशी राजनीति के पर्याय थे.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, “भारत ने आज एक महान सपूत खो दिया. पूर्व प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी जी लाखों के चहेते थे. मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं. हमें हमेशा उनकी कमी अखरेगी.”
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी ट्वीट के ज़रिए उन्हें श्रद्धांजलि दी.
पूर्व प्रधानमंत्री व भारतीय राजनीति की महान विभूति श्री अटल बिहारी वाजपेयी के
देहावसान से मुझे बहुत दुख हुआ है। विलक्षण नेतृत्व, दूरदर्शिता तथा अद्भुत भाषण उन्हें
एक विशाल व्यक्तित्व प्रदान करते थे।उनका विराट व स्नेहिल व्यक्तित्व हमारी स्मृतियों में बसा रहेगा—राष्ट्रपति कोविन्द
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजमाता और वाजपेयी की तस्वीर ट्वीट कर बता रही हैं कि उन्हीं दोनों की छाया में उन्होंने राजनीति में अपना पहला कदम रखा था.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने भी ट्वीट में वाजपेयी को ‘स्टेटस्मैन’ बताया है.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि वाजपेयी का जाना उनके लिए निजी क्षति है.
बीजेपी नेता शाहनवाज़ हुसैन ने वाजपेयी की कविता के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी.
कांग्रेस नेता सलमान सोज़ लिखते हैं कि कश्मीर में शांति के लिए अटल जी एक आशा की तरह थे.
राजनीतिज्ञों के अलावा हिंदी सिनेमा के लोग भी वाजपेयी को विनम्र श्रद्धांजलि दे रहे हैं. अभिनेता फ़रहान अख़्तर ने लिखा है कि शांति और एकता के साधने वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा.
अभिनेता बमन ईरानी ने लिखा है कि ऐसा बहुत कम होता है कि किसी व्यक्ति को राजनीति में सबसे इतना प्यार और सम्मान मिले.
अभिनेता संजय दत्त ने लिखा है कि वाजपेयी उनके परिवार के क़रीबी थे और उनका जाना देश के लिए बड़ी क्षति है.
एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफ़र आसान नहीं था. 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी| उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के बाद पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया| उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया.
जनसंघ और भाजपा
1951 में वो भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे. अपनी कुशल भाषण कला शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया. हालांकि लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे.
दरअसल 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया. लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे| इसके साथ ही उन्होंने संसद के गलियारे में अपनी पांच दशकीय संसदीय करियर की शुरुआत की थी| 1968 से 1973 तक वो भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे. विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया| 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया| इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताते थे.1979 में जनता सरकार के गिरने के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया. वाजपेयी इसके संस्थापक सदस्य थे और पहले अध्यक्ष भी | 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे.
तीन बार बने प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी 10 बार लोकसभा के लिए चुने गए. वो दूसरी लोकसभा से चौदहवीं लोकसभा तक संसद के सदस्य रहे. बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति भी रही. ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे.
1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा. इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे.
अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता को याद कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी.
1998 के आम चुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने|
लेकिन यह सरकार भी केवल 13 महीनों तक ही चल सकी. एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए.
1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली.
अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न के सम्मानित करते तात्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
2009 में सत्ता की राजनीति से संन्यास लेते वक्त वो लखनऊ से सांसद थे. उन्हें 2014 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया. नरेंद्र मोदी सरकार उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को ‘गुड गवर्नेंस डे’ के तौर पर मनाती है|
बतौर प्रधानमंत्री उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मई 1998 में परमाणु बम का परीक्षण शामिल है. पोखरन-2 के साथ ही उनके कार्यकाल के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्हें आज भी याद किया जाता है. इनमें करगिल युद्ध, लाहौर समिट, इंडियन एयरलाइंस का विमान हाइजैक, 2001 में संसद पर आतंकी हमला, 2002 में गुजरात दंगे आदि शामिल हैं|
वह अटल अजातशत्रु वह राजनीति का वैभव जा रहा है
हवाओं रास्ता दो
मेरा भारत रत्न मेरा जननायक जा रहा है
वो जब बोलता था तब लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे।
साथ उसके वाणी का सम्मोहक जा रहा है।
पोखरण में जिसकी धमक को दुनिया ने देखा
वो जिसने खींची राष्ट्र में स्वर्णिम चतुर्भुज की रेखा
हवाओं रास्ता दो
मेरा राष्ट्र रत्न मेरा देश नायक जा रहा है।
राजनीति की काली कोठरी में जो सदा बेदाग रहा
सत्य को सदा सत्य कहने वाला अपने विचारों पर अटल रहने वाला
कवि ह्रदय विचारक जा रहा है।
हवाओं रास्ता दो
मेरा राष्ट्र भक्त मेरा राष्ट्र नायक जा रहा है।
कृतज्ञ राष्ट्र,कृतज्ञ राजनीति, कृतज्ञ जनमानस निःशब्द खड़े देखते हैं।
हम इंसानों के बीच से वह देवतुल्य महामानव जा रहा है
हवाओं रास्ता दो
मेरा विश्व रत्न मेरा गणनायक जा रहा है।
{बड़ी रौनक होगी आज भगवान के दरबार में
एक फरिश्ता पहुंचा है जमीं से आसमान में।।।
अटल थे अटल है और अटल रहेंगे।।}
शत शत नमन।।
अपने पाठकों के लिए कुछ जानकारियां उपलब्ध करवाने के लिए आवाज़ जनादेश सोसिल मिडिया की मदत से ली गई है |