पिछ्ली लोकसभा बनानी थी जरूरी ,इस बार बचानी है जरूरी – संबाद सूत्र
संबाद सूत्र / आवाज़ जनादेश हमीरपुर /आखिर भाजपा हाईकमान को “नन्हे” से हिमाचल में ऐसा कौनसा “बड़ा” खतरा नजर आ गया है ? या फिर मौजूदा सरकार और संगठन में कोई बहुत ही बड़ी कमियां नजर आनी शुरू हो गई है ?
कहीं हाईकमान बीते छह महीनों से हिमाचल में पार्टी के कम होते तालमेल को देख रहा था या फिर 2019 की तैयारियं कर रहा है ? आखिर क्या वजह रही कि अनुराग ठाकुर को लोकसभा में तमाम सांसदों की कमान थमाने के लिए हाईकमान मजबूर हो गया ? जिस धूमल परिवार को विधानसभा चुनावों के बाद से साइडलाइन लगा कर खुद को कई चेहरे भगवां की मुख्यधारा का खेवट मानने शुरू हो गए थे,अब क्या उसी परिवार को आगे करने की मजबूरी नजर आ रही है ?
यह तमाम सवाल हिमाचल की सियासत को अचंभे में डाले हुए हैं । अचंभा इसलिए भी माना जा रहा है कि मंगलवार यह ऐलान भी उस वक़्त हाईकमान ने किया जब खुद सीएम जयराम ठाकुर,भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती भी दिल्ली में मौजूद थे । क्या वजह रही कि हिमाचल भाजपा के सत्ता और संगठन में बैठे कुनबे को कोई सन्देश हाईकमान ने इनकी दिल्ली दरबार मे मौजूदगी में ही सुनाया ?
इधर अनुराग ठाकुर को सदन में चीफ व्हिप का दर्जा मिला उधर कइयों को अपने मौजूदा दर्जे अब खतरे में नजर आने शुरू हो गए हैं । सियासी फिजाएं एकदम से बदल गईं हैं ।
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक यह सब एक तरह से हिमाचल भाजपा में अचानक आए ठहराव को गतिशील बनाने के लिए हुआ है । बीते छह महीनों से सरकार में होने के बावजूद भाजपा हाईकमान को ऐसी रपट रोज अपने सियासी रोजनामचे में चढ़ाने पड़ रही थीं, जिनमे यह कहा जा रहा था कि,हिमाचल लोकसभा चुनावों में हार का अंदेशा खतरे के निशान से ऊपर जा रहा है । सिर्फ सीएम का चेहरा बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ा है,और जनता समेत आम भाजपा कार्यकर्ता भी “खज्जल” अवस्था मे है ।
प्रो प्रेम कुमार धुमल की हार को पूरे प्रदेश की जनता भाजपा हाईकमान का षडयंत्र खिताब दे रही है। जानबूझ कर उनको हमीरपुर से हटा कर सुजानपुर से लड़वाने को भी लोग पीठ पर छुरा मान रहे हैं । लब्बोलुआब यही गया कि पार्टी में हुए युग परिवर्तन को जनता ने माना या नहीं माना,इसका नतीजा तो दूर की बात, आम जनता और पार्टी कैडर का मन परिवर्तन नहीं हो पाया है । सबकी नजर में धूमल के ही मन मुताबिक होने की खबरें भी दिल्ली दरबार मे पहुंच रहीं थीं ।
इसकी वजहें भीं थीं । धूमल पर शांता के हमले जयराम के राज्याभिषेक के दौर से ही शुरू हो गए थे । मगर धूमल ने उफ्फ तक नहीं की । चुप्पी का दामन ऐसा थामा कि पार्टी कैडर और आम आदमी तक के कान उनको सुनने के लिए तरस गए । जयराम के सीएम बनने के शोर से ज्यादा हल्ला धूमल की खामोशी ने बनाया हुआ था । जबकि हाईकमान विधानसभा चुनावों के दौरान ही यह मान चुका था कि धूमल बिन गति नहीं होगी । सीएम के नाम पर उनके नाम की घोषणा करनी पड़ी थी ।
अब जब लोकसभा चुनावों की घड़ी आई तो एक बार फिर से खतरे की घण्टी बजने शुरू हुई । रिपोर्ट्स तमाम यही बता रही थी कि अगर धूमल और उनके परिवार की पुनर्स्थापना नहीं हुई तो चारों लोकसभा क्षेत्रों में चुनावी गणित का तिया-पांचा होने में देर नहीं लगेगी ।
इसके बाद ही अनुराग के हाथ मे देश के तमाम सांसदों की कमान थमाई गई । एक और रोचक तथ्य देखिए, अनुराग ठाकुर को उन राकेश सिंह की जगह बिठाया गया,जो मध्यप्रदेश से हैं । उनको उस एमपी का अध्यक्ष बना कर भेजा गया जहां भाजपा के हालात और हालत सही नहीं माने जा रहे हैं । मामा जी के नाम से मशहूर सीएम शिवराज सिंह भी खतरे में आंके जा रहे हैं । जबकि दूसरी तरफ हिमाचल में भी भाजपा हाईकमान को खतरा ही नजर आ रहा है । इसका नया उदाहरण और निवारण अनुराग ठाकुर को बड़ी जिम्मेदारी देकर खुद हाईकमान ने पेश किया है ।
अब सवाल यह भी सामने आ गया है कि क्या प्रो धूमल को भाजपा का अध्यक्ष बनाया जाएगा ? इसकी वजह भी है । अनुराग तो केंद्र सरकार के खाते से एडजस्ट हुए हैं । प्रदेश में अभी भी धूमल हाशिये पर बैठे हुए हैं । इस से भाजपा में निचले क्षेत्रों की अनदेखी माना जा रहा है । हालांकि सत्ती भी लोअर हिमाचल से हैं,मगर उनके खुद प्रदेशाध्यक्ष रहते खुद ही हार जाना,उनके बायोडाटा को कमजोर कर रहा है । जबकि धूमल के नाम से यह पद पूरे प्रदेश में पार्टी में सुखद संकेत माना जा रहा है ।
जबकि भाजपा के थिंक टैंक से यह खबरें भी आ रही हैं कि धूमल के आने से एक साथ कई फायदे पार्टी को होने तय होंगे । उनकी वरिष्ठता और कद के चलते एक ऐसा नेतृत्व भाजपा को हिमाचल में मिल जाएगा,जिनके सामने सबको एकजुट होकर चलना पड़ेगा । आखिर यह जरूरी भी होगा । इसकी वजह खुद एक आला नेता ने कुछ यूं बयां की…
“पिछ्ली दफा लोकसभा चुनावों में सरकार बनानी जरूरी थी,इस बार बचानी जरूरी है…”