पत्रकारिता शब्द अंग्रेज़ी के “जर्नलिज़्म”(Journalism) का हिंदी रूपांतर है। शब्दार्थ की दृष्टि से “जर्नलिज्म” शब्द ‘जर्नल’ से निर्मित है और इसका आशय है ‘दैनिक’। अर्थात जिसमें दैनिक, दैनिक समाचार-पत्र या दूसरे प्रकाशन, कोई सर्वाधिक प्रकाशन जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के समाचार हो उसे पत्रकारिता कहा जाता है |पत्रकारिता लोकतंत्र का अविभाज्य अंग है। प्रतिपाल परिवर्तित होने वाले जीवन और जगत का दर्शन पत्रकारिता द्वारा ही संभंव है। परिस्थितियों के अध्ययन, चिंतन-मनन और आत्माभिव्यक्ति की प्रवृत्ति और दूसरों का कल्याण अर्थात् लोकमंगल की भावना ने ही पत्रकारिता को जन्म दिया। सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाआें को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तम्भ) भी कहा जाता है। पत्रकारिता ने लोकतंत्र में यह महत्त्वपूर्ण स्थान अपने आप नहीं हासिल किया है बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्त्व को देखते हुए समाज ने ही दर्जा दिया है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये।
पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डाले तो स्वतंत्रता के पूर्व पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति का लक्ष्य था। स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाई। उस दौर में पत्रकारिता ने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने के साथ-साथ पूरे समाज को स्वाधीनता की प्राप्ति के लक्ष्य से जोड़े रखा।
इंटरनेट और सूचना के अधिकार (आर.टी.आई.) ने आज की पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और कराई जा सकती है। मीडिया आज काभी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है। पत्रकारिता की पहुँच और आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यापक इस्तेमाल आमतौर पर सामाजिक सरोकारों और भलाई से ही जुड़ा है, किंतु कभी कभार इसका दुरपयोग भी होने लगा है।
संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। विज्ञापनों से होनेवाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद्द तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज आधिक से आधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोन का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता के बजाय आज इन्फोटेमेंट ही मीडिया की सुर्खियों में रहता है।
इंटरनेट की व्यापकता और उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इंटरनेट के उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने और अतंर्गततथा आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस उपयोगी साधन का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि यदा-कदा मीडिया के इन बहुपयोगी साधनों पर अंकुश लगाने की बहस भी छिड़ जाती है। गनीमत है कि यह बहस सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। उस पर अमल की नौबत नहीं आने पाती। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता हो स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए, और पत्रकारिता का अपना हित इसमें है कि वह आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारोंके प्रति अपने दायित्वों के ईमानदार निवर्हन के लिए करती रहे।