कभी भी कुत्ते या किसी भी जानवर ने काटा हो और टीका नहीं लगवाया है तो चिकित्सक की सलाह लेकर रेबीज टीकाकरण करवा सकते हैं ताकि इससे बचा जा सके। यदि टीके को अनदेखा किया जाए तो वायरस कई वर्षों तक शरीर में जीवित रहता है।
आवाज जनादेश/न्यूज ब्यूरो शिमला
कुछ समय पहले कुत्ते या जंगली जानवर के काटने पर टीकाकरण नहीं करवाया है तो अब भी लोग रेबीज वैक्सीन लगवा सकते हैं। रेबीज की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से अलर्ट है। वर्तमान में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों को रेबीज को लेकर प्रशिक्षित भी किया जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद सीएचओ लोगों को जागरूक करेंगे। वहीं घरद्वार पर जाकर लोगों को रेबीज से संबंधित लक्षण बताएंगे।
कुत्ते या अन्य किसी जानवर के काटने के बाद रेबीज बीमारी फैलने की आशंका रहती है। रेबीज एक जानलेवा बीमारी है। यदि समय रहते टीकाकारण न हो तो यह मौत का कारण भी बन जाता है। इसको लेकर एंटी रेबीज टीका लगवाना जरूरी होता है। वैक्सीन लगवाने के तुरंत बाद बीमारी से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही 40 से 50 फीसदी तक पहली डोज में ही एंटीबॉडी बन जाती है। चार डोज लगने के बाद रेबीज का खतरा न के बराबर हो जाता है। यदि टीके को अनदेखा किया जाए तो वायरस कई वर्षों तक शरीर में जीवित रहता है। पिछले वर्ष जिला सोलन में लगभग 10,000 कुत्तों को काटने के मामले सामने आए थे।
रेबीज के लक्षण:
1.थकावट रहना
2.मांसपेशियों में दर्द
3.अजीबोगरीब ख्याल आना
4.मन विचलित रहना
5.कान में आवाज सुनाई देना
6.पानी और हवा से डर लगना
7.हदृय गति या फेफड़े फेल होना
रेबीज को लेकर समस्त जिला सोलन के सीएचओ का प्रशिक्षण करवाया है। करीब 60 सीएचओ का प्रशिक्षण पूरा हो गया है। रेबीज अभियान के दौरान बताया जा रहा है कि अगर पालतू कुत्ते को पूरे टीके भी लगे हैं और कुत्ता काट जाए तो भी लोगों को वैक्सीन लगवानी चाहिए। इसी के साथ चूहे या अन्य जानवर के काटने, शिकार करने वालों को भी टीकाकरण करवाना चाहिए। पुन: कुत्ते के काटने पर भी चिकित्सक की सलाह लेकर एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाना होता है। शरीर पर काटने से हुए जख्म पर कभी भी मिर्च, चूना, मिट्टी, हल्दी आदि नहीं लगाना चाहिए। यह वायरस को शरीर में भीतरघात करने में मदद करते हैं