एजेंसी / (महाराष्ट्रा मे शिवसेना के कारण नहीं बन पा रही है सरकार) — शिवसेना और भाजपा ने महाराष्ट्रा मे मिल कर चुनाव लड़ा है। महाराष्ट्रा मे इस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत भी मिला है। परन्तु एक सप्ताह होने को आया है और वहां की सरकार की स्थापना लटकी हुई है। शिव सेना जो कि बाला साहिब के समय से दबाव की राजनीति करते आई है। भाजपा पर अढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद और मंत्रीमंडल मे 50% हिस्सा मांग रही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दावा किया है कि लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने ऐसा वायदा किया था और अब उसे निभाने का समय आ गया है।परन्तु भाजपा इस प्रकार के किसी वायदे की पुष्टि नही कर रही है। दबाव बनाने की कमांड संजय राऊत के पास है जो कि शिवसेना के मुख्य पत्र सामना के सम्पादक और सांसद भी है।राऊत ने यह कह कर कि ” राजनीति मे कोई संत नही होता भाजपा हमे मजबूर न करे” ने अपने दबाव को ब्लैकमेलिंग की परिभाषा मे धकेल दिया है। कभी मराठा गौरव के नाम पर बनी शिव सेना अब अपने आप को हिंदुत्ववादी पार्टी मानती है। इससे भी इनंकार नहीं करती कि वह भाजपा की सम वैचारिक पार्टी है। परन्तु इस बार एक बड़ा परिवर्तन शिवसेना ने किया है कि इतिहास मे पहली बार ठाकरे परिवार के किसी सदस्य ने चुनाव लड़ा है। चुनाव लड़ने वाला और कोई नही वल्कि उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे है। पुत्र मोह के कारण भी दबाव की राजनीति और तेज हो गई है। पिता पुत्र को महाराष्ट्रा के मुख्यमंत्री के रूप मे देखना चाहते हैं।हालांकि गठबंधन की राजनीति मे हमेशा संख्या बल महत्वपूर्ण होता है।जिसके पास अधिक विधायक है उसी दल को गठबंधन का नेतृत्व मिलना चाहिए। ऐसी ही गठबंधन की सरकारे सफल होती है। अन्यथा यदि गठबंधन का नेतृत्व छोटी पार्टी को दिया जाता है तो ऐसी सरकारे चंद दिनों की मेहमान होती है। भाजपा और शिवसेना पुराने सहयोगी है। सम वैचारिक है एक दुसरे को समझते हैं। एक स्थाई सरकार देने के लिए जरूरी है कि वह मिलकर जल्दी से जल्दी महाराष्ट्रा को चुनी हुई सरकार उपलब्ध करवाये।आज इतना ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलेंगे।
महाराष्ट्रा नहीं बन पा रही है सरकार) शिवसेना और भाजपा में खींचतान
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