हिमाचल सरकार ने पहली बार उन *डाक्टरो पर सख्त कार्यवाही* करनी शुरू की है जिन्होंने सरकारी नौकरी पर रहते हुए एम डी और डी एम की डिग्रीयां हासिल की और विशेषज्ञ डाक्टर बनने के बाद *सरकार को सूचित किये बिना* विदेश या कारपोरेट अस्पतालों मे *लाखों के पैकेज की नौकरियां* हासिल कर ली। सरकार एम डी करने वाले डाक्टरो से 40 लाख और डी एम करने वालों से 60 लाख का बांड भरवाती है ताकि वह विशेषज्ञ बनने के बाद प्रदेश मे सेवा दे सके। इन डाक्टरो को पढाई के समय वेतन तो मिलता ही है इसके अतिरिक्त भी *सरकार के लाखों रूपये खर्च* होते हैं। आज कल प्राईवेट मेडिकल कालेज *एम डी करवाने के करोड़ रूपये* से अधिक वसूलते है। सरकारी कालेजों मे मुफ्त के बराबर डिग्री ले कर और बांड के पैसे भी जमा करवाए बिना कुछ डाक्टर भाग खड़े होते है। वह *बांड भरने को बहुत हल्के में* लेते हैं। जबकि कुछ पड़ोसी प्रदेशों ने तो एम डी डाक्टरो के लिए बांड मनी एक करोड़ कर दी है। हिमाचल सरकार ने अपेक्षित कार्यवाही करते हुए 12 ऐसे डाक्टरो को *एस सी पी एक्ट के आधीन डिसमिस* कर दिया है। उनसे बांड मनी भी वसूल की जाएगी। मेरे विचार मे ऐसे *डाक्टरो के लिए बांड के अतिरिक्त और भी सख्त प्रावधान* करने की आवश्यकता है। क्योंकि प्राईवेट मेडिकल कालेज एवं अस्पताल इतने *बड़े पैकेज विशेषज्ञ डाक्टरो को* दे रहे हैं कि उनके लिये 40 लाख रूपये कोई मायने नहीं रखते हैं। केंद्र सरकार को कानून बना कर जो डाक्टर बिना अनुमति सरकारी सेवा से भागते हैं उनका *प्रैक्टिस का अधिकार खत्म* कर देना चाहिए या उन्हे प्रोविजनल डिग्री देनी चाहिए जब वह तीन वर्ष तक देहात मे सेवा दे दे तो उन्हे रेग्युलर डिग्री देनी चाहिए। अंतिम सुझाव है कि *बांड के साथ सजा का प्रावधान भी* होना चाहिए। *सरकारी धन का उपयोग कर विशेषज्ञ बनना और फिर सरकारी क्षेत्र मे सेवा न देना* किसी *अपराध से कम नही* है। सरकार द्वारा *12 डाक्टरों के खिलाफ कार्यवाही और 37 डाक्टरो को नोटिस जारी* करना स्वागत योग्य है। आज इतना ही *कल फिर नई कड़ी के साथ मिलेंगे।*