हिमाचल प्रदेश का भौगोलिक परिचय

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हिमाचल प्रदेश का भौगोलिक परिचय

हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ होता है, बर्फ से ढका हुआ क्षेत्र। हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तर पश्चिम में स्थित एक छोटा सा राज्य है। यह सामान्यत: काफी ठण्डी जलवायु वाला क्षेत्र है। अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में काफी बर्फबारी होती है। जबकि कम उंचाई वाले क्षेत्र जिनकी सीमा पंजाब से लगती है, वे सामान्यत: काफी गर्म क्षेत्र हैं। हिमाचल का कुल क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है। समुद्र तल से हिमाचल की ऊंचाई 350 मीटर से 7026 मीटर है।हिमाचल प्रदेश की उत्तरी सीमा जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी सीमा पंजाब, दक्षिणी सीमा हरियाणा तथा पूर्वी सीमा तिब्बत से लगती है। दक्षिण पूर्व में हिमाचल की सीमा उत्तराखंड से लगती है। हिमाचल की कुछ सीमा उत्तर प्रदेश से भी लगती है

हिमाचल प्रदेश पर्यटन  

हिमाचल प्रदेश  में पर्यटन उद्योग को उच्च प्राथमिकता दी गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने विकास के लिए सुनियोजित विकास किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र, हवाई अड्डे, यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल किया है। राज्य सरकार राज्य को ‘हर हाल में गंतव्य’ का रूप देने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य पर्यटन विकास निगम की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। यह निगम बिक्री कर, सुख-सुविधा कर और यात्री कर के रूप में 2 करोड़ वार्षिक आय का योगदान राज्य की आय में करता है। वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में 8.3 मिलियन पर्यटक आए जिनमें लगभग 2008 लाख पर्यटक विदेशी थे।

राज्य में तीर्थो और मानवशास्त्रीय महत्त्व के स्थलों का समृद्ध एवं अथाह भंडार है । जिसके आज  भी अधिकांश जानकारी संग्रहित ही नही हुई है यंहा आने वाले तीर्थयात्री को यंहा की प्राचीन कथाओं एवं मान्यताओं की जानकारी ही नही होती आज इन चीजो पर ध्यान देने की जरूरत है इससे ऐसे स्थलों को  अधिक बढ़ावा मिलेगा |

इस राज्य में व्यास , पराशर , वशिष्ठ , मार्कण्डेय और लोसर आदि ऋषि मुनियों के स्थल होने का गौरवपूर्ण पौराणिक इतिहास है, साथ ही गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित झीलें, उन्मुक्त घूमते चरवाहे पर्यटकों को असीम सुख और आनंद प्रदान करते हैं। राज्य सरकार पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्रों को योजनाओं में शामिल करके पर्यटन संबंधी विकास को बल देने की आवश्कता है  कि राज्य की प्राकृतिक स्थिति और पर्यावरण अक्षुण्ण बना रहे। साथ ही रोज़गारों का सृजन हो और पर्यटन का विकास हो। पर्यटकों के प्रवास की अवधि बढ़ाने के लिए गतिविधियों पर आधारित पर्यटन का विकास विशेष रूप से किया जाना चाहिए | नये नये  धार्मिक स्थलों को पर्यटन विभाग अपने अधिकार क्षेत्र में ले तो प्रदेश में की गुणा पर्यटन की सम्भावना बढ़ा सकती है |

हिम संस्कृति

हिम संस्कृति हिम की तरह शांत-शीतल, निर्मल, कोमल और पावन है। नाम के अनुरूप ही यहां का वातावरण, लोग भी उदात्त, सुंदर एवं प्रकृति प्रेमी हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण ऋषि-मुनियों, देवी-देवताओं ने इसे अपनी तपःस्थली के रूप में अपनाया था और इसके साथ देवभूमि के होने का विशेषण जुड़ा था।  प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनमोल उपहारों और उसके कारण यहां पर पैदा हुई अनमोल परंपराओं के साथ हिमाचलियों का गहरा अपनत्व बोध रहा है। यह अपनत्व बोध ही हिमाचलवासियों को अपनी थाती को सहेजने-संवारने के लिए प्रेरित करती रही है। प्रकृति और परंपराओं के अनुपम मेल ने हिमाचल को अनमोल बना दिया है। भारत ही क्यों जो भी विदेशी यहां आते हैं, वे यहां की संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। ऐसे ही पर्यटकों के कारण हिमाचल ने  पूरे विश्व में प्रसिद्धि पाई है। यहां के हर घर में देव स्थान, देवी स्थान अवश्य मिलेगा, हर गांव में मंदिर अवश्य है। यहां के लोगों का सहज-सरल व्यवहार भी बाहर से आने वाले लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है।

यदि हम हिमाचल की सांस्कृतिक विशेषताओं पर नजर डालें तो यह सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि यहां पर संबंधों में संवेदनशीलता का स्तर काफी ऊंचा है।  सह अस्तित्व, भ्रातृ-प्रेम, अतिथि सत्कार, त्याग भावना, ईमानदारी, सच्चाई सहनशीलता, देश-प्रदेश प्रेम, प्रकृति प्रेम पूर्वजों का पूजन,नव-सृजन जैसे मूल्यों के प्रति यहां के नागरिकों में हिमाचल में सहज ललक देखने को मिलती है।  यहां के रीति-रिवाज, वेशभूषा, खानपान, देव पूजन, मेले सभी अद्वितीय हैं।

यहां की कृषि, पशुपालन, फल-उत्पादन और लघु उद्योगों में भी यहां की संस्कृति के प्रभाव का दर्शन किए जा सकता है। ऐसा कहा जा सकता है कि उदात्त मूल्यों को व्यावहारिकता में तबदील करने की कला भी हिमाचल की एक विशिष्ट थाती और पहचान है।

इस प्रदेश में हर कार्य को शुरू करने से लेकर उसकी समाप्ति तक उदात्त संस्कारों का प्रभाव देखा जा सकता है।  उदाहरणतः अन्न उगाने से पहले जब किसान बीज खेत में डालने से पहले परमात्मा से प्रार्थना करता है। उसके शब्द होते हैं ‘अन्न परमेश्वर आप सभी जीव-जंतुओं के भाग्य से उपजना’ इसमें वह अपने लिए प्रार्थना नहीं करता। इसी तरह भूमि जोतने से पहले बैल, भूमि एवं हल का फल पूजन आदि इसकी संस्कृति के नमूने मात्र हैं। भोजन पकाने-खाने के नियमों की शुचिता के क्या कहने। परंपरागत अनाज के बीज ऐसे थे कि 100 वर्ष बाद बीजने पर भी अंकुरित होते थे। वणा, वसुटी और वरया जैसी औषधीय वनस्पति मनुष्य व कृषि-पशुधन को रोग मुक्त रखती थी। आज की तकनीकें सुविधा केंद्रित होने के कारण प्रकृति विरोधी हो चली हैं, और इसी कारण हिमाचल सदियों में विकसित हुई प्रकृति केंद्रित समझ भी अब भी गहरे दबाव का सामना कर रही है।

उदात्त परंपराएं और मान्यताएं आधुनिकता के चक्र में न केवल विस्मृत हो रही हैं बल्कि विकृत भी हो रही हैं। इनके समक्ष अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। इस संस्कृति के ग्रहण का कारण एक नहीं अपितु अनेक है। इसके लिए भले आधुनिकता, बाहरी राज्यों के लोगों का अतिक्रमण, सरकार के संरक्षण व

संवर्द्धन के प्रयासों में उदासीनता को प्रमुख कारण माना जाता हो,परंतु वास्तविकता यह है कि हम लोग ही इससे विमुख होकर इसे घात पहुँचा रहे हैं। यदि इससे संस्कृति को पर्यटन से जोड़ा ग्रामीण क्षत्रो में रोजगार बढेगा तथा हमारी संस्कृति जीवित रहेगी हमारा उत्तरदायित्व है कि जिन विशेषताओं से हिम या हिमाचल की संस्कृति की पहचान है। जिन मानवीय मूल्यों के आधार पर इसे देवभूमि कहा जाता है, उन्हें संरक्षित कर उन सभी विशेषताओं एवं मानवीय मूल्यों को हम जीवंत रखें और अपने बच्चों को  पढ़ा-सिखा कर उन्हें इस संस्कृति का वाहक बनाएं, ताकि हम पूर्व की भांति, भविष्य में भी इसके बलबूते पर गौरवान्वित होकर इठलाते रहें। कुछ झलक इस प्रकार से है |

              

  

 

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