(आओ कुछ जाने अपने सविंधान के बारे क्या कहता भारतीय ज्ञान कोष )
भारतीय ज्ञान कोष – भारत में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं। इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और राजस्थान तथापंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति। यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है।
भारत का संविधान
भारत का संविधान (अंग्रेज़ी: Constitution of India) भारत का सर्वोच्च विधान है, जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है, जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है, इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ – इस वाक्य से प्रारम्भ होती है।
भारत अथवा ‘इण्डिया’ राज्यों का एक संघ है। यह संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है जिसे संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को ग्रहण किया गया तथा जो 26 जनवरी 1950 को प्रवृत्त हुआ। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है जिसकी संरचना कतिपय एकात्मक विशिष्टताओं सहित संघीय हो। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार, केन्द्रीय संसद की परिषद में राष्ट्रपति तथा दो सदन है जिन्हें राज्यों की परिषद (राज्य सभा) तथा लोगों का सदन (लोक सभा) के नाम से जाना जाता है। संविधान की धारा 74 (1) में यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्री परिषद होगी जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा, राष्ट्रपति सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है।
मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोक सभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्येक राज्य में एक विधान सभा है। कुछ राज्यों में एक ऊपरी सदन है जिसे राज्य विधान परिषद कहा जाता है। राज्यपाल राज्य का प्रमुख है। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें विहित होगी। मंत्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख्य मंत्री है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है। राज्य की मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है।
संविधान में संविधान की सातवीं अनुसूची में प्रविष्टियों की सूचियों के अनुसार संसद तथा राज्य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं। केन्द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्य क्षेत्र कहा जाता है।
- भाग I: संघ और उसके क्षेत्र
- भाग II: नागरिकता
- भाग III: मूलभूत अधिकार
- भाग IV: राज्य के नीति निर्देशक तत्व
- भाग IV क : मूल कर्तव्य
- भाग V: संघ
- भाग VI: राज्य
- भाग VII: प्रथम अनुसूची के भाग ख में राज्य
- भाग VIII: संघ राज्य क्षेत्र
- भाग XI: पंचायत
- भाग IXA: नगरपालिकाएं
- भाग X: अनुसूचित जनजाति क्षेत्र
- भाग XI: संघ और राज्यों के बीच संबंध
- भाग XII: वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और वाद
- भाग XIII: भारत के राज्य क्षेत्र के अंदर व्यापार, वाणिज्य और समागम
- भाग XIV: संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं
- भाग XIV क: अधिकरण
- भाग XV: निर्वाचन
- भाग XVI: कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध
- भाग XVII: राजभाषा
- भाग XVIII: आपात उपबंध
- भाग XIX: प्रकीर्ण
- भाग XX: संविधान के संशोधन
- भाग XXI: अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध
- भाग XXII: संक्षिप्त नाम, प्रारंभ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और निरसन
- अनुसूचियाँ
- परिशिष्ट
- अनुक्रमणिका
हिमालय तीन समानांतर पर्वत श्रंखलाओं में अवस्थित है जो पश्चिम में सिंधु गार्ज से पूर्व में ब्रह्मपुत्र गार्ज तक विस्तृत है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय पर्वत श्रंखला का विस्तार 2500 किमी. है। इस पर्वत शृंखला की पूर्व में चौड़ाई 150 किमी. तथा पश्चिम में 500 किमी तक है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिमालय पर्वत श्रेणी को तीन वृहत् भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
महान (वृहत्) अथवा आंतरिक हिमालय
महान अथवा आन्तरिक हिमालय ही हिमालय पर्वतमाला की सबसे प्रमुख तथा सवोच्च तथा सर्वोच्च श्रेणी है, जिसकी लम्बाई उत्तर में सिंधु नदी के मोड़ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी. है। इसकी चौड़ाई 120 से 190 किमी. तक तथा औसत ऊंचाई 6,100 मीं. है। अत्यधिक ऊंचाई के कारण हिमालय साला भर बर्फ़ से ढंका रहता हैं, अतः इसे हिमाद्रि भी कहते हैं। इस श्रेणी में विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ पाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं – माउण्ट एवरेस्ट (8,848 मी.), कंचनजंगा (8,598 मीं.), मकालू (8,481 मीं.), धौलागिरी (8,172 मी.), मनसालू (8156 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मीं.), अन्नापूर्णा (8,078 मी.), गोवाई थान (8,013 मी.), नन्दा देवी (7,817 मी.), नामचाबरवा (7,756 मी.), हरामोश (7,397 मी.), आदि। इस श्रेणी में उत्तर पश्चिम की ओर जास्कर श्रेणी के उत्तर-दक्षिण में देवसाई तथा रूपशू के ऊंचे मैदान मिलते हैं। सिन्धु, सतलुज, दिहांग, गंगा, यमुना तथा इनकी सहायक नदियों की घाटियाँ इसी श्रेणी में स्थित है।
लघु अथवा मध्य हिमालय श्रेणी
यह महान् हिमालय के दक्षिण के उसके समानान्तर विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 80 से 100 किमी. तक औसत ऊंचाई 1,828 से 3,000 के बीच पायी जाती है। इस श्रेणी में नदियों द्वारा 1,000 मीं. से भी अधिक गहरे खड्डों अथवा गार्जों का निर्माण किया गया है। यह श्रेणी मुख्यतः छोटी-छोटी पर्वत श्रेणियों जैसे – धौलाधार, नागटीवा, पीरपंजाल, महाभारत तथा मसूरी कासम्मिलित रूप है। इस श्रेणी के निचले भाग में देश के प्रसिद्ध पर्वतीय स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान – शिमला, मसूरी, नैनीताल, चकराता, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्थित है। वृहत तथा लघु हिमालय के बीच विस्तृत घाटियां हैं जिनमें कश्मीर घाटी तथा नेपाल में काठमांडू घाटी प्रसिद्ध है। इस श्रेणी के ढालों पर मिलने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को जम्मू-कश्मीर में मर्ग (जैसे-सोनमर्ग, गुलमर्गआदि) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता हे।
उप हिमालय या शिवालिक श्रेणी
यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है एवं इसको ‘वाह्म हिमालय’ के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय पर्वत की दक्षिणतम श्रेणी है जो लघु हिमालय के दक्षिण में इसके समानांतर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है। इसकी औसत ऊंचाई 900 से 12,00 मीटर तक औसत चौड़ाई 10 से 50 किमी है। इसका विस्तार पाकिस्तान के पोटवार पठार से पूर्व में कोसी नदी तक है।गोरखपुर के समीप इसे डूंडवा श्रेणी तथा पूर्व की ओर चूरियामूरिया श्रेणी के स्थानीय नाम से भी पुकारा जाता है। यह हिमालय पर्वत का सबसे नवीन भाग है। लघु तथा वाह्म हिमालय के बीच पायी जाने वाली विस्तृत घाटियों को पश्चिम में ‘दून’ तथा पूर्व में ‘द्वार’ कहा जाता है। देहरादून, केथरीदून तथा पाटलीदून और हरिद्वार इसके प्रमुख उदाहरण है।
हिमालय पर्वत श्रेणियों की दिशा में असम से पूर्व से उत्तर पूर्व हो जाती है। नामचाबरचा के आगे यह श्रेणियाँ दक्षिणी दिशा में मुड़कर पटकोई, नागा, मणिपुर, लुशाई, अराकानयोमा, आदि श्रेणियों के रूप में स्थित हैं जो भारत एवं म्यान्मार के मध्य सीमा बनाती है।
शिवालिक को जम्मू में जम्मू पहाड़ियाँ तथा अरुणाचल प्रदेश में डफला, गिरी, अवोर और मिशमी पहाड़ियों के नाम से भी जाना जाता है। अक्साईचीन, देवसाई, दिषसंग तथा लिंगजीतांग के उच्च तरंगित मैदान इन पर्वतों के निर्माण से पहले ही क्रिटेशश काल में बन चुके थे जो अपरदन धरातल के प्रमाण हैं।
उत्तर का विशाल मैदान
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति के पश्चात् उसके दक्षिण तथा प्राचीन शैलों से निर्मित प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर में, दोनों उच्च स्थलों से निकलने वाली नदियों, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, आदि द्वारा जमा की गई जलोढ़ मिट्टी के जमाव से उत्तर के विशाल मैदान का निर्माण हुआ है। इस मैदान को सिंधु-गंगा ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं। यह मैदान धनुषाकार रूप में 3200 किमी. की लम्बाई में देश के 7.5 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत हैं। इसकी चौड़ाई पश्चिम में 480 किमी तथा पूर्व में मात्र 145 किमी है। प्रादेशिक दृष्टि से उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश,बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा असम में इसका विस्तार हैं। इन मैदान को पश्चिमी तथा पूर्वी दो भाग में बांटा जाता है। पश्चिमी मैदान का अधिकांश भाग वर्तमान पाकिस्तान के सिन्ध प्रांतमें पड़ता है, जबकि इसका कुछ भाग पंजाब व हरियाणा राज्यों में भी मिलता है। इसका निर्माण, सतजल, व्यास तथा रावी एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा किया गया है। पूर्वी मैदान का विस्तान उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में हैं, जिसका क्षेत्रफल 3.57 लाख वर्ग किमी. है। इस मैदान में धरातलीय भू-आकृति के आधार पर बांगर तथा खादर नामक दो विशेष भाग मिलते हैं। बांगर प्राचीनतम संग्रहीत पुरानी जलोढ़ मिट्टी के उच्च मैदानी भाग हैं, जहाँ कभी नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। खादर की गणना नवीनतम कछारी भागों के रूप में की जाती है। यहाँ पर प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुंचने एवं नयी मिट्टी का जमाव होने से काफ़ी ऊपजाऊ माने जाते हैं।
उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन
उत्तर के विशाल मैदान को अनेक उपविभागों में बाँटा गया है, जिनमें प्रमुख हैं – पंजाब, हरियाणा का मैदान, राजस्थान का मेदान, गंगा का मैदान एवं ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी। गंगा के मैदान कोहरिद्वार से अलीगढ़ तक ऊपरी दोआब तथा अलीगढ़ से इलाहाबाद तक मध्य दोआब के नाम से जाना जाता है। गंगा तथा यमुना दोआब के ऊत्तरी-मध्य उत्तर प्रदेश में स्थित भाग कोरूहेलखण्ड का मैदान कहा जाता है। इस मैदान पर राम गंगा, शारदा तथा गोमती नदियाँ प्रवाहित होती है। उत्तर प्रदेश के उत्तरी पूर्वी भाग में अवध का मैदान स्थित हैं, जिसमें घाघरा, राप्तीतथा गोमती नदियाँ बहती है। गंगा के मैदान के उत्तरी-पूर्वी भाग में असम तक ब्रह्मपुत्र नदी का मैदान स्थित है, जो कि गारो पहाड़ी, मेघालय पठार तथा हिमालय पर्वत के बीच लम्बे एवं पतले रूप में फैला है। इसकी चौड़ाई मात्र 80 किमी. है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी की अवनतीय संरचना मे जमा किये गये अवसादों से इस मेदान में मियाण्डर, गोखुर झील, आदि का निर्माण हो गया है। इस मैदान के ढाल की दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर है तथा इसकी सीमा पर तराई एव अर्द्ध-तराई क्षेत्र मिलते हैं, जो दलदलो एवं सघन वनों से अच्छादित हैं
उत्तर के विशाल मैदान से सम्बन्धित दो प्रमुख शब्दावलियाँ हैं – भावर तथा तराई। ये अवसादी जमाव की विशेषताओं की परिचारक भी हैं।
भावर
यह क्षेत्र हिमालय तथा गंगा के मैदान के बीच पाया जाता है। जिसमें पर्वतीय भाग से नीचे आने वाली नदियों ने लगभग 8 किमी की चौड़ाई में कंकड़ों एवं पत्थरों का जमाव कर दिया है। यही गंगा मैदान की सबसे उत्तरी सीमा भी है। इस पथरीले क्षेत्र में हिमालय से निकलने वाली नदियाँ प्रायः विलीन हो जाती है और केवल कुछ बड़ी नदियों की धारा ही धरातल पर प्रवाहित होती हुई दिखती है।
तराई
यह क्षेत्र भावर के नीचे उसके समानान्तर स्थित है, जिसकी चौड़ाई 15 से 30 किमी तक पायी जाती हैं। भावर प्रदेश में विलीन हुई नदियों का जल तराई क्षेत्र में ऊपर आ जाता हे। यह वास्तव में निम्न समतल मैदानी क्षेत्र हैं, जहाँ नदियों का जल इधर-उधर फैल जाने से दलदलों का निर्माण हो गया है। वर्तमान में यहां की सघन वनस्पतियों को काटकर तथा दलदलों को सुखाकर कृषि कार्य के लिए उपयोगी बना लिया गया है।
बांगर
बांगर प्रदेश भी उत्तर के विशाल मैदान की एक विशेषता है। यह प्रदेश पुरानी जलोढ़ मिट्टी का बना होता है जहां नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंचता है। इस प्रदेश में चूनायुक्त संग्रथनों की अधिकता होने के कारण यह कृषि के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होता है। पंजाब में मिलने वाले बांगर को धाया कहा जाता है।
खादर
बांगर के विपरीत खादर प्रदेश में नदियों की बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुंचता है। इस प्रदेश का निर्माण नवीन जलोढ़ मिट्टी द्वारा होता है क्योंकि बाढ़ के जल के साथ नवीन मिट्टी यहां प्रति वर्ष बिछती रहती है। यह प्रदेश कृषि के लिए अत्यधिक उपयुक्त होती है। पंजाब में मिलने वाले खादर को ‘बेट’ कहा जाता है।
डेल्टा
मुख्य लेख : डेल्टा
उत्तरी विशाल मैदान में गंगा तथा सिंधु नदी के डेल्टा मिलते हैं। गंगा का डेल्टा राजमहल की पहाड़ियों में सुन्दरवन के किनारे तक 430 किमी की लम्बाई में विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 480 किमी है। सिंधु नदी का डेल्टा 960 किमी लम्बा और 160 किमी चौड़ा है।
प्रायद्वीपीय पठारी भाग
मुख्य लेख : प्रायद्वीप
गंगा के विशाल मैदान के दक्षिण से लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक त्रिभुजाकार आकृति में लगभग 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर प्रायद्वीपीय पठारी भाग फैला हुआ है। यह भाग दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं केरल राज्यों में फैला है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। इस पर प्रवाहित होने वाली नदियों ने इसका कई छोटे-छोटे पठारों में विभाजित कर दिया है। इसकी लम्बाई राजस्थान से कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1,700 किमी. तथा गुजरात से पश्चिम बंगाल तक चौड़ाई 1,400 किमी है। इस पठार की औसत ऊँचाई समुद्र तल से 600 मीटर तक है। इसकी उत्तरी सीमा पर अरावली, कैमूर तथा राजमहल पहाड़ियाँ स्थित है। पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट पहाड़ी इसकी सीमा बनाते हैं। यह क्षेत्र विच्छिन्न पहाड़ियों, शिखर मैदानों गभीरकृत, संकरी एवं अधिवर्धित घाटियों, शृंखलाबद्ध पठारों, समप्राय मैदानों एवं अवशिष्ट खण्डों का एक प्राकृतिक भूदृश्य है। पूर्वी एवं पश्चिमी घाट का मिलन जिस स्थान पर होता है, वहां अन्नामलाई पहाड़ियाँ स्थित है। नर्मदा नदी के उत्तर में मालवा पठार स्थित है। यह पठार लावा निर्मित होने के कारण काली मिट्टी का समप्रायः बन गया है, जिसका ढाल विशाल मैदान की ओर है। इस पर बेतवा, पार्वती, नीवज, काली सिन्ध, चम्बल तथा माही नदियाँ बहती है। मालवा पठार की उत्तरी तथा उत्तरी पूर्वी सीमा पर बुन्देलखण्ड तथा बघेलखण्ड के पठार स्थित हैं जबकि कैमूर तथा भारनेर श्रेणियों के पूर्व में बघेलखण्ड का पठार है। इस पठार के उत्तर में सोनपुर पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में रामगढ़ की पहाड़ियाँ स्थित है।
समुद्रतटीय मैदान
दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठारी भाग के दोनों ओर पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट पर्वतमालाओं एवं सागर तट के बीच समुद्रतटीय मैदानों का विस्तार है। यह तटीय मैदान देश के अन्य प्राकृतिक विभाग से स्पष्ट भिन्नता रखता है। स्थित के आधार पर इन्हे पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में विभाजित किया जाता है।
पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान का विस्तार गुजरात में कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक पाया जाता है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी. है। इस मैदान की सर्वाधिक चौड़ाई नर्मदा तथा ताप्ती नदियों के मुहानों के समीप 80 किमी तक मिलती है। इस मैदान का ढाल पश्चिम की ओर अत्यधिक तीव्र हैं, जिस पर तीव्रगामी एवं छोटी नदियाँ प्रवाहित होती है। इस मैदान को पाँच उपखण्डों में विभाजित किया गया है:
- कच्छ प्रायद्वीपीय तटीय मैदान जो कि शुष्क एवं अर्द्धशुष्क रेतीला मैदान है। इसके मध्य मेंगिरनार पहाड़ियाँ स्थित हैं।
- गुजरात का मैदान, जिसका विस्तारकच्छ एवं सौराष्ट्र के पूर्व में हैं। इस पर माही, साबरमती, नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिलती हैं।
- कोंकणका मैदान दमन से गोवा तक 500 किमी लम्बा हैं। इस पर साल, सागौन आदि के वनों की अधिकता हैं।
- कनारातटीय मैदान गोवा सेमंगलोर तक पाया जाता है। इसका निर्माण प्राचीन कायान्तरित शैलों से हुआ है। इस पर बालुआ स्तूपों का जमाव पाया जाता है। यह तट गरम मसालों, सुपारी, केला, आम, नारियल, आदि की कृषि के लिए प्रसिद्ध हैं।
- मालाबार तटीय मैदानकेरल का तटीय मैदान हैं, जो कि मंगलोर से कन्याकुमारी तक 500 किमी की लं. में फैला है। इस पर लैगून (कयाल) नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं। इस मैदान के तटीय भागों में मत्स्ययन किया जाता है।
पूर्वी समुद्र तटीय मेदान पश्चिम बंगाल से लेकर कुमारी अन्तरीप तक मिलता है। इसकी चौड़ाई पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक हैं। इस मैदान पर प्रवाहित होने वाली नदियों- महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि ने विस्तृत डेल्टा का निर्माण किया है। इस पर चिल्कातथा पुलीकट जैसी विस्तृत लैगून झीलें भी पायी जाती हैं। इस मैदान के उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार तथा दक्षिण भाग को कोरामण्डल तट के नाम से जाना जाता है। इसके तीन प्रमुख उप विभाग हैं:
- उत्कलका मैदान जो कि उड़ीसा तट के सहारे लगभग 400 किमी की लम्बाई में फैला है। इस मैदान पर महानदी का डेल्टा, चिल्का झील तथा विशाखापट्नम बन्दरगाह स्थित हैं।
- आन्ध्र का मैदान आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र में स्थित हैं जिस पर गोदावरी एवं कृष्णा नदियों ने अपने डेल्टा का निर्माण किया है। इन दोनों डेल्टाओं के बीचकोलेरू झील स्थित हैं।
- तमिलनाडु के मैदान का विस्तार तमिलनाडु तथापाण्डिचेरी के तटीय क्षेत्र में हैं। पुलीकट झील से कुमारी अन्तरीप तक इसकी लम्बाई 675 किमी है। इसकी औसत चौड़ाई 100 किमी है। पुलीकट एक लैगून झील है जिसके आगे श्रीहरिकोटा द्वीप स्थित है। यह मैदान सबसे लम्बा है।
नदियाँ
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
- हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
- दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
- तटवर्ती नदियाँ
- अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं। हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली सिंधु और गंगा ब्रह्मपुत्र मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।
सिंधु नदी
विश्व की महान, नदियों में एक है, तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्पश्चात् पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागरमें मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज (तिब्बत से निकलती है), व्यास, रावी, चिनाब, और झेलम है।
गंगा
ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ
यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी, और सोन; गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रुप में बहती रहती है।
ब्रह्मपुत्र
ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ
भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है। दक्कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्थान है जबकि महानदी का तीसरा स्थान है। डेक्कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।
कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है।
राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त कुछ मरुस्थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्थल में लुप्त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्छ, स्पेन, सरस्वती, बानस और घग्गर जैसी अन्य नदियाँ हैं।
भारत की प्रमुख नदियों की सूची
क्रम | नदी | लम्बाई (कि.मी.) | उद्गम स्थान | सहायक नदियाँ | प्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य) |
1 | सिन्धु नदी | 2,880 (709) | मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत) | सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित,श्योक | जम्मू और कश्मीर, लेह |
2 | झेलम नदी | 720 | शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर | किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध | जम्मू-कश्मीर, कश्मीर |
3 | चिनाब नदी | 1,180 | बारालाचा दर्रे के निकट | चन्द्रभागा | जम्मू-कश्मीर |
4 | रावी नदी | 725 | रोहतांग दर्रा, कांगड़ा | साहो, सुइल | हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर,पंजाब |
5 | सतलुज नदी | 1440 (1050) | मानसरोवर के निकट राकसताल | व्यास, स्पिती, बस्पा | हिमाचल प्रदेश, पंजाब |
6 | व्यास नदी | 470 | रोहतांग दर्रा | तीर्थन, पार्वती, हुरला | हिमाचल प्रदेश |
7 | गंगा नदी | 2,510 (2071) | गंगोत्री के निकट गोमुख से | यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन,अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी | उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार,पश्चिम बंगाल |
8 | यमुना नदी | 1375 | यमुनोत्री ग्लेशियर | चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन | उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली |
9 | रामगंगा नदी | 690 | नैनीताल के निकट एक हिमनदी से | खोन | उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश |
10 | घाघरा नदी | 1,080 | मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद | शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया | उत्तर प्रदेश, बिहार |
11 | गंडक नदी | 425 | नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट | काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा | बिहार |
12 | कोसी नदी | 730 | नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम) | इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी | सिक्किम, बिहार |
13 | चम्बल नदी | 960 | मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से | काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास | मध्य प्रदेश |
14 | बेतवा नदी | 480 | भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास | मध्य प्रदेश | |
15 | सोन नदी | 770 | अमरकंटक की पहाड़ियों से | रिहन्द, कुनहड़ | मध्य प्रदेश, बिहार |
16 | दामोदर नदी | 600 | छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व | कोनार, जामुनिया, बराकर | झारखण्ड, पश्चिम बंगाल |
17 | ब्रह्मपुत्र नदी | 2,880 | मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो) | घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग | अरुणाचल प्रदेश, असम |
18 | महानदी | 890 | सिहावा के निकट रायपुर | सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी | मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा |
19 | वैतरणी नदी | 333 | क्योंझर पठार | उड़ीसा | |
20 | स्वर्ण रेखा | 480 | छोटा नागपुर पठार | उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल | |
21 | गोदावरी नदी | 1,450 | नासिक की पहाड़ियों से | प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना | महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश |
22 | कृष्णा नदी | 1,290 | महाबलेश्वर के निकट | कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी | महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश |
23 | कावेरी नदी | 760 | केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी | हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती | कर्नाटक, तमिलनाडु |
24 | नर्मदा नदी | 1,312 | अमरकंटक चोटी | तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना | मध्य प्रदेश, गुजरात |
25 | ताप्ती नदी | 724 | मुल्ताई से (बेतूल) | पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई | मध्य प्रदेश, गुजरात |
26 | साबरमती | 716 | जयसमंद झील (उदयपुर) | वाकल, हाथमती | राजस्थान, गुजरात |
27 | लूनी नदी | नाग पहाड़ | सुकड़ी, जनाई, बांडी | राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी | |
28 | बनास नदी | खमनौर पहाड़ियों से | सोड्रा, मौसी, खारी | कर्नाटक, तमिलनाडु | |
29 | माही नदी | मेहद झील से | सोम, जोखम, अनास, सोरन | मध्य प्रदेश, गुजरात | |
30 | हुगली नदी | नवद्वीप के निकट | जलांगी | ||
31 | उत्तरी पेन्नार | 570 | नंदी दुर्ग पहाड़ी | पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू | |
32 | तुंगभद्रा नदी | पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी | कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा | ||
33 | मयूसा नदी | आसोनोरा के निकट | मेदेई | ||
34 | साबरी नदी | 418 | सुईकरम पहाड़ी | सिलेरु | |
35 | इन्द्रावती नदी | 531 | कालाहाण्डी, उड़ीसा | नारंगी, कोटरी | |
36 | क्षिप्रा नदी | काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर | चम्बल नदी | ||
37 | शारदा नदी | 602 | मिलाम हिमनद, हिमालय,कुमायूँ | घाघरा नदी | |
38 | तवा नदी | महादेव पर्वत, पंचमढ़ी | नर्मदा नदी | ||
39 | हसदो नदी | सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ | महानदी | ||
40 | काली सिंध नदी | 416 | बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत | यमुना नदी | |
41 | सिन्ध नदी | सिरोज, गुना ज़िला | चम्बल नदी | ||
42 | केन नदी | विंध्याचल श्रेणी | यमुना नदी | ||
43 | पार्वती नदी | विंध्याचल, मध्य प्रदेश | चम्बल नदी | ||
44 | घग्घर नदी | कालका, हिमाचल प्रदेश | |||
45 | बाणगंगा नदी | 494 | बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर | यमुना नदी | |
46 | सोम नदी | बीछा मेंड़ा, उदयपुर | जोखम, गोमती, सारनी | ||
47 | आयड़ या बेडच नदी | 190 | गोमुण्डा पहाड़ी, उदयपुर | बनास नदी | |
48 | दक्षिण पिनाकिन | 400 | चेन्ना केशव पहाड़ी, कर्नाटक | ||
49 | दक्षिणी टोंस | 265 | तमसा कुंड, कैमूर पहाड़ी | ||
50 | दामन गंगा नदी | पश्चिम घाट | |||
51 | गिरना नदी | पश्चिम घाट, नासिक |
भारत के राज्यों का भूगोल
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश का अधिकतर भाग हिमालय से ढका है, लेकिन लोहित, चांगलांग और तिरप पतकाई पहाडि़यों में स्थित हैं। काँग्तो, न्येगी कांगसांग, मुख्य गोरीचन चोटी और पूर्वी गोरीचन चोटी इस राज्य में हिमालय की सबसे ऊंची चोटियाँ हैं।
तवांग का ‘बुमला दर्रा‘ सन् 2006 में 44 वर्षों में पहली बार व्यापार के लिए खोला गया था और व्यापारियों को एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी। हिमालय पर्वतमाला का पूर्वी भाग अरुणाचल प्रदेश को चीन से अलग करता है। यह पर्वतमाला आगे नागालैंड की ओर मुड़ जाती है और भारत और बर्मा (वर्तमान म्यांमार) के मध्य चांगलांग और तिरप ज़िले में एक प्राकृतिक सीमा का निर्माण करती है और एक सीमा का कार्य करती है। अरुणाचल प्रदेश की सीमायें दक्षिण में असम, दक्षिण पूर्व में नागालैंड, पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत से मिलती हैं। प्रसिद्ध ‘लेडो बर्मा रोड‘ का एक भाग इस राज्य से होकर जाता है, इस सड़क ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीन के लिये ‘जीवन रेखा‘ की भूमिका निभाई थी।
अरुणाचल प्रदेश का मौसम बदलता रहता है। हिमालय के ऊंचाई वाले भाग स्थित तिब्बत के निकटवर्ती भागों में मौसम टुन्ड्रा प्रदेश की भाँति होता है। मध्य हिमालयी भागों में मौसम समशीतोष्ण होता है। यहाँ सेब, संतरा, आदि फलदार वृक्ष होते हैं। हिमालय के क्षेत्र में नम उष्णकटिबंधीय मौसम रहता है जहां अधिक तेज़ गरमी और हल्की सर्दियाँ होती है। अरुणाचल प्रदेश की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है। यहाँ आर्किड के फूल भी पाए जाते हैं। हरी भरी घाटियाँ और यहाँ के लोक-गीत संगीत,हस्तशिल्प सभी कुछ मन लुभावना है। अरुणाचल प्रदेश में 160 से 80 इंच (2000 से 4000 मिमी) तक वार्षिक वर्षा होती है। अधिकतर वर्षा मई और सितंबर माह में होती है। यहाँ के पहाड़ और उनकी ढलानें समशीतोष्ण और उपविषुवतीय जंगलों से भरी हैं, इसी कारण से यहाँ बौना रॉडॉडेन्ड्रोन, ओक, चीड़, मैप्ले, फर और जुनिपर के वृक्ष मिलते हैं साथ ही साल और सागौन प्रजाति के वृक्ष भी मिलते हैं।
असम पूर्वोत्तर दिशा में भारत का प्रहरी है और पूर्वोत्तर राज्यों का प्रवेशद्वार भी है। यह भूटान और बांग्लादेश से लगी हुई भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पास है। असम की उत्तर दिशा मेंभूटान और अरुणाचल प्रदेश, पूर्व दिशा में मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश और दक्षिणी दिशा में मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा राज्य हैं।
भू-आकृति
मैदानी इलाक़ों एवं नदी घाटियों वाले असम को तीन प्रमुख भौतिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है- उत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी, दक्षिण में बरक नदी घाटी एवं कार्बी तथा आलंग ज़िलों के पर्वतीय क्षेत्र और इन दोनों घाटीयों के मध्य स्थित उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ।
ब्रह्मपुत्र नदी घाटी असम का प्रमुख भौतिक क्षेत्र है। यह नदी असम के पूर्वोत्तर सिरे पर सादिया के पास प्रवेश करती है, फिर पश्चिम में पूरे असम में लगभग 724 किमी. लंबे मार्ग में प्रवाहित होकर दक्षिण की ओर मुड़कर बांग्लादेश के मैदानी इलाक़ों में चली जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी, छोटी एकल पहाड़ियों और मैदानी इलाक़ों में अचानक उठते शिखरों, जिनकी चौड़ाई 80 किमी. से ज़्यादा नहीं है, से भरी हुई है। पश्चिम दिशा को छोड़कर बाक़ी सभी दिशाओं में यह पर्वतों से घिरी हुई है। पड़ोस की पहाड़ियों से निकली कई जलधाराओं एवं उपनदियों का जल इसमें समाहित होता है।
बरक नदी घाटी दक्षिण-पूर्व दिशा में विस्तृत निम्न भूमि के क्षेत्र की संरचना करती है, जो कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है एवं इससे अपेक्षाकृत सघन बसी जनसंख्या को मदद मिलती है, हालांकि इस घाटी का एक छोटा सा ही हिस्सा राज्य के सीमाक्षेत्र में है।
भू-विज्ञान
भू- विज्ञान के अनुसार, ब्रह्मपुत्र एवं बरक नदी घाटी में जमा (अवसादित) मिट्टी जलोढ़ है, जो 16 लाख साल पुरानी है। इनमें विभिन्न प्रकार के तृतीयक निक्षेप (16-664 लाख वर्ष पुराने) हैं। इन अवसादों में बलुआ पत्थर, रेत के कण, रेतीली मिट्टी, मिश्रित मिट्टी, कोयले के टुकड़े, स्लेटी पत्थर एवं चूना-पत्थर प्रमुख हैं। मेघालय पठार के हिस्से कार्बी आलंग एवं उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ संभवत: गोंडवाना लैंड[1] का विस्तरण है। कपिली नदी की खाड़ियों द्वारा अलग कर दी गई उच्चभूमि की स्थलाकृति विषम है। इसमें मिकिर पहाड़ियों का एक उत्तरी ढाल आता है, जिसकी औसत ऊँचाई 475 मीटर है, जो कार्बी आलंग ज़िले के मध्य भाग में पहुँचकर लगभग 1,006 मीटर हो जाती है। उत्तरी पर्वतश्रेणियाँ दक्षिण-पश्चिम के डबाका (दिसपुर के पूर्व में) से शुरू होकर पूवोत्तर में बोकारवाट तक फैली हैं। इनकी औसत ऊँचाई 610 मीटर है। उत्तरी पर्वतश्रेणी के मुख्य शिखरों में बसुनधारी पहाड़ियाँ (774 मीटर), रायसेंग (738 मीटर) मेहेकांगथू (689 मीटर) एवं कुद पहाड़ियों (626 मीटर) शामिल हैं। दक्षिण की रेंगमा पहाड़ियों की औसत ऊँचाई लगभग 914 मीटर है। इन पहाड़ियों के मुख्य शिखर चेंगेहिशोन (1,359 मीटर) एवं खुनबामन पहाड़ियाँ (1,131 मीटर) हैं।
भौगोलिक आपदाएँ
असम में भूकंप का आना सामान्य बात है। 1897 में शिलांग पठार में अधिकेंद्रित, 1930 में धुबुरी में अधिकेंद्रित एवं 1950 के अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास तिब्बत में स्थित झिहाऊ (रीमा) में अधिकेंद्रित भूकंप आधुनिक समय के सबसे तीव्र भूकंप रहे। 1950 के भूकंप को तो इतिहास का सबसे विनाशकारी भूकंप माना जाता है। इस भूकंप के भीषण भूस्खलनों ने पहाड़ी जलधाराओं का मार्ग अवरुद्ध कर दिया था। बाँधों के टूट जाने पर भूकंप की तुलना में बाढ़ की वजह से जनजीवन और संपत्ति की कहीं अधिक हानि हुई।
आंध्र प्रदेश
मुख्य लेख : आंध्र प्रदेश का भूगोल
आंध्र प्रदेश राज्य में तीन प्रमुख भौतिक-भौगोलिक क्षेत्र हैं:-
- पूर्व में तटीय मैदान, जोबंगाल की खाड़ी से लेकर पर्वतश्रेणियों तक फैला है;
- पर्वतश्रेणियाँ अर्थात् पूर्वी घाट, जो तटीय मैदानों का पश्चिमी पार्श्व बनाते हैं;
- घाट के पश्चिम से पूर्व में पठार।
ओडिशा
मुख्य लेख : ओडिशा का भूगोल
उड़ीसा राज्य 17.780 और और 22.730 अक्षांश और 81.37पूर्व और 81.53 पूर्व देशांतर के बीच पड़ता है। भौगोलिक रूप से यह राज्य उत्तर-पूर्व में पश्चिम बंगाल, उत्तर में झारखंड, पश्चिम में छत्तीसगढ़ और दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है।
उत्तर प्रदेश
मुख्य लेख : उत्तर प्रदेश का भूगोल
उत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-
- भू-आकृति– उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषमविंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है।
उत्तराखण्ड
मुख्य लेख : उत्तराखण्ड का भूगोल
उत्तराखण्ड राज्य का क्षेत्रफल 53,484 वर्ग किमी. और जनसंख्या 8,479,562 (2001 की जनगणना के अनुसार) है। उत्तराखण्ड भारत के उत्तर – मध्य भाग में स्थित है। यह पूर्वोत्तर मेंतिब्बत, पश्चिमोत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण – पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण – पूर्व में नेपाल से घिरा है। उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 28° 43’ उ. से 31°27’ उ. और रेखांश 77°34’ पू. से 81°02’ पू के बीच में 53,483 वर्ग किमी है, जिसमें से 43,035 कि.मी. पर्वतीय है और 7,448 कि.मी. मैदानी है, तथा 34,651 कि.मी. भूभाग वनाच्छादित है। राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय शृंखला का भाग है, जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढ़्का हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढ़की हुई हैं जिनका पहले अंग्रेज़लकड़ी व्यापारियों और स्वतन्त्रता के बाद वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया।
कर्नाटक
मुख्य लेख : कर्नाटक का भूगोल
भौतिक रूप से कर्नाटक को चार भिन्न क्षेत्रों में बांटा गया है- समुद्रतटीय मैदान, पर्वत श्रेणियाँ (पश्चिम घाट), पूर्व में स्थित कर्नाटक का पठार और पश्चिमोत्तर में कपास उत्पाक काली मिट्टी का क्षेत्र। समुद्रतटीय मैदान मालाबार तट का विस्तार हैं और यहाँ जून से सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से भारी वर्षा होती है। तट पर स्थित रेत के टीले भूमि की ओर बढ़ते हुए छोटे जलोढ़ मैदानों में बदल जाते हैं, जिनमें नारियल के वृक्षों से घिरे अनूप(लैगून) हैं। समुद्र के अलावा अन्य किसी भी मार्ग से तट पर पहुँचना मुश्किल है। पूर्व में पश्चिमी घाट की ढलानों के रूप भूमि तेज़ी से उठती है, जहाँ समुद्र तल से औसत ऊँचाई 760- 915 मीटर है।
केरल
मुख्य लेख : केरल का भूगोल
- केरलके पूर्व में ऊंचे पश्चिमी घाट और पश्चिम में अरब सागर के मध्य में स्थित इस प्रदेश की चौड़ाई 35 किमी से 120 किमी तक है।
- भौगोलिक दृष्टि से केरल पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों, मध्यवर्ती मैदानों तथा समुद्र का तटवर्ती क्षेत्र हैं।
- केरल नदियों और तालाबों के सम्बंध में बहुत ही समृद्ध है।
गुजरात
मुख्य लेख : गुजरात का भूगोल
गुजरात को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है जैसे-
- सौराष्ट्र प्रायद्वीप-जो मूलतः एक पहाड़ी क्षेत्र है, बीच-बीच में मध्यम ऊँचाई के पर्वत हैं।
- कच्छ-जो पूर्वोत्तर में उजाड़ और चट्टानी है। विख्यात कच्छ का रन इसी क्षेत्र में है।
- गुजरात का मैदान- जोकच्छ के रन और अरावली की पहाड़ियों से लेकर दमन गंगा तक फैली है।
गुजरात की सबसे ऊँची चोटी गिरिनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ की चोटी है, जो 1117 मीटर ऊँची है। गुजरात की जलवायु ऊष्ण प्रदेशीय और मानसूनी है। वर्षा की कमी के कारण इस प्रदेश में रेतीली और बलुई मिट्टी पायी जाती है। प्रदेश में पूर्व की ओर उत्तरी गुजरात में वर्षा की मात्र 50 सेमी तक होती है। इसके दक्षिण की ओर मध्य गुजरात में मिट्टी कुछ अधिक उपजाऊ है तथा जलवायु भी अपेक्षयता आर्द्र है। वर्षा 75 सेमी तक होती है। नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, सरस्वती, माही, भादर, बनास, और विश्वामित्र इस प्रदेश की सुपरिचित नदियाँ हैं। कर्क रेखा इस राज्य की उत्तरी सीमा से होकर गुजरती है, अतः यहाँ गर्मियों में खूब गर्मी तथा सर्दियों में खूब सर्दी पड़ती है। शहरीकरण की प्रक्रिया ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कुछ स्वरूप धारण किए हैं। राज्य का सर्वाधिक शहरीकृत क्षेत्र अहमदाबाद-वडोदरा औद्योगिक पट्टी है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 के किनारे उत्तर में ऊंझा से दक्षिण में वापी के औद्योगिक मैदान में एक वृहदनगरीय क्षेत्र[6] उभर रहा है। सौराष्ट्र कृषि क्षेत्र में क्रमिक बसाव प्रणाली को देखा जा सकता है, जबकि उत्तर और पूर्व के बाह्य क्षेत्रों में बिखरी हुई छोटी-छोटी बस्तियाँ हैं, जो शुष्क, पर्वतीय या वनाच्छादित क्षेत्र हैं। आदिवासी जनसंख्या इन्हीं सीमांत अनुत्पादक क्षेत्रों में केंद्रित है।
गोवा
मुख्य लेख : गोवा का भूगोल
105 किलोमीटर समुद्री तट वाले गोवा में रेतीले तट, मुहाने व अंतरीप हैं। इसके भीतरी हिस्से में निचले पठार और लगभग 1,220 मीटर ऊँचे पश्चिमी घाटों (सह्यद्रि) का एक हिस्सा है। गोवा की दो प्रमुख नदियाँ, मांडोवी व जुआरी, के मुहाने में गोवा का द्वीप (इल्हास) स्थित है। इस त्रिकोणीय द्वीप का शीर्ष अंतरीप एक चट्टानी मुहाना है, जिस पर दो लंगरगाह हैं। यहाँ पर तीन शहर मर्मगाव या मार्मुगाव (वास्को द गामा सहित) मडगाँव और पणजी (नवगोवा) हैं।
छत्तीसगढ़
मुख्य लेख : छत्तीसगढ़ का भूगोल
- छत्तीसगढ़राज्य मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्व में 17°46′ उत्तरी अक्षांश से 24°5′ उत्तरी अक्षांश तथा 80°15′ पूर्वी देशांतर से 84°15′ पूर्वी देशांतर रेखाओं के मध्य स्थित है।
- छत्तीसगढ़ का कुल भौगोलिक क्षेत्रअफल 1,35,194 वर्ग किमी. है। इसकी उत्तरी-दक्षिण लम्बाई 360 किमी. तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ाई 140 किमी. है।
- छत्तीसगढ़ के उत्तर मेंउत्तर प्रदेश, उत्तरी-पूर्वी सीमा में झारखण्ड, दक्षिण-पूर्व में ओडिशा राज्य स्थित है। दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण-पश्चिम में महाराष्ट्र तथा उत्तरी-पश्चिम भाग में मध्य प्रदेश स्थित है।
जम्मू और कश्मीर
मुख्य लेख : जम्मू और कश्मीर का भूगोल
जम्मू और कश्मीर पूर्वात्तर में सिंक्यांग का स्वायत्त क्षेत्र व तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (दोनों चीन के भाग) से, दक्षिण में हिमाचल प्रदेश व पंजाब राज्यों से, पश्चिम में पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर मेंपाकिस्तान अधिकृत भूभाग से घिरा है।
स्थिति: जम्मू और कश्मीर राज्य 32-15 और 37-05 उत्तरी अक्षांश और 72-35 तथा 83-20 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। भौगोलिक रूप से इस राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
- पहाड़ी और अर्द्ध-पहाड़ी मैदान जो कंडी पट्टी के नाम से प्रचलित है;
- पर्वतीय क्षेत्र जिसमेंशिवालिक पहाड़ियाँ शामिल हैं;
- कश्मीर घाटीके पहाड़ और पीर पांचाल पर्वतमाला तथा
- तिब्बत से लगालद्दाख और कारगिल क्षेत्र।
झारखण्ड
मुख्य लेख : झारखण्ड का भूगोल
- झारखण्ड21°58’10” उत्तरी अक्षांश से 25°19’15” उत्तरी अक्षांश तथा 83°20’50” पूर्वी देशांतर 88°4’40” पूर्वी देशांतर के मध्य विस्तृत है।
- झारखण्ड का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी. जोभारत के कुल क्षेत्रफल का 4 प्रतिशत है।
- झारखण्ड के पूर्व मेंपश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार तथा दक्षिण में उड़ीसा से घिरा हुआ है।
तमिलनाडु
मुख्य लेख : तमिलनाडु का भूगोल
तमिलनाडु राज्य प्राकृतिक रूप से पूर्वी तट पर समतल प्रदेश तथा उत्तर और पश्चिम में पहाड़ी क्षेत्रों के बीच विभाजित है। पूर्वी मैदान का सबसे चौड़ा हिस्सा उपजाऊ कावेरी के डेल्टा पर है और आगे दक्षिण में रामनाथपुरम और मदुरै के शुष्क मैदान हैं। राज्य के समूचे पश्चिमी सीमांत पर पश्चिमी घाट की ऊँची शृंखला फैली हुई है। पूर्वी घाट की निचली पहाड़ियाँ और सीमांत क्षेत्र, जो स्थानीय तौर पर जावडी, कालरायण और शेवरॉय कहलाते हैं, प्रदेश के मध्य भाग की ओर फैले हैं।
त्रिपुरा
मुख्य लेख : त्रिपुरा का भूगोल
मध्य एवं उत्तरी त्रिपुरा एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसे पूर्व से पश्चिम की ओर चार प्रमुख घाटियाँ, धर्मनगर, कैलाशहर, कमालपुर और खोवाई, काटती हैं। ये घाटियाँ उत्तर की ओर बहने वाली नदियों (जूरी, मनु व देव, ढलाई और खोवाई) द्वारा निर्मित हैं। पश्चिम व दक्षिण की निचली घाटियाँ खुली व दलदली हैं, हालांकि दक्षिण में भूभाग बहुत अधिक कटा हुआ और घने जंगलों से ढका है। उत्तर से दक्षिण की ओर उन्मुख श्रेणियाँ घाटियों को अलग करती हैं।
दिल्ली
मुख्य लेख : दिल्ली का भूगोल
दिल्ली एक जलसंभर पर स्थित है। जो गंगा तथा सिंधु नदी प्रणालियों को विभाजित करता है। दिल्ली की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थालाकृति विशेषता पर्वत स्कंध (रिज) है, जो राजस्थान प्रांत की प्राचीन अरावली पर्वत श्रेणियों का चरम बिंदु है। अरावली संभवत: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत माला है, लेकिन अब यह पूरी तरह वृक्ष विहीन हो चुकी है। पश्चिमोत्तर पश्चिम तथा दक्षिण में फैला और तिकोने परकोट की दो भुजाओं जैसा लगने वाला यह स्कंध क्षेत्र 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। कछारी मिट्टी के मैदान को आकृति की विविधता देता है तथा दिल्ली को कुछ उत्कृष्ट जीव व वनस्पतियाँ उपलब्ध कराता है। यमुना नदी त्रिभुजाकार परकोटे का तीसरा किनारा बताती है। इसी त्रिकोण के भीतर दिल्ली के प्रसिद्ध सात शहरों की उत्पत्ति ई.पू. 1000 से 17 वीं शताब्दी के बीच हुई।
नागालैंड
मुख्य लेख : नागालैंड का भूगोल
- नागालैंडका लगभग समूचा हिस्सा पर्वतीय है।
- उत्तर में नागा पहाड़ियाँ ब्रह्मपुत्र घाटी से अचानक लगभग 610 मीटर की ऊंचाई तक उठती हैं और उसके बाद दक्षिण-पूर्व दिशा में इनकी ऊंचाई 1,800 मीटर तक हो जाती है, म्यांमार सीमा के पास ये पहाड़ियां पटकई शृंखला से मिल जाती हैं और यहाँ इनकी सबसे ऊंची चोटी माउंट सारामती है, जिसकी ऊंचाई 3,826 मीटर है।
पंजाब
मुख्य लेख : पंजाब का भूगोल
भू-आकृति: पंजाब का अधिकांश हिस्सा समतल मैदानी है, जो पूर्वोत्तर में समुद्र तल से लगभग 275 मीटर से दक्षिण-पश्चिम में लगभग 168 मीटर की ऊँचाई की अनुवर्ती ढलान वाला है। भौतिक रूप से इस प्रदेश को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है। पूर्वोत्तर में 274-914 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शिवालिक पहाड़ियाँ राज्य का बहुत ही छोटा हिस्सा हैं। दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियाँ संकरे और लहरदार तराई क्षेत्र के रूप में फैली हुई हैं, जिनसे होकर कई मौसमी धाराएँ बहती हैं।
पश्चिम बंगाल
मुख्य लेख : पश्चिम बंगाल का भूगोल
पश्चिम बंगाल राज्य के पूर्व में बांग्लादेश, पश्चिम में नेपाल, उत्तर-पूर्व में भूटान, उत्तर में सिक्किम, पश्चिम में बिहार, झारखंड, दक्षिण-पश्चिम में उड़ीसा तथा दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। पश्चिम बंगाल राज्य में भारत के हुगली नदी पर कोलकाता से 22 मील उत्तर चौबीस परगना ज़िले में नईहाटी नगर स्थित है।
बिहार
मुख्य लेख : बिहार का भूगोल
- भू-आकृती:प्राकृतिक रूप से यह राज्य गंगा नदी द्वारा दो भागों में विभाजित है, उत्तर बिहार मैदान और दक्षिण बिहार मैदान। सुदूर पश्चिमोत्तर में हिमालय की तराई को छोड़कर गंगा का उत्तरी मैदान समुद्र तल से 75 मीटर से भी कम की ऊँचाई पर जलोढ़ समतली क्षेत्र का निर्माण करता है और यहाँ बाढ़ आने की संभावना हमेशा बनी रहती है। घाघरा, गंडक,बागमती, कोसी, महानंदा और अन्य नदीयाँ नेपाल में हिमालय से नीचे उतरती हैं और अलग-अलग जलमार्गों से होती हुई गंगा में मिलती हैं।
मणिपुर
मुख्य लेख : मणिपुर का भूगोल
- भारतके पूर्वी सिरे पर मणिपुर राज्य स्थित है।
- इसके पूर्व में म्यांमार (बर्मा) और उत्तर मेंनागालैंड राज्य है, पश्चिम में असम राज्य और दक्षिण में मिज़ोरम राज्य है।
- मणिपुर का क्षेत्रफल 22,327 वर्ग किलोमीटर है। भौगोलिक रूप से मणिपुर के दो भाग हैं, पहाडियां और घाटियाँ।
- घाटी मध्य में है और उसके चारों तरफ पहाडियां हैं।
मध्य प्रदेश
मुख्य लेख : मध्य प्रदेश का भूगोल
मध्य प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा भारतीय राज्य है। भौगोलिक दृष्टि से यह देश में केन्द्रीय स्थान रखता है। इसकी राजधानी भोपाल है । मध्य का अर्थ बीच में है, मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थितिभारतवर्ष के मध्य अर्थात् बीच में होने के कारण इस प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश दिया गया, जो कभी ‘मध्य भारत’ के नाम से जाना जाता था। मध्य प्रदेश हृदय की तरह देश के ठीक बीचोंबीच में स्थित है।
महाराष्ट्र
मुख्य लेख : महाराष्ट्र का भूगोल
महाराष्ट्र में कई प्रकार की आकर्षक भू- आकृतियां हैं। नर्मदा नदी, जो विभ्रंश घाटी से होकर बहती हुई अरब सागर में गिरती है, राज्य की उत्तरी सीमा के एक हिस्से का निर्माण करती है। अरब सागर में ही मिलने वाली ताप्ती नदी की विभ्रंश घाटी इसकी उत्तरी सीमा के दूसरे हिस्से को चिह्नित करती है। ये दो नदी घाटियाँ सतपुड़ा शृंखला नामक उत्खंड से विभक्त होती हैं। ताप्ती घाटी के दक्षिण में अरब सागर के किनारे कोंकण का तटीय क्षेत्र है, जिसके पूर्व में पश्चिमी घाट या सह्याद्रि पहाड़ियों के नाम से विख्यात कगार स्थित है।
मिज़ोरम
मुख्य लेख : मिज़ोरम का भूगोल
भूगर्भशास्त्रीय दृष्टि से मिज़ो पहाड़ियाँ अराकान आर्क का हिस्सा है जो सुसंगठित समानांतर पर्वतस्कंधों की उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थित शृंखला है, जिसका निर्माण तृतीयक बलुआ पत्थर, चूना-पत्थर और स्लेट-पत्थर[7] से हुआ है। संकरी नदी घाटियों से विभक्त पर्वतस्कंधों की ऊँचाई 2,157 मीटर है। दक्षिण में कलादान और इसकी सहायक नदियाँ दक्षिण दिशा में बहती हुईम्यांमार में प्रवेश करती हैं, जबकि धालेश्वरी (त्लावंग) और सोनाई (तुइरेल) नदियाँ उत्तर दिशा में असम की और बहती हैं।
मेघालय
मुख्य लेख : मेघालय का भूगोल
मेघालय दक्कन के पठार से राजमहल दर्रे द्वारा अलग किया हुआ एक उच्च भूखंड है। यहाँ की चट्टानें और भू-वैज्ञानिक संरचना बिहार और बंगाल के छोटा नागपुर क्षेत्र जैसी है। चट्टानें पूर्व कैंब्रियन काल की आद्य महाकल्पी शैल और ग्रेनाइट, निम्न-पुराजीवी शिलांग समूह, अपर गोंडवाना, सिलहट ट्रैप और तीसरे युग के कठोर अवसादी जमावों से बनी हुई है। इसके शिखरों की ऊँचाई 1,220 से 1,830 मीटर के बीच है।
राजस्थान
मुख्य लेख : राजस्थान का भूगोल
भूमि: अरावली पहाड़ियाँ राज्य के दक्षिण-पश्चिम में 1,722 मीटर ऊँचे गुरु शिखर[8] से पूर्वोत्तर में खेतड़ी तक एक रेखा बनाती हुई गुज़रती हैं। राज्य का लगभग 3/5 भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में व शेष 2/5 भाग दक्षिण-पूर्व में स्थित है। राजस्थान के ये दो प्राकृतिक विभाजन हैं। बेहद कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूभाग रेतीला और अनुत्पादक है। इस क्षेत्र में विशाल भारतीय रेगिस्तान (थार) नज़र आता है। सुदूर पश्चिम और पश्चिमोत्तर के रेगिस्तानी क्षेत्रों से पूर्व की ओर बढ़ने पर अपेक्षाकृत उत्पादक व निवास योग्य भूमि है।
सिक्किम
मुख्य लेख : सिक्किम का भूगोल
- सिक्किमराज्य का कुल क्षेत्रफल 7,096 वर्ग किलो मीटर है।
- इसका भू भाग उत्तर से दक्षिण तक 112 किलो मीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक 64 किलोमीटर में फैला हुआ है।
- यह उत्तर-पूर्व हिमाचल में 27 डिग्री 00’46” से 28 डिग्री 07’48” उत्तरी अक्षांश और 88 डिग्री 00’58” से 88 डिग्री 55’25” पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है।
- विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और ऊंची चोटी ‘कंचनजंगा’, जिसे सिक्किम की रक्षा देवी माना जाता है, अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरती है।
हरियाणा
मुख्य लेख : हरियाणा का भूगोल
हरियाणा में दो बड़े भू-क्षेत्र है, राज्य का एक बड़ा हिस्सा समतल जलोढ़ मैदानों से युक्त है और पूर्वोत्तर में तीखे ढ़ाल वाली शिवालिक पहाड़ियाँ तथा संकरा पहाड़ी क्षेत्र है। समुद्र की सतह 210 मीटर से 270 मीटर ऊंचे मैदानी इलाकों से पानी बहकर एकमात्र बारहमासी नदी यमुना में आता है, यह राज्य की पूर्वी सीमा से होकर बहती है। शिवालिक पहाड़ियों से निकली अनेक मौसमी नदियां मैदानी भागों से गुज़रती है। इनमें सबसे प्रमुख घग्घर (राज्य की उत्तरी सीमा के निकट) नदी है।
हिमाचल प्रदेश
इस क्षेत्र की 27,018 वर्ग कि॰मी॰ में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। उस समय हिमाचल प्रदेश में चार जिला महासू, सिरमौर, चंबा, मंडी शामिल किए गए थे। प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 27018 वर्ग किलोमीटर व जनसंया लगभग 9 लाख 35 हजार के करीब थी।
बिलासपुर जिला का विलय
बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में प्रदेश से अलग रखा गया था। उन दिनों इस क्षेत्र में भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चलाने के कारण इसे प्रदेश में अलग रखा गया। एक जुलाई, 1954 ई. को कहलूर रियासत को प्रदेश में शामिल करके इसे बिलासपुर का नाम दिया गया। उस समय बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गईं। यह प्रदेश का पांचवां जिला बना। 1954 में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी.हो गया।
किन्नौर जिला की स्थापना
एक मई, 1960 को छठे जिला के रूप में किन्नौर का निर्माण किया गया। इस जिला में महासू जिला की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील को 14 गांव शामिल गए गए। इसकी तीन तहसीलें कल्पा, निचार और पूह बनाई गईं।
पंजाब का पुनर्गठन
वर्ष 1966 में पंजाब का पुनर्गठन किया गया तथा पंजाब व हरियाणा दो राज्य बना दिए गए। भाषा तथा तिहाड़ी क्षेत्र के पंजाब से लेकर हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिए गए। संजौली, भराड़ी, कुसुमपटी आदि क्षेत्र जो पहले पंजाब में थे तथा नालागढ़ आदि जो पंजाब में थे, उन्हें पुनः हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिया गया। सन 1966 में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि॰मी॰ हो गया।
देवभूिम भी
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है और यह उत्तर में जम्मू कश्मीर से, पश्चिम में पंजाब से, दक्षिण में उत्तर प्रदेश से और पूर्व में उत्तराखंड से घिरा है। हिमाचल शब्द का अर्थ ‘बर्फ का घर’ होता है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला है और राज्य का कुल क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किमी. है। यह राज्य प्राकृतिक सुंदरता का खजाना है और विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। राज्य का ज्यादातर हिस्सा उंची पर्वत श्रृंखलाओं, गहरी घाटियों, सुंदर झरनों और हरियाली से भरा है। यहां का मौसम जगह के हिसाब से बदलता रहता है। कुछ जगहों पर भारी बरसात होती है और कुछ जगहों पर बिलकुल वर्षा नहीं होती। उंचाई पर स्थित होने के कारण इस राज्य में बर्फबारी आम बात है। राज्य में 12 जिले हैं जो प्रशासनिक सुविधा के लिए मंडलों, गांवों और कस्बों में बंटे हंै। हिमाचल प्रदेश, देश का दूसरा सबसे कम भ्रष्ट राज्य है। सेब के भारी उत्पादन के कारण हिमाचल प्रदेश को ‘सेब का राज्य’ भी कहा जाता है।
अर्थव्यवस्था
हिमाचल प्रदेश उन राज्यों में से एक है जिसने खुद को सबसे पिछड़े राज्य से सबसे उन्नत राज्य में तब्दील किया है। राज्य की 50 प्रतिशत अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। कृषि यहां के लोगों की आय का प्राथमिक स्रोत है। राज्य की महत्वपूर्ण फसलों में चावल, जौ, मक्का और गेंहू शामिल है। हिमालय की गोद में बसा होने के कारण हिमाचल की भूमि उपजाउ है और फलों की खेती के लिए अनुकूल है। सेब की खेती से राज्य को हर साल 300 करोड़ रुपये की आय होती है। यहां खेती किये जाने वाले अन्य फलों में अंजीर, जैतून, हाॅप, नट्स, मशरुम, केसर और शारदा खरबूज हैं। सहायक बागवानी के तौर पर यहां शहद और फूल भी पैदा होता है। स्थानीय निवासियों के लिए पर्यटन आय का अच्छा स्रोत है और राज्य की अर्थव्यवस्था में सहायक है। बिजली की प्रचुरता के कारण यहां कई लघु उद्योगों की स्थापना हुई है। यहां के प्रदूषण रहित वातावरण के कारण राज्य में कई इलेक्ट्राॅनिक परिसर भी स्थापित हुए हंै। इसकी वजह से राज्य का आर्थिक विकास तेजी से हुआ है।
1950 में प्रदेश का पुनर्गठन
1950 में प्रदेश के पुनर्गठन के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उपतहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उपतहसील में मिला गया। उत्तर प्रदेश के दो गांव संगोस और भांदर जुब्बल तहसील में शामिल कर दिए गए। पंजाब के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल गए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी (पंजाब) के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया। वर्ष 1952 में प्रदेश में भारत के प्रथम आम चुनावों के साथ हिमाचल में भी चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी। 24 मार्च 1952 को प्रदेश की बागडोर बतौर मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार ने संभाली थी।
1972 ई. में िफर पुनर्गठन
हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी 1971 को मिला। 25 जनवरी 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला आकर इतिहासिक रिज मैदान पर भारी बर्फबारी के बीच हिमाचल वासियों के समक्ष हिमाचल प्रदेश का 18 वें राज्य के रूप में उद्घाटन किया। 1 नवंबर 1972 को कांगड़ा ज़िले के तीन ज़िले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बनाए गए। महासू ज़िला के क्षेत्रों में से सोलन ज़िला बनाया गया।
इतिहास
हिमाचल प्रदेश का इतिहास बहुत समृद्ध है क्योंकि सभ्यता की शुरुआत से ही यहां विभिन्न कालों में कई वंश रहे हैं। सबसे पहले सिंधु घाटी सभ्यता के लोग यहां आकर रहे। दूसरी या तीसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व वह लोग गंगा के मैदानों से यहां शांतिपूर्ण जीवन की खोज में आए थे। जल्द ही मंगोलियों ने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और फिर आर्य आए। भारतीय महाकाव्य के अनुसार, हिमाचल प्रदेश कई छोटे जनपदों और गणराज्यों का समूह था जिसके हर राज्य की एक सांस्कृतिक इकाई थी। उसके बाद मुगल आए जिसके राजा महमूद गजनवी, सिकंदर आदि थे। इन लोगों ने इस क्षेत्र को जीता और यहां अपना वर्चस्व स्थापित किया। जब उनके शासन का पतन होने लगा तब गोरखाओं ने इस भूमि पर कब्जा कर लिया। जल्दी ही एंग्लो-गोरखा युद्ध के दौरान उन्होंने यह राज्य अंग्रेजों के हाथों खो दिया। अंग्रेज इस राज्य की खूबसूरती के कायल हो गए। उन्होंने इस जगह पर सन् 1854 से 1914 तक राज किया। आजादी के बाद सन् 1948 में 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया। जब पंजाब का भौगोलिक तौर पर पुनर्गठन हुआ तो कुछ भाग इसमें चला गया। सन् 1971 में हिमाचल प्रदेश भारतीय संघ का 18वां राज्य बनकर उभरा।
राज्य सरकार और मुख्यमंत्री
डा. यशवंत सिंह परमार वर्ष 1976 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद ठाकुर राम लाल मुख्यमंत्री बने और प्रदेश बागडोर संभाली। वर्ष 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी चुनाव जीती और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1980 में ठाकुर राम लाल फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए। 8 अप्रैल 1983 को उनके स्थान पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को बनाया गया। 1985 के चुनाव में वीरभद्र सिंह नेतृत्व में कांग्रेस (ई) पार्टी को भारी बहुमत मिला। और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। 1990 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार दुबारा मुख्यमंत्री बनाया गया। 15 दिसम्बर 1992 को राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा भाजपा सरकार और विधानसभा को भंग कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। प्रदेश में दुबारा चुनाव कराए गए और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 1998 के चुनाव में सता भाजपा के हाथ चली गई। और प्रेम कुमार धूमल को पहली बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पडा और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री फिर से वीरभद्र सिंह को मनाया गया। वर्ष 2007 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल बने। नवम्बर २०१२ मे हिमाचल प्रदेश की हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए हुआ चुनाव था। कांग्रेस ने इस चुनाव में जीत हासिल की। ६८ सीटो में से ३६ सीट जीत कर कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए|२०१७ में हिमाचल में पुने एक बार भाजपा की सरकार 68 मेंसे ४२ सीटो को जित कर सरकार बनाने में कायम रही जिसमे हिमाचल को एक युवा मुख्यमंत्री के रूप में जय राम ठाकुर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री चुनने गए |
हिमाचल प्रदेश एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक राज्य है। क्योंकि प्राचीन समय से ही यहां कई नस्ले आकर बसती गईं थीं इसलिए इस राज्य की सांस्कृतिक विरासत बहुत विविध, रंगीन और समृद्ध है। इसका प्रदर्शन यहां के रंगीन कपड़ों, मीठे संगीत, त्यौहार के उत्सव, लयबद्ध नृत्य और सरल लेकिन समृद्ध जीवनशैली में होता है। कला और हस्तशिल्प यहां की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। राज्य की विशेषता पश्मिना शाॅल तैयार करना है जो कि नियमित तौर पर विदेशों में निर्यात की जाती है। इसके अलावा लकड़ी के बर्तन, धातु के आभूषण, बर्तन भी स्थानीय लोगों के द्वारा बनाए जाते हैं। संगीत और नृत्य हिमाचलियों के जीवन का खास हिस्सा है। देवी-देवताओं के आव्हान के लिए अक्सर लोक गीत गाए जाते हैं। यहां के लोगों के बीच भारतीय रागों पर आधारित विशेष गाने जिन्हें संस्कार गीत कहा जाता है, लोकप्रिय हैं। राज्य की विशेष नृत्य शैलियां शोना, घी, बुराह, लोसर, नाटी आदि हैं। यहां त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। हर साल धर्मशाला में अंतर्राष्ट्रीय हिमालय फेस्टिवल मनाया जाता है। यहां के स्थानीय त्यौहारों में लाहौलियों के चीशु और लाहौल और कांगड़ा जिले का त्यौहार हरियाली है जो कि बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए राष्ट्रीय त्यौहार जैसे दीपावली, लोहड़ी, बैसाखी और क्रिसमस भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या 68,64,602 है जो कि देश की आबादी का बहुत छोटा हिस्सा है।
कुछ जानने योग्य बातें
साधारणतया यह विश्वास किया जाता है कि इस प्रदेश का बड़े निवासियों ने वास्तव में समय-समय से मध्य एशिया और भारतीय मैदानों पर निवास किया।
{इस क्षेत्र पर आर्य-प्रभाव ऋग्वेद समय के पहले से दिनाकिंत है।
{समय ने भी हिमाचल प्रदेश में छोटे जनपद की स्थापना और गणतंत्र को देखा।
{उन्होने मौर्यों के साथ एक अच्छा सम्बन्ध रखा ताकि वे एक लम्बे समय के लिये स्वतंत्र रह सकें।
{उत्तरीय गंगेतिक मैदानों में गुप्तों की उन्नति के साथ उन्होने अपनी स्वतंत्रता खो दी।
{कश्मीर का राजा शंकर वर्मा ने लगभग 883 ईसा में हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमाया।
{यह प्रदेश ने 1009 ईसा में महमूद गजनी के आक्रमण का साक्षी था।
{मुगल शासकों ने इस भूमि की प्रशंसा के रूप में कला के असंख्य कार्यों को स्थापित किया।