आवाज़ जनादेश धर्मशाला, : पंजाब में खतरे की हद को पार चुके ड्रग्स सेवन और इससे जुड़े कारोबार से प्रभावित हो रहे हिमाचल प्रदेश को इसके चंगुल से बचाने के लिए न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार के तत्वावधान में ड्रग्स प्रभावित व्यक्तियों या व्यसनियों के पुनर्वास हेतु निर्माण के लिए सिद्धबाड़ी स्थित क्षेत्रीय संसाधन प्रशिक्षण केन्द्र-2 (आर.आर.टी.सी.-2) में मंत्रणा के लिए राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया। सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिता विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिता विभाग के निदेशक हंस राज चौहान ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि राज्य में ड्रग्स प्रभावितों के पुनर्वास हेतु नीति निर्माण से पूर्व इससे जुड़े विभिन्न मुद्दों पर समाज के सभी वर्गों को इसके लिए आयोजित होनी व्यापक चर्चाओं में शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला इस सिलसिले की प्रथम कड़ी है और प्रदेश के सभी सम्बन्धित विभागों, वर्गों और पंचायती राज संस्थाओं को इसमें शामिल किया जाएगा। इससे प्रदेश में ड्रग्स प्रभावितों के पुनर्वास हेतु नीति निर्माण में सभी वर्गों के सुझावों को सम्मिलित करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि समाज, विशेषकर युवाओं में नशे के बढ़ते चलन की रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक बनाया जाना अनिवार्य है। इसमें ग्राम सभाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने कहा कि नीति निर्माण में नवीनतम सम्बन्धित आँकड़ों के प्रयोग के लिए आवश्यक अनुसंधान पर बल दिया जाएगा।
कुल्लू ज़िला की एसपी शालिनी अग्रिहोत्री ने अपने ज़िला में पिछले सात माह से चलाए जा रहे नशा उन्मूलन अभियान के अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह समस्या अवैध उत्पादन, अवैध कारोबार और ड्रग्स सेवन तक की ही सीमित नहीं है, क्योंकि इसे कुछ लोग सुनियोजत ढंग से चला रहे हैं। ये लोग विशेषकर युवाओं को अपना निशाना बना रहे हैं। भाँग और अफीम के उत्पादन के लिए प्रयोग की जाने वाली अधिकाँश भूमि सरकारी और वन विभाग की है। भाँग का पौधा अपने अनुकूल प्राप्त जलवायु में बेहद खतरनाक ढंग से फैलता है। मलाना घाटी के अलावा इस धंधे में लगे अन्य स्थानों पर भी ऐसी जगहों को इस्तेमाल कर रहे हैं, जहाँ आम आदमी का पहुँचना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि महिलाएं भी इस नशे के गिरफ्त में फँस रही हैं; लेकिन जो छूटना चाहती हैं, उनके लिए कोई भी पुनर्वास केन्द्र राज्य में मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर माँग नहीं होगी तो आपूर्ति अपने आप रुक जाएगी। उन्होंने कहा कि भाँग और लैंटना के स्थान पर अगर जंगली गैंदा लगाया जाए तो यह इन दोनों हानिकारक पौधों को समाप्त कर सकता है।
ज़िला विधिक सेवा की सचिव नेहा दहिया ने सुझाव दिया कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में चलाए जाने वाले भाँग उन्मूलन अभियान को मनरेगा में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने नालसा के तहत नशा उन्मूलन के लिए चलाए जा रहे विभिन्न कदमों की जानकारी भी दी।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के सहायक प्रोफेसर डॉ० आलोक अग्रवाल ने कहा कि ड्रग्स सेवन तथा इसके कारोबार पर अंकुश लगाने हेतु ठोस कदम उठाने के लिए सभी विभागों को आपस में बेहतर समन्वय स्थापित करना होगा और सामूहिक उत्तरदायित्व लेते हुए इसके सभी सम्बन्धित विभागों, समाज कि सभी वर्गों और सामुदायिक नेतृत्व को शामिल करना होगा। उन्होंने अपने बेहद प्रभावपूर्ण प्रस्तुतिकरण में समूचे देश में ड्रग्स से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं और पहलुओं की महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने कहा कि राज्य में कुल्लू, कांगड़ा और किन्नौर जिला में ड्रग्स व्यसन से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करने के लिए विशेष सर्वेक्षण चलाया गया था।
विभाग के सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक वीके मोद्गिल ने सभी सम्बन्धित एनजीओ और पुनर्वास केन्द्रों से आग्रह किया कि वे ड्रग्स एडिक्ट्स के इलाज में प्रशिक्षित चिकित्सकों की सहायता लें और उन्हीं के परामर्श से उन्हें दवाइयाँ उपलब्ध करवाएं।
प्रसिद्ध मीडिया कर्मी और कवि नवनीत शर्मा ने भी इस अवसर अपने विचार रखे और विभाग से आग्रह किया कि इस तरह की कार्यशालाओं में तमाम मीडिया कर्मियों को आमंत्रित किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर क्षेत्रीय अस्पताल, धर्मशाला की डॉ० अनिता, टांडा मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. मेजर सुखजोत, डीआरडीए के पीओ मुनीष शर्मा, डीएसपी सुरेन्द्र शर्मा, चंबा से आए स्वयंसेवी तथा ग्राम प्रधान नरेश रावत, अमर ज्योति कला मंच बिलासपुर की संचालक अमरावती, विवेक, सहयोग संस्था ऊना के प्रेमी, नया सवेरा के दयानंद शर्मा और नया जीवन के विशाल ने अपने विचार और अनुभव साझा किए। प्रसिद्ध स्वयंसेवी विजय कुमार ने कार्यशाला का संचालन किया।
ड्रग्स प्रभावितों के पुनर्वास हेतु नीति निर्माण पर राज्य स्तरीय कार्यशाला में मंत्रणा
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