दिवाला कानून में संशोधन के लिए विधेयक लोकसभा में पेश

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दिवाला कानून में संशोधन के लिए लोकसभा में बिल पेश

नयी दिल्ली. सरकार ने सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) और मकानों के खरीददारों को राहत देने के लिए दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2018 आज लोकसभा में पेश किया.

यह विधेयक दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (दूसरा संशोधन) अध्यादेश, 2018 की जगह लेगा जो इस साल 06 जून को लागू किया गया था. दिवाला घोषित कंपनियों को दुबारा पटरी पर लाने या इसकी संभावना नहीं होने की स्थिति में उसके अधिग्रहण एवं नीलामी जैसी समाधान प्रक्रियाओं का मानक तय करने के लिए मूल कानून वर्ष 2016 में पारित किया गया था.

वित्त मंत्री पीयूष गोलय ने आज इसे सदन में पेश किया. बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब के इन आरोपों का खंडन करते हुये कि संशोधन का उद्देश्य किसी चुनिंदा कंपनी को फायदा पहुँचाना है, गोयल ने कहा कि इसमें संशोधन का फैसला इंसॉल्वेंसी लॉ कमिटी की सिफारिशों पर किया गया है.

संशोधन के जरिये यह प्रावधान किया गया है कि किसी रियल इस्टेट परियोजना में अलॉटी से प्राप्त आय को ऋण माना जायेगा. इससे मकान खरीदने वालों को भी बिल्डर के खिलाफ समाधान प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार मिल जायेगा. साथ ही उन्हें ऋणदाताओं की समिति में भी जगह मिल जायेगी जिससे वे निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बन सकेंगे.

सरकार ने संहिता में पहले संशोधन के जरिये दिवाला हो चुकी कंपनियों के प्रवर्तकों तथा निदेशकों को इसके समाधान प्रक्रिया में हिस्सा लेने से वंचित कर दिया गया था. दूसरे संशोधन के जरिये एमएसएमई कंपनियों के प्रवर्तकों तथा निदेशकों को इससे छूट दी गयी है. साथ ही यदि सरकार चाहे तो एमएसएमई को संहिता के किसी भी प्रावधान से छूट दे सकती है.

ऋणदाताओं की समिति में बड़े फैसले लेने के लिए वर्तमान में समिति के 75 प्रतिशत सदस्यों की मंजूरी जरूरी है. विधेयक में इसे घटाकर 66 प्रतिशत करने का प्रावधान है. साथ ही नियमित फैसलों के लिए 51 प्रतिशत मत की जरूरत होगी.

यदि किसी वित्तीय संस्थान या किसी कंपनी ने समाधान प्रक्रिया के तहत किसी गैर-निष्पादित परिसंपत्ति वाले खाते का अधिग्रहण किया है तो उसके प्रवर्तकों पर क्लॉज ‘सी’ तीन साल तक लागू नहीं होगा और वे समाधान प्रक्रिया का हिस्सा बन सकेंगे. अधिग्रहण से पहले होने वाले किसी भी धोखाधड़ी वाले ट्रांजेक्शन गलत तरीके से लिए गये ऋण आदि के लिए भी उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकेगा.

संहिता में संशोधन से 12वीं अनुसूची के तहत आने वाले किसी भी अपराध के लिए दोषी करार व्यक्ति को समाधान प्रक्रिया के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकेगा. साथ ही जेल से छूटने के दो साल बाद वह आयोग्य नहीं रह जायेगा.

तनावग्रस्त आस्तियों के निपटान के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने किया करार
देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक और सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम सहित बैंक और वित्तीय संस्थानों ने तनावग्रस्त आस्तियों के त्वरित निपटान के लिए आज अंतर ऋणदाता करार (आईसीए) पर हस्ताक्षर किये.

वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने यहां एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद संवाददाताओं से इस आईसीए के बैंकिंग उद्योग की समस्याओं के समाधान की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम बताते हुये कहा कि इस पर इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक सहित 22 सरकारी बैंक, 19 नजी बैंक और 32 विदेशी बैंक हस्ताक्षर करने जा रहे हैं.

इसके साथ ही भारतीय जीवन बीमा निगम, हुडको, पीएफसी और आरईसी जैसे 12 प्रमुख वित्तीय संस्थान भी हस्ताक्षर कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसमें पूरा बैंकिंग तंत्र और आरईसी और पीएफसी जैसे गैंर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों भी शामिल होंगी ताकि तनावग्रस्त आस्तियों के निपटान में तेजी लायी जा सके.

उन्होंने कहा कि आईसीआईसीआई बैंक निदेशक मंडल की मंजूरी के बाद इसमें शामिल होगा और निजी क्षेत्र के कई अन्य बैंक भी इसमें शामिल होने वाले हैं. उन्होंने कहा कि बैंकों ने ही आईसीए को बनाया है.

वित्त मंत्री ने कहा कि यह किसी तंत्र के समानांतर नहीं है. नयी आईबीसी के तहत है और नियमों के तहत तनावग्रस्त आस्तियों का त्वरित निपटान में मददगार होगा. कंसोर्टियम के तहत कम से कम 50 करोड़ रुपये तक तनावग्रस्त आस्तियों के मामले इसके तहत निपटाये जायेंगे.

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