युवाओं पर चिट्टे का साया, प्रदेश के एक भी अस्पतालों में नहीं स्क्रीनिंग टेस्ट की सुविधा

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आवाज़ जनादेश / न्यूज़ ब्यूरो शिमला

प्रदेश में 71 दिनों में चिट्टे की ओवरडोज से 12 युवाओं की जिंदगी जा चुकी है। जबकि यह संख्या कहीं और अधिक हो सकती है। क्योंकि प्रदेश में सरकारी स्वास्थ्य संस्थान में कहीं पर भी नशे को लैब टेस्ट के माध्यम से पता लगाने की सुविधा नहीं है। हालात यह है कि चिट्टे में नशीली दवाओं के कॉकटेल ने युवा पीढ़ी को बर्बादी के कगार पर लगा दिया है। सरकार प्रदेश के 68 आदर्श स्वास्थ्य संस्थानों में 139 प्रकार केे टेस्टों की निशुल्क सुविधा उपलब्ध करवा रही है लेकिन ड्रग ऑफ अब्यूज टेस्ट की सुविधा नहीं है। इसी बीच अप्रैल से उच्च शिक्षा निदेशालय ने प्रदेश के स्कूलों में पढ़ने वाले नौवीं से बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों से नशा न करने का वचनपत्र मांगा है।

इसने अभिभावकों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि चिट्टा, कोकीन, एलएसडी ये कुछ ऐसे नशे हैं, जोकि तीन से चार बार सेवन करने पर ही इंसान को उसका आदी बना देते हैं। ऐसे में अभिभावक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आखिरकार उन्हें कैसे पता चलेगा कि उनके बच्चे चिट्टे जैसा जानलेवा नशे का सेवन कर रहे हैं या नहीं। अगर उनका स्कूल में दिया गया वचनपत्र गलत पाया जाता है, तो इससे उनके बच्चों को शिक्षा के मूलभूत सांविधानिक अधिकार से वंचित होने का खतरा भी बन गया है। इस वजह से चाहकर भी अभिभावक यह नहीं जान पाते हैं कि उनका बच्चा कहीं चिट्टे जैसे जानलेवा नशे का सेवन तो नहीं कर रहा है। चिकित्सकों की मानें तो चिट्टे की लत एक प्रकार का मनोरोग है। ऐसे में इसका समय पर स्क्रीनिंग टेस्ट होने पर बच्चे का उचित उपचार करवाकर उसे नशे के चंगुल में फंसने से बचाया जा सकता है। ऐसे में स्वास्थ्य संस्थानों में नशे के इस्तेमाल की पुष्टि करने के लिए टेस्ट की निशुल्क सुविधा उपलब्ध करवाई जानी चाहिए।

ड्रग ऑफ अब्यजू किट से एक मिनट में हो जाती है नशे के सेवन की पहचान

ड्रग ऑफ अब्यजू (एबोन) एबोन किट के जरिये एक मिनट में छह प्रकार के नशों के सेवन की पहचान की जा सकती है। वर्तमान में आईजीएमसी के प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र में यह किट आम लोगों के लिए उपलब्ध करवाई गई है। शिमला पुलिस अब संदिग्ध मौत के मामलों और चरस तस्करी के मामलों में पकड़े गए आरोपियों का इस किट के जरिये टेस्ट कर रही है। यही वजह है कि शिमला में नशे की ओवरडोज से होने वाली मौतों और चिट्टा तस्करी के मामलों की बेहतर तरीके से जांच कर पा रही है और चिट्टा तस्करों तक पहुंचने में उन्हें कामयाबी भी मिल रही है। इससे पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद सैंपल एफएसएल को भेजे जाते थे, जहां से करीब 90 दिनों के बाद रिपोर्ट आती थी। उस समय तक मामला पूरी तरह से ठंडे बस्ते में चला जाता था। आईजीएमसी शिमला के फोरेंसिक साइंस मेडिसिन विभाग में चल रही रिसर्च जो पोस्टमार्टम के दौरान नशे की स्पॉट डाइग्नोसिस के संदर्भ में चल रही है। इसका लाभ भी नशा तस्करी को रोकने और नशे से होने वाली मौतों का पता लगाने में मिल रहा है। वहीं चिकित्सकों के मुताबिक इसी तर्ज पर प्रदेश के सभी स्वास्थ्य संस्थानों में एबोन किट के जरिये टेस्ट की सुविधा उपलब्ध करवाई जानी चाहिए, जिससे अभिभावक बच्चों का समय पर टेस्ट करवाकर उनका उपचार करवा सकें।

नौ फीसदी स्कूली बच्चे इंजेक्शन से ले रहे नशा

प्रदेश के 204 स्कूलों में लिए सर्वे ने प्रदेश सरकार और अभिभावकों की चिंता को बढ़ा दिया है। स्वंयसेवी संस्था ममता हेल्थ इंस्टीट्यूट के सर्वे में पता चला है कि प्रदेश के स्कूलों के 9 फीसदी बच्चे इंजेक्शन से नशा लेते हैं। वहीं प्रदेश के नशामुक्ति केंद्रों में 35 फीसदी युवा चिट्टे के नशे के आदी हैं। इसको देखते हुए विशेषज्ञों ने प्रदेश सरकार से स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी स्कि्रनिंग की सुविधा शुरू करने की मांग की है, जिससे कि सरकार को यह पता चल सके कि आखिरकार प्रदेश में कितने युवा इस जानलेवा नशे की लत का शिकार हैं। इससे नशा तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के साथ ही नशे की लत का शिकार युवाओं को इससे उबारकर सामान्य जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

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