“फिर जिंदा हुए वीरभद्र सिंह”

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शिमला के रिज पर ‘राजा साहिब’ का भव्य पुनरागमन, सोनिया गांधी ने किया प्रतिमा का अनावरण
आवाज़ जनादेश/ शिमला ब्यूरो

शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजनीति के युग पुरुष और छह बार के मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) आज एक बार फिर अपने प्रिय हिमाचल के हृदयस्थल – शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान – पर ‘जीवित’ हो उठे हैं। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को भव्य समारोह में उनकी कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया, जिसके साथ ही ‘राजा साहिब’ की विरासत को एक अमिट स्थान मिल गया है।

ऐतिहासिक रिज पर ‘देवता स्वरूप’ राजा:
शिमला का रिज मैदान, जो हिमाचल निर्माता डॉ. वाई.एस. परमार, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसी महान विभूतियों की प्रतिमाओं से सुशोभित है, अब वीरभद्र सिंह की 6 फुट ऊंची भव्य प्रतिमा से और भी गौरवान्वित हो उठा है। यह प्रतिमा केवल एक धातु की आकृति नहीं, बल्कि हिमाचल के कण-कण में बसे उस ‘राजा’ की याद है जिसने करीब चार दशकों तक प्रदेश की राजनीति पर राज किया और इसे विकास की नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया ।

भावुक पल और विशाल जनसैलाब:

प्रतिमा अनावरण का यह पल पूरी कांग्रेस पार्टी और वीरभद्र सिंह के लाखों समर्थकों के लिए अत्यंत भावुक था। सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह सहित कई वरिष्ठ नेता और प्रदेशभर से आए हजारों लोग इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने। ‘राजा वीरभद्र सिंह अमर रहे’ के नारों से पूरा रिज मैदान गूंज उठा। इस दौरान पारंपरिक लोक नृत्यों ‘नाटी’ का भी आयोजन हुआ, जो हिमाचल की संस्कृति के साथ वीरभद्र सिंह के गहरे जुड़ाव को दर्शाता है।

विकास पुरुष की अमर गाथा:

वीरभद्र सिंह, रामपुर-बुशहर राजघराने के वंशज, ने 8 अप्रैल 1983 को पहली बार मुख्यमंत्री पद संभाला था। उनका जीवन जनता के लिए समर्पित रहा। उनके कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़कों के निर्माण में अभूतपूर्व प्रगति की। उन्हें ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों तक विकास की किरण पहुँचाने वाले नेता के रूप में याद किया जाता है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने संबोधन में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह वीरभद्र सिंह की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं, जो दर्शाता है कि ‘राजा साहिब’ की विकासवादी सोच आज भी जीवित है।

एक राजनीतिक रणनीति का केंद्र:

वीरभद्र सिंह की प्रतिमा का अनावरण केवल एक श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के लिए एक रणनीतिक रैली बिंदु का भी काम करता है। यह भव्य आयोजन प्रदेश की राजनीति में उनके अटूट प्रभाव और कांग्रेस के भीतर उनके परिवार की महत्वपूर्ण स्थिति को पुनः स्थापित करता है। उनके बेटे और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने ‘राजा वीरभद्र सिंह फाउंडेशन’ के तहत इस समारोह का आयोजन कर यह सुनिश्चित किया कि ‘राजा साहिब’ का नाम और काम हमेशा अमर रहे।
शिमला के रिज पर स्थापित यह भव्य प्रतिमा हिमाचल प्रदेश के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ती है। यह उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी, जो जनसेवा को सर्वोच्च धर्म मानते हैं। वीरभद्र सिंह भौतिक रूप से भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी अमर गाथा और विकास का संकल्प अब इस कांस्य प्रतिमा के रूप में हमेशा के लिए हिमाचल के हृदयस्थल में स्थापित हो गया है। आज पूरा हिमाचल एक स्वर में कह रहा है: “वीरभद्र सिंह अमर हैं!”

हिमाचल की राजनीति में एक शक्ति का केंद्र है। उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह के भाषण और जनसैलाब के उत्साह ने एक बार फिर इस बात को पूरी तरह से दर्शा दिया है कि “जनता का ‘राजा’ अमर है”:
विक्रमादित्य सिंह की गर्जना और जनसैलाब का उत्साह, जो कांग्रेस के नहीं, वीरभद्र सिंह के ‘जनाधार’ की कहानी है
शिमला। शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर आज जो जनसैलाब उमड़ा, वह किसी पार्टी के आह्वान पर नहीं, बल्कि हिमाचल के ‘राजा साहिब’ स्वर्गीय वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) के प्रति लोगों के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रमाण था। उनकी प्रतिमा के अनावरण समारोह में उमड़ी भीड़ और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह (Vikramaditya Singh) के जोशीले भाषण ने यह साबित कर दिया कि हिमाचल में कांग्रेस का ‘जनाधार’ भले ही समय के साथ घटता-बढ़ता रहा हो, लेकिन वीरभद्र सिंह का ‘बर्चस्व’ आज भी जनता के दिलों में कायम है।
वीरभद्र की विरासत पर विक्रमादित्य की दहाड़:
विक्रमादित्य सिंह ने, ‘राजा वीरभद्र सिंह फाउंडेशन’ के अध्यक्ष के रूप में, इस भव्य आयोजन की बागडोर संभाली। उनका भाषण केवल एक बेटे की श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि वीरभद्र सिंह की विरासत के एकमात्र उत्तराधिकारी की गर्जना थी। जब उन्होंने कहा कि यह सम्मान दलगत राजनीति से ऊपर उठकर है और वीरभद्र सिंह ने प्रदेश के 75 लाख लोगों को अपना परिवार माना, तो जनसैलाब में भारी उत्साह और तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी।
विक्रमादित्य सिंह ने स्पष्ट संदेश दिया कि हिमाचल की जनता आज भी उस विकास पुरुष को पूजती है, जिसने दूर-दराज के क्षेत्रों तक सड़क, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं की रोशनी पहुंचाई। उनका हर शब्द इस बात पर ज़ोर दे रहा था कि वीरभद्र सिंह का व्यक्तित्व कांग्रेस की सीमाओं से कहीं बड़ा था—वह आधुनिक हिमाचल के निर्माता थे, जिन्हें हर वर्ग और हर विचारधारा के लोग अपना नेता मानते थे।
कांग्रेस से बड़ा ‘वीरभद्र फैक्टर’:

रिज पर जुटी भारी भीड़, जिसने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ‘नाटी’ डाली और ‘राजा वीरभद्र सिंह अमर रहे’ के नारे लगाए, इस बात की गवाही देती है। हिमाचल की राजनीति हमेशा से व्यक्तिगत नेतृत्व पर आधारित रही है। वीरभद्र सिंह ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व से यह स्थान बनाया था, जो आज भी कायम है। इस भीड़ में वे लोग भी थे जो राजनीतिक रूप से कांग्रेस के साथ नहीं जुड़े हैं, लेकिन ‘राजा साहिब’ को अपना ‘देवता स्वरूप’ नेता मानते हैं। विक्रमादित्य सिंह ने सफलतापूर्वक इस समारोह को एक भावनात्मक कार्यक्रम बना दिया, न कि केवल एक राजनीतिक रैली। उन्होंने हिमाचल के हर परिवार को आमंत्रित किया और लोगों ने इसे अपना निजी सम्मान मानकर शिरकत की।

* विरोधियों के लिए चुनौती:

यह जनसैलाब न केवल कांग्रेस को बल देता है, बल्कि यह विपक्षी दलों के लिए भी एक स्पष्ट संदेश है कि वीरभद्र सिंह फैक्टर को हिमाचल की राजनीति से खत्म नहीं किया जा सकता।
राजनीतिक समीकरण और भविष्य की राह:
शिमला में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व (सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी) की मौजूदगी के बावजूद, केंद्र बिंदु वीरभद्र सिंह और उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह ही रहे। विक्रमादित्य सिंह ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का स्वागत कर यह दर्शाया कि वह वर्तमान सरकार के साथ तालमेल बिठाकर चल रहे हैं, लेकिन जनसमर्थन के दम पर उनका अपना राजनीतिक वज़न बरकरार है।
शिमला के रिज पर खड़ी वीरभद्र सिंह की कांस्य प्रतिमा केवल एक मूर्ति नहीं है, यह हिमाचल की राजनीति में ‘वीरभद्र फैक्टर’ की अमरता का प्रतीक है। विक्रमादित्य सिंह ने अपने पिता की विरासत के दम पर जो जनसैलाब जुटाया, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस का भविष्य तभी मजबूत रह सकता है जब वह ‘राजा साहिब’ के ‘जनाधार’ और उनके विकासवादी एजेंडे को साथ लेकर चले। वीरभद्र सिंह भले ही देह से चले गए हों, लेकिन आज रिज पर उमड़ा उत्साह चीख-चीख कर कह रहा था कि “वीरभद्र सिंह की विरासत ही आज भी हिमाचल की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति है।”

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