आवाज़ जनादेश /शिमला 22 जुलाई – हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है | ऐसा लगता है की सरकार के सभी प्रयास नगर निगम लचर व्यवस्था के कारण निरर्थक साबित हो रहे है| बरसात के आते ही शिमला की सडके निदियों का रूप धरने लगती है, नदी नालो में गिरा अबैध मलवा भी बहुत बड़ी समस्या बन गई है पानी पर बवाल जगह जाहिर है तथा बिजली की तारे सडको के किनारे पेड़ो में लटकी साफ नजर आती है | शिमला की सडको में वाहनों की आवाजाही के चलते शहर से बहार निकलने में घंटो लगा जाते है | शहर की पुलिस रात दिन सडको से ट्रेफिक हटाने में अधिक व्यस्त रहते है | इसका सबसे बड़ा कारण शहर में पार्किंग की आड़ में पैसे कमाने का धंधा शहर की जितनी भी पार्किंग है वह सभी निगम ने ठेके पर आवंटित की है जिसके ठेकेदारों द्वारा मनमर्जी के पैसे बसूले जाते है यदि अपने 10 मिनट के लिए अपना वाहन खड़ा करना है तो उसके आपको 30 रूपये लगभग चुकाने पड़ते है | जिसके कारण लोग अपने वाहनों को सडको पर ही खड़ा करते है और सडको पर अक्सर जाम ही जमा नजर आता है | यदि अन्य राज्य की बात की जाए तो वंहा एक दिन के मात्र 10 रूपये लिए जाते है जिसकी बजह से सडको में कोई अपना वाहन खड़ा नही करता |हो सकता है इन पार्किंग से सरकार को घटा हो मगर इसके दूसरी और से अनगिनत लाभ भी है यदि पार्किंग सस्ती होती है तो हर व्यक्ति गाड़ी चिन्हित जगह पर ही पार्क करेगा ,दूसरी तरफ पुलिसकर्मीयों की संख्या भी सडको से कम हो जाएगी जो सबसे अधिक मुनाफा होगा वह पर्यावरण का होगा सडको पर प्रदुषण कम होगा | बात है शिमला की नगर निम् की कर रहे है तो शिमला में सडक के किनारे बिजली की तारे स्पष्ट देखी जा सकती है |संजोली वासी दलित नेता रविकुमार ने आरोप लगाया है की नगर निगम शिमला पूरी तरह से फेल हो चुकी है | वह सिर्फ सफाई व्यवस्था तक ही सीमित है और रेहड़ी फड़ी और सब्जी वालों पर कार्रवाई करने तक सक्षम है | प्रदेश की राजधानी की जब यह दुर्दशा है तो अनुमान लगाया जा सकता है की ग्रामीण सडको में बिजली की क्या स्थिति होगी | बिजली की तारे सडको में लटकी है शहर में आज तरह से एक बड़ा हादसा होने से टल गया सरकार को इस पर कड़ा संज्ञान लेना चाहिए और विभाग को समय रहते अपनी आंखे खोलने की आवश्कता है |
मौत को न्योता दे रही है नगर निगम शिमला की लचार व्यवस्था – रवि कुमार
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