आवाज़ जनादेश राजगढ़/गोपाल शर्मा
सिरमौर जिले के पहाड़ी इलाकों में कई प्रकार के व्यजन बनाए जाते है। उनमे से एक है स्टांले यह एक तरह से पहाडी मैगी है फर्क केवल इतना है कि इसे मैदे से नही माडवे के आटे से बनाया जाता है.पहाड़ी व्यंजनों को खाने से मनुष्य का शरीर स्वास्थ्य रहता है। खासकर बर्फीले इलाकों में तो पहाड़ी व्यंजनों को खाने से ठंडक से भी काबू पाया जा सकता है। जिला सिरमौर के पहाड़ी इलाके में आज भी कई प्रकार के व्यंजन आज भी बनाए जाते हैं जैसे कि बिडोलिया सिडकू मांडवे की आटे की रोटी स्टॉले आदि आज भी पोस्टिक व्यंजन बनाए जाते हैं लेकिन आज हम बात कर रहे हैं स्टॉले की। स्टॉले माघी त्यौहार से एक-दो दिन पहले बनाए जाते हैं ताकि मैदानी इलाकों से पहुंचे मेहमान व अपने घर के सदस्य को स्टॉले खिलाए जाते हैं। यह खाने में बहुत स्वादिष्ट होते हैं और शरीर हमेशा स्वास्थ्य रहता है सबसे ज्यादा ठंडे इलाकों में यह यह व्यंजन बनाया जाता है क्योंकि यह काफी गर्म व्यंजन कहा जाता है।
बनाया कैसे जाता है
लकड़ी से बने एक घोड़े की आकृति का बना एक यंत्र जिसे पहाड़ी भाषा में सतौनडू कहा जाता है। इस लकड़ी के यंत्र की सहायता से मांडवे का आटा गूंदकर फिर लकड़ी के इस यंत्र में डालकर बनाए जाते हैं। बता दें मांडवे के आटे को पहले गोंदकर 2 घंटे तक आग के उबाले जाते है। उसके बाद उसे लकड़ी के यंत्र में डालकर स्टॉले बनाए जाते हैं। देखने में स्टॉले काले रंग के होते हैं लेकिन जब इन्हें शक्कर के साथ खाए जाते हैं या दाल के साथ तो खाने में काफी स्वादिष्ट होते हैं।
गांव के लोगों ने बताया कि स्टॉले खाने में स्वादिष्ट तो होते ही हैं लेकिन अधिक गर्म होने की वजह से लोग ज्यादा इसे पसंद करते हैं। पहाड़ी इलाकों में भारी बर्फबारी होने के कारण कड़ाके की ठंड पड़ रही है। इस डिश को खिलाने के लिए दूर-दूर से रिश्तेदारों को गांव में बुलाया जाता है। गांव के पड़ोसियों की दावत लगाकर सभी को ये स्टॉले खिलाए जाते हैं। यह परंपरा कई वर्षों से लगातार चलती आ रही है।
सिरमौर के पहाड़ी व्यंजन का लुत्फ़ लेने पहुंचते है देश विदेश के पर्यटक
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